Tuesday, December 13, 2011

अंग परिक्रमा

गंगा के पावन तीरों पर
बसा है अंग प्यारा।
मंदराचल नें मथ दिया
सिंधु को न्यारा।
मधुसूदन नें बास लिया
अंग में हमारा।
यहीं जहण्णु में तप किया
अजगैवी के किनारे।
दानवीर कर्ण और
बुद्ध भी हमारे।
अरबिन्दो का रणघोष
दीपांकर के साये।
टैगोर की कलम चली
सभी नें उसे गाया।
शरदचंद की अछूत कन्या
सभी को है भाया।
दिनकर नें हुंकार भरी, और
हिमालय तक को यहां लाया।
विक्रमशिला की श्रेष्ठता ने
ज्ञान का अचरज फैलाया।
सिल्क की श्रेष्ठता ने
समृद्ध इसे बनाया।
दान दे बनैली ने
एक शिक्षण संस्थान बनबाया।
इसी से सन साठ में
भागलपुर विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया।
मिली-जुली संस्कृति, और
सर्वधर्म समभाव है यहां समाया।
तमसो मां ज्योर्तिगमय का
उद्ेश्य इसने बनाया।
धन्य हे अंग भूमि
तूने प्रकाश जो फैलाया।

डा. राजीव रंजन ठाकुर