Tuesday, May 3, 2016

दश दिक्पाल देवता -1

नवग्रह मंडल में दश दिक्पालों के भी पूजन का विधान है। पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, वायव्य, उत्तर, ईशान, उध्र्व तथा अध। ये क्रमश: 10 दिशाएं हैं। प्रत्येक दिशा के अधिपति के रूप में एक-एक देवता हैं। ये ही 10 दिक्पाल देवता कहलााते हैं।

1.पूर्व के देवता हैं इन्द्र। महाभारत के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से इनका जन्म हुआ। इन्द्रतीर्थ में इन्होने सौ यज्ञ किए थे।  इसलिए इनका नाम शतक्रतु हुआ। ये भू , भुव: और स्व: लोकों के अधिपति हैं। इनकी पत्नी का नाम शची है। इनके पुत्र का नाम जयंत और पुत्री का नाम जयंती है। इनकी शक्ति की कोई शानी नहीं है। जब राहु के उपराग से सूर्य प्रकाशहीन हो जाते हैं तब देवराज इन्द्र इस असुर को पराजित कर सूर्य को प्रकाशयुक्त कर देते हंै। सूर्य के न रहने पर सूर्य बनकर तपते हैं और चंद्रमा के न रहने पर स्वयं चन्द्रमा बनकर जगत् को शीतलता प्रदान करते हैं। इसी प्रकार जरूरत पडऩे पर पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,वायु बनकर विश्व की स्थिति बनाये रखते हंै। संतुष्ट होने पर समस्त प्राणियों को बल, तेज ,और सुख प्रदान करते हैं। अपने उपासकों की सभी कामनाओं की पूर्ति करते हैं। ये दुराचारियों को दंड और सदाचारियों की रक्षा करते हंै।
श्रीतत्व निधि के अनुसार इन्द्र श्वेत वर्ण ऐरावत हाथी पर आसीन ह्रै। इनके हाथ में वज्र और अंकुश है। इनके सहस्र नेत्र हैं और वर्ण स्वर्ण की भांति है।
इन ध्यान साधना इन मन्त्रों से करें:-
श्वेतस्तिसमारूढं वज्रांकुशलसत्करम्।
सहस्रनेत्रं पीताभमिन्द्रं हृदि विभावये।।

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