Saturday, February 25, 2017

वेद सार-100


उतेदानीं भगवन्‍त:  स्‍यामोत प्रपित्‍व उतमध्‍ये अहनाम।
उतोदितौ मघवन्‍त्‍सूर्यस्‍य वयं देवानां सुमतौ ।।
                                  अथर्ववेद—3/16/4
व्‍याख्‍या – तेरी कृपा से हे देव हम भाग्‍यशाली हों । दिन के प्रात: काल तथा मध्‍यकाल में भी हम भाग्‍यशाली ही रहें । हे धन के स्‍वामी भग देवता हम सूर्योदय के समय समस्‍त देवताओं की कृपा प्राप्‍त करने वाले हों।     
    
संशितं म इदं ब्रहम संशितं वीर्य बलम।
वृश्‍चामि शत्रुणां बाहूननेन हविषाहम ।।
                                   अथर्ववेद—3/19/1

व्‍याख्‍या –हमारा ब्रहमनत्‍व जाति से भ्रंश करने वाले दोष के मिटाने से तीक्ष्‍ण हो गया । अब यह उच्‍चारित मंत्र अत्‍यंत तेजस्‍वी और प्रभावशाली हो। इसके प्रभाव से हमारी शक्ति एवं पराक्रम में तेजस्विता आए ।     

Friday, February 24, 2017

वेद सार-99

येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन देवा धनमिच्‍छमान: ।   
तन्‍मे भूयो भवतु मा कनीयो ग्‍ने सातघ्‍नो देवान हविषा निषेध।।
                                   अथर्ववेद—3/15/5
व्‍याख्‍या – हे आग्‍ने लाभ के मध्‍य व्‍यवधान डालने वाले देवताओं को आहुति से संतुष्‍ट कर लौटा दे। हे देवगणो व्‍यापार में हमें धन की हानि न हो, तेरी कृपा से उसकी वञदिध होती रहे ।  

येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन देवा धनमिच्‍छमान:
तस्मिन स इन्‍द्रो रुचिमा दधातु प्रजापति: सविता सोमो अग्नि:।।  
                                  अथर्ववेद—3/15/6
व्‍याख्‍या –जिस धन के दवारा हम व्‍यापार करना चाहते हैं उसमें कोई कमी न आए तथा इन्‍द्र सविता प्रजापति सोम और अग्नि देवता हमारे मन को उस धन की ओर प्रेरित करें।

Saturday, February 4, 2017

वेद सार-- 98

जरायै त्‍वा परि ददामि जरायै नि ध्रुवामि त्‍वा।
जरा त्‍वा भद्रा नेष्‍ट व्‍यन्‍ये यन्‍तु मृत्‍युवो यावाहुरितरांछतम।।
                                  अथर्ववेद-- 3/3/7
व्‍याख्‍या—हे रोगमुक्‍त पुरुष हम तुझे वृदधावस्‍था तक जीवित रहने वाला बनाते हैं तथा वृदधावस्‍था  तक रोगों से तेरी रक्षा करते हैं। विदवान मृत्‍यु के कारणररूप जिन रोगों के विषय में कहते हैं , वे सभी रोग स्‍वयं दूर हो जाएं ।

संजग्‍माना अविभ्‍युरस्मिन गोष्‍ठे करीषिणो:।  
विभ्रती: सौम्‍यं मध्‍वनमीवा उपेतन।।    
                                 अथर्ववेद-- 3/11/7
व्‍याख्‍या– गोशाला में निर्भय होकर विचरण करने वाली हे गौओ तुम पुत्र- पौत्रों से संपन्‍न होकर चिरकाल तक स्थित रहो। गोबर करती हुई तुम निरोग रहकर सौम्‍य दुग्‍ध धारण करती हुई आगमन करो।