Saturday, April 30, 2016

वेद सार-43

भूर्भव: स्व:। सुप्रजा: प्रजाभि: स्याœ सुवीरो वीरै: सुपोप:  पोषै:। नये प्रजा में पाहि। शœस्यपशून्मे पाहि। अथर्थ पितु में पाहि।।
यजुर्वेद:- 3/37

भावार्थ :- 
भू: - हे सर्वमंगलकारकेश्वर, आप सदा वर्तमान हो
भुव :- वायु आदि पदार्थो के रचने वाले
स्व: - सुखरूप
सुप्रजा - श्रेष्ठ प्रजा वाला मैं
प्रजाभि: - पुत्र-पौत्रादि उत्तम गुण वाली प्रजा से
स्याम - होऊं
सुवीर: - युद्ध में सदा विजयी मैं
वीरै: - सर्वोत्कृष्ट वीर योद्धाओं से
सुपोष: - सर्व पुष्टियुक्त
पौषे: - अत्यंत विद्यादि सोमलता आदि औषधि
नयै -हे नरों के हितकारक ईश्वर
प्रजाम - प्रजा की
मे- मेरी
पाहि - रक्षा करो
शस्य - हे स्तुति करने योग्य ईश्वर
पशून - हृस्त्यश्वादि पशुओं का
में - मेरे
पाहि- पालन करो
अथर्थ - हे व्यापक ईश्वर
पितु - अन्न की
में - मेरे
पाहि - रक्षा कर।

व्याख्या :-  हे सर्वमंगलकारकेश्वर आप सदा वर्तमान हो, वायु आदि पदार्थों के रचने वाले सुख रूप हो, आप हमको भी सुख दीजिए।
हे सर्वाध्यक्ष आप कृपा करो जिससे कि मैं पुत्र पौत्रादि उत्तम गुण वाली प्रजा से श्रेष्ठ प्रजावाला होऊं। सर्वोत्कृष्ट वीर योद्धाओं से युद्ध में सदा विजयी होऊं। हे महापुष्टिप्रद, आप के अनुग्रह से अत्यंत विद्यादि तथा सोमलता आदि औषधि, सुवर्णादि और नैरोग्यादि से सर्वपुष्टि युक्त होऊं। हे नरों के हितकारक मेरी प्रजा की रक्षा आप करो। हे स्तुति करने योग्य ईश्वर पशुओं का आप पालन करो। हे व्यापक ईश्वर मेरे अन्न की रक्षा करो।
हे दयानिधे। हम लोगों को सब उत्तम पदार्थों से परिपूर्ण और सब दिन आप आनंद में रखो।

Friday, April 29, 2016

वेद सार-42

हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेर्मो कस्मै देवाय हविषां विद्येम।।
                                                         यजुर्वेद:-13/4

भावार्थ :- हिरण्यगर्भ - सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का गर्भ नाम उत्पत्तिस्थान उत्पादक
समवर्तत - था
अग्रे - जब सृष्टि नहीं हुई थी तब/ प्रथम
भूतस्य- सब जगत का
जात: - सनातन, प्रादुर्भूत, प्रसिद्ध
पति-स्वामी
एक: - एक
आसीत् - है
स: - वहीं परमात्मा
दाधार - रच के धारण करता है
द्याम - द्युलोक को
उत - और
इमाम् - इसके
कस्मै - प्रजापति की
देवाय - जो परमात्मा उसकी
हविषा - आत्मादि पदार्थों के समर्पण से
विद्येम - पूजा यथावत करें।

व्याख्या :- जब सृष्टि नहीं हुई थी तब एक जो सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का गर्भ नाम उत्पत्ति स्थान है, सो वही प्रथम था। वह सब जगत का सनातन प्रादुर्भूत प्रसिद्ध पति है। वहीं परमात्मा पृथ्वी से लेकर प्रकृतिपर्यन्त जगत को रच के धारण करता है। प्रजापति  उसकी पूजा आत्मादि पदार्थों के समर्पण से यथावत करें। उससे भिन्न की उपासना लेशमात्र भी हमलोग न करें। जो परमात्मा को छोड़ के उस स्थान में दूसरे की पूजा करता है उसकी और उस देश भर की अत्यंत दुर्दशा होती है। यह प्रसिद्ध है।
इसलिए हे मनुष्यों चेतो। जो तुम को सुख की इच्छा हो तो एक निराकर परमात्मा की यथावत भक्ति करो, अन्यथा तुम को कभी सुख न होगा।

Saturday, April 23, 2016

तंत्र मंत्र यंत्र भाग 10

कुछ ऐसे सामान्‍य टोटके व मंत्र हैं जो आसानी से आपको प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इसी संबंध में नीचे कुछ बातों का जिक्र रहा हूं जिसे प्रयोग कर आप अपनी समस्‍याओं व उलझनों को दूर कर सकते हैं। 

1- काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी बनाएं और उसे अच्छी तरह सेंकें। गुड को तेल में मिश्रित करके जिस व्यक्ति की मरने की आशंका हो, उसके सिर पर से 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार को भैंस को खिला दें।
* गुड के गुलगुले सवाएं लेकर 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार व इतवार को चील-कौए को डाल दें, रोगी को तुरंत राहत मिलेगी।
* महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। द्रोव, शहद और तिल मिश्रित कर शिवजी को अर्पित करें। 'ॐ नमः शिवाय' षडाक्षर मंत्र का जप भी करें, लाभ होगा।

2- श्रावण के महीने में 108 बिल्व पत्रों पर चन्दन से नमः शिवाय लिखकर इसी मंत्र का जप करते हुए शिवजी को अर्पित करें। 31 दिन तक यह प्रयोग करें, घर में सुख-शांति एवं सम्रद्धि आएगी, रोग, बाधा, मुकदमा आदि में लाभ एवं व्यापार में प्रगति होगी व नया रोजगार मिलेगा। यह एक अचूक प्रयोग है।


3-बालक को जन्म के नाम से मत पुकारें।
* पांच वर्ष तक बालक को कपडे मांगकर ही पहनाएं।
* 3 या 5 वर्ष तक सिर के बाल न कटाएं।
* उसके जन्मदिन पर बालकों को दूध पिलाएं।
* बच्चे को किसी की गोद में दे दें और यह कहकर प्रचार करें कि यह अमुक व्यक्ति का लड़का है।
* घर में सुख-शांति के लिये मंगलवार को चना और गुड बंदरों को खिलाएं। आठ वर्ष तक के बच्चों को मीठी गोलियां बाँटें। शनिवार को गरीब व भिखारियों को चना और गुड दें अथवा भोजन कराएं। मंगलवार व शनिवार को घर में सुन्दरकाण्ड का पाठ करें या कराएं।


4- ससुराल में सुखी रहने के लिए साबुत हल्दी की गांठें, पीतल का एक टुकड़ा, थोड़ा सा गुड़ अगर कन्या अपने हाथ से ससुराल की तरफ फेंक दे, तो वह ससुराल में सुरक्षापूर्वक और सुखी रहती है। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कन्या का जब विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो, तो एक लोटे (गड़वी) में गंगा जल, थोड़ी सी हल्दी, एक पीला सिक्का डाल कर, लड़की के सिर के उपर से ७ बार वार कर उसके आगे फेंक दें। 

5-परेशानियां दूर करने व कार्य सिद्धि हेतु शनिवार को प्रातः, अपने काम पर जाने से पहले, एक नींबू लें। उसके दो टुकड़े करें। एक टुकड़े को आगे की तरफ फेंके, दूसरे को पीछे की तरफ। इन्हें चौराहे पर फेंकना है। मुख भी दक्षिण की ओर हो। नींबू को फेंक कर घर वापिस आ जाएं, या काम पर चले जाएं। दिन भर काम बनते रहेंगे तथा परेषानियां भी दूर होंगी।


6-काम या यात्रा पर जाते हुए, एक नारियल लें। उसको हाथ में ले कर, ११ बार श्री हनुमते नमः कह कर, धरती पर मार कर तोड़ दें। उसके जल को अपने ऊपर छिड़क लें और गरी को निकाल कर बांट दें तथा खुद भी खाएं, तो यात्रा सफल रहेगी तथा काम भी बन जाएगा।
* अगर आपको किसी विशेष काम से जाना है, तो नीले रंग का धागा ले कर घर से निकलें। घर से जो तीसरा खंभा पड़े, उस पर, अपना काम कह कर, नीले रंग का धागा बांध दें। काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। हल्दी की ७ साबुत गांठें, ७ गुड़ की डलियां, एक रुपये का सिक्का किसी पीले कपड़े में बांध कर, रेलवे लाइन के पार फेंक दें। फेंकते समय कहें काम दे, तो काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

7-धन के लिए एक हंडियां में सवा किलो हरी साबुत मूंग दाल या मूंगी, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दो हंडियां घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।


8-परीक्षा में सफलता हेतु गणेश रुद्राक्ष धारण करें। बुधवार को गणेश जी के मंदिर में जाकर दर्शन करें और मूंग के लड्डुओं का भोग लगाकर सफलता की प्रार्थना करें।
* पदोन्नति हेतु शुक्ल पक्ष के सोमवार को सिद्ध योग में तीन गोमती चक्र चांदी के तार में एक साथ बांधें और उन्हें हर समय अपने साथ रखें, पदोन्नति के साथ-साथ व्यवसाय में भी लाभ होगा।
* मुकदमे में विजय हेतु पांच गोमती चक्र जेब में रखकर कोर्ट में जाया करें, मुकदमे में निर्णय आपके पक्ष में होगा।
* पढ़ाई में एकाग्रता हेतु शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को इमली के 22 पत्ते ले आएं और उनमें से 11 पत्ते सूर्य देव को ¬ सूर्याय नमः कहते हुए अर्पित करें। शेष 11 पत्तों को अपनी किताबों में रख लें, पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी।
* कार्य में सफलता के लिए अमावस्या के दिन पीले कपड़े का त्रिकोना झंडा बना कर विष्णु भगवान के मंदिर के ऊपर लगवा दें, कार्य सिद्ध होगा।


9-गृह कलह से मुक्ति हेतु परिवार में पैसे की वजह से कलह रहता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख में पांच कौड़ियां रखकर उसे चावल से भरी चांदी की कटोरी पर घर में स्थापित करें। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को या दीपावली के अवसर पर करें, लाभ अवश्य होगा।


10- शत्रु शमन के लिए साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाएगा।

Thursday, April 21, 2016

त्तंत्र मंत्र यंत्र भाग 9


व्यक्ति आम हो या खास, समस्या सबके पीछे रहती हैं। हम लोग छोटे-छोटे उपाय जानते हैं पर उनकी विधिवत जानकारी के अभाव में उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। लेकिन तंत्र विज्ञान मे कुछ ऐसे टोटके हैं जिन्हे अपनाकर आप निश्चित ही अपनी सारी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं।1-कार्यक्षेत्र में अनावश्यक दबाव पड़ता है तो :-
आप सोमवार को दो फूलदार लौंग और थोडा सा कपूर ले ,पहले अपने ईष्ट की विधिवत पूजा करले ,फिर उस कपूर और लौंग को 108 बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करे ,,अब कपूर लोग को जला दे ,अपनी दृष्टि लगातार उस पर बनाए रखे और गायत्री मंत्र का पाठ करते रहे ,,जब लौंग-कपूर पूरी तरह जल जाए तब ,उससे बनी भष्म या राख को इकठ्ठा कर ले ।आप इसे तीन बार [ सुबह,शाम और कार्यक्षेत्र में प्रवेश पर ] अपनी जिह्वा  पर थोडा सा लगाए । आप के कार्यक्षेत्र में आप पर दबाव 7 दिनों में कम हो जाएगा।मंत्र-।। नृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धी महीतन्नो नृसिहं प्रचोदयात् ।।

2-मंत्र से सब करने लगेंगे आपकी तारीफ :-
कोई भी इंसान अपनी बुराई सुनना पसंद नहीं करता है। कोई भी नहीं चाहता कि उसका दुनिया में कोई भी दुश्मन हो। लेकिन कोई कितनी भी कोशिश कर ले उसका कोई ना कोई विरोधी जरूर रहता है। ऐसे में जब कोई आपके पीठ के पीछे आपकी बुराई करता है। सफलता के रास्ते में रोड़े अटकाता है। ऐसे में तनाव होना एक साधारण सी बात है।यह कोई नहीं चाहता कि इस दुनिया में उसका कोई दुश्मन भी हो। अपने विरोधियों अथवा शत्रुओं को शांत करने, अपने अनुकूल बनाने अथवा अपने वश में करने के लिये, नीचे दिये गए मंत्र का नियमबद्ध जप करना आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाता है-

3- घर में खुशहाली के लिए :- घर या व्यापार स्थल के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धो लें और वहां स्वास्तिक की स्थापना करें और उस पर रोज चने की दाल और गुड़ रखकर उसकी पूजा करें। साथ ही उसे ध्यान रोज से देखें और जिस दिन वह खराब हो जाए उस दिन उस स्थान पर एकत्र सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह क्रिया शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को आरंभ कर ११ बृहस्पतिवार तक नियमित रूप से करें। फिर गणेश जी को सिंदूर लगाकर उनके सामने लड्डू रखें तथा ÷जय गणेश काटो कलेश' कहकर उनकी प्रार्थना करें, घर में सुख शांति आ जागी।


4- सफलता प्राप्ति के लिए:- प्रातः सोकर उठने के बाद नियमित रूप से अपनी हथेलियों को ध्यानपूर्वक देखें और तीन बार चूमें। ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है। यह क्रिया शनिवार से शुरू करें।


5-धन लाभ के लिए:-  शनिवार की शाम को माह (उड़द) की दाल के दाने पर थोड़ी सी दही और सिंदूर डालकर पीपल के नीचे रख आएं। वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। यह क्रिया शनिवार को ही शुरू करें और 7 शनिवार को नियमित रूप से किया करें, धन की प्राप्ति होने लगेगी।

Saturday, April 16, 2016

वेद सार 41

उपहूताऽइह गावऽउपहूताऽअजवय:।
अथोऽन्नस्यकीलाल उपहूतो गृहेषु न:। क्षेमाय व: शान्त्यै प्रपधे शिवशग्म शंय्यो: शंय्यो:।।
                                                                                                                          यजुर्वेद :-31/ 43

भावार्थ :-
उपहूता - नित्य स्थिर
इह - इस संसार में
गाव : - उत्तम गाय, भैंस, घोड़े, हाथी
अजावय: - बकरी, भेड़ तथा उपलक्षण से अन्य सुखदायक पशु
अथो - और
अन्नस्य - अन्न,सर्व रोगनाशक औषधियों का
कीलाल: - उत्कृष्ट रस
स्थिर - प्राप्त रख
गृहेषु - घरों में
न: - हमारे
क्षेमाय - कुशलता के लिए
ब : - तुम्हारे
शान्तयै  - शांति
प्रपद्ये - मैं यथावत प्राप्त होऊं
शिवम् - मोक्ष सुख को
शग्मम् - इस संसार के सुख को
शंयो: - मोक्ष सुख की कामना, प्रजा सुख की कामना

व्याख्या: - हे पश्वाधिपते महात्मन् आप की कृपा से उत्तम गाय, भैंस, घोड़े, हाथी, बकरी, भेड़ तथा उपलक्षण से अन्य सुखदायक पशु और अन्य सर्व रोग नाशक औषधियों का उत्कृष्ट रस हमारे घरों में नित्य स्थिर रहे जिससे इस किसी पदार्थ के बिना कोई दु:ख न हो।
  हे विद्वानो, तुम्हारे संग और ईश्वर की कृपा से क्षेम, कुशलता और शांति तथा सर्वोपद्रव विनाश के लिए मोक्ष सुख और इस संसार के सुख को मैं यथावत प्राप्त होऊं। मोक्ष सुख और प्रजा सुख इन दोनों की कामना करने वाला जो मैं हूं, मेरी उक्त दोनों कामनाओं को आप यथावत शीघ्र पूरा कीजिए। आपका यही स्वभाव है कि आपने भक्तों की कामना पूरी करते हैं।

Friday, April 15, 2016

वेद सार 40

भग एवं भगवांऽअस्तु देवास्तेन वयं भगवन्त: स्याम।
तं त्वां भग सर्व इज्जोहवीति स नों भग पुर एता भवेह।।
                                                        यजुर्वेद :-34/38

भावार्थ :- 
भग - परमैश्र्ययुक्त
एव - होने से
भगवान - भगवान
अस्तु - हो
देवा: - हे विद्वानो
तेन - उस भगवान प्रसन्न ईश्वर के सहाय से
वयम् - हमलोग
भगवन्त : - परमैश्वर्ययुक्त
स्याम - हों
तम - उन
त्वा - आपको
सर्व : - सर्व संसार
इत - ही
जोहवीति - ग्रहण करने को अत्यंत इच्छा करता है
स: - सो
न: - हमको
भग - आप
पुर: - प्रथम से
एता - प्राप्त
भव - हों
इह - इसी जन्म से

व्याख्या :- हे सर्वाधिपते महाराजेश्वर आप परमैश्वर्य स्वरूप होने से भगवान हो। हे विद्वानो उस भगवान की सहायता से हमलोग परमैश्वर्ययुक्त हो।
हे परमेश्वर, सारा संसार आप को ही ग्रहण करने की अत्यंत इच्छा करता है। कौन ऐसा भाग्यहीन मनुष्य है जो आपको प्राप्त होने की इच्छा न करे। इसलिए आप हमको प्रथम से ही प्राप्त हो। फिर भी हम से आप और ऐश्वर्य अलग न हो। आप अपनी कृपा से इसी जन्म में परमैश्वर्य का यथावत भोग हम लोगों को करावें। परजन्म में तो कर्मानुसार फल होता है तथा आप की सेवा में हम नित्य तत्पर रहें।

Thursday, April 14, 2016

त्तंत्र-मंत्र-यंत्र भाग 8

तंत्र-मंत्र और यंत्र की अवधारना सभी धर्मों में है। हर धर्म को मामने वाले लोग दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से मुक्ति और उसके शुभाशुभ फलाफल के लिए इसका उपयोग करते हैं। अंतर केवल उसके कार्यरुप का है।
हमारे वेदों (अथर्ववेद)में खासकर विभिन्‍न रोगों के उपचार के लिए ऐसे-ऐसे मंत्र दिए गए हैं जो अचूक हैं।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने चाहे जितनी प्रगति कर ली हो, पर बीमारियों पर नियंत्रण का उसका सपना आज तक अधूरा है।  आज जिन बीमारियों को लाइलाज माना जा रहा है, उनका मंत्रों के द्वारा स्थाई निवारण संभव है।
 जाने ऐसे ही कुछ दुर्लभ और गुप्त मंत्र-

मधुमेह रोग: मधुमेह यानि कि शुगर की बीमारी से छुटकारा पाने के लिये नौ दिन तक रुद्राक्ष की माला से आगे दिये गए निम्र मंत्र का 5 माला जप करें।
मंत्र - क्क ह्रौ जूं स:

कैंसर रोग: कैंसर के रोगी इंसान को नीचे दिये गए सूर्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन कम से कम पांच माला और अधिक से अधिक आठ माला जप, नियम पूर्वक एवं पूरी श्रृद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिये। इसके अतिरिक्त दूध में तुलसी की पत्ती का रस मिलाकर पीना चाहिए। सूर्य-गायत्री का का जप एक अभेद्य कवच का काम करता है-
सूर्य गायत्री मंत्र - भास्कराय विद्यहे, दिवाकर धीमहि , तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

Tuesday, April 12, 2016

नवग्रह देवता श्रृंखला - 9



                                          केतु

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मत्स्य व वायु पुराण के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त अमृत को जब  भगवान विष्णु द्वारा देवताओं को पिलाया जा रहा था उसी क्रम में राहु भी वेश बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और उसने भी अमृत पाण कर लिया। राहु कि इस करतूत को जब सूर्य और चंद्र ने देखा तो भगवान विष्णु को इसकी सूचना दी। इस पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का धड़ सिर से अलग कर दिया। राहु का वही धड़ केतु कहलाया। केतु बहुत से हैं इसमें धूमकेतु प्रधान है। केतु के अधिदेवता चित्रगुप्त हैं।

केतु का वर्ण :- केतु का वर्ण धूम्र है। सभी केतु द्विवाहु हैं। इनके मुख विकृत हैं।

आयुुध :- इनके दोनों हाथों में गदा तथा वरमुद्रा है।

केतु का वाहन :- गीध व कबूतर है।

केतु का निवास स्थान वायव्य कोण में है। केतु मीन राशि के स्वामी हैं।

केतु की वक्र दृष्टि से :- घाव होना, दांत का सडऩा, जल जाना, पस दायक बिमारी एवं गर्भ पात की संभावना बनी रहती है।

केतु की आराधना का वैदिक मंत्र :- ऊँ केतुं कृण्वन्न केतवे मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।।

केतु की आराधना का तांत्रिक मंत्र :- ऊँं ऐं हृीं केतवे नम:।

जप संख्या :- 68 हजार। इस दशांश 6800 तर्पण तथा इसका दशांश 680 मार्जन मंत्र से हवण करें। हवण में शमी या दुर्वा की आहुति आवश्यक है।

रत्न धारण :- लहसुनिया या लाजवर्त स्टोन को चांदी में बनवाकर शनिवार के दिन अभिषिक्त कर रात्रि में धारण करें। रत्न धारण संभव न हो सके तो वट वृक्ष की जड़ को काले कपड़े में बांधकर अभिषिक्त करने के पश्चात शनिवार के दिन ही रात्रि में बांह पर बांधे।

अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊँ कें केतवे नम:।

Monday, April 11, 2016

तंत्र -मंत्र- यंत्र भाग- 7



भृगु संहिता के अनुसार प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी राशि के सानिध्य में ही जन्म लेता है। वहीं राशि उसकी कुंडली का राशि स्वामी होता है। उस वक्त वह राशि किसी न किसी ग्रह की छत्रछाया में रहता है। उसी के अनुरूप उस व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति का निर्धारण होता है।उसी ग्रह के अनुरूप उस मनुष्य की दैनिक शैली बनती है और ताउम्र वह ऊसी तरह से अपने कार्यस्वरूप को अंजाम देता है। उसके जीवन की सारी घटनाएं उसी के अनुरूप बनती-बिगड़ती है। उसी ग्रह और राशि की प्रकृति के अनुरूप वह दैहिक, दैविक और भौतिक ताप तथा सत्व, रज और तम गुणों से संपोषित होता है। अत: प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि उसका राशि स्वामी जो भी राशि हो उससे संबंधित मंत्र का प्रतिदिन 108 बार अवश्य जप करे। इससे वी आरोग्य बना रहता है साथ ही विघ्न-बाधाओं की चपेट से भी बचता है। यह ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे एक बीमार व्यक्ति को जब अस्पताल ले जाया जाता है तो उसे पहले किसी न किसी डाक्टर की यूनिट में भर्ती किया जाता है जबकि समय-समय पर उसका इलाज अन्य डाक्टर भी करते हैं।

12 राशियों से संबंधित मंत्र--  

1.मेष राशि -ऊँ  हृीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नम: ।

2.वृषभ राशि-ऊँ गोपालाय उत्तरध्वजाय नम: ।

3.मिथुन राशि-ऊँ क्लीं कृष्णाय नम: ।

4-कर्क राशि-ऊँ हिरण्यगर्भाय अव्यक्त रुपिणे नम: ।

5.सिंह राशि- ऊँ क्लीं ब्रह्मणे जगदाधाराय नम: ।

6.कन्या राशि- ऊँ नमो प्रीं पीताम्बराय नम: ।

7.तुला राशि- ऊँ तत्वनिरंजनाय तारकमाराय नम: ।

8. वृश्चिक राशि-ऊँ नारायणाय सुरसिंहाय नम: ।

9.धनु राशि- ऊँ श्रीं देवकृष्णाय ऊध्‍़र्वषंताय नम: ।

10. मकर राशि- ऊँ श्रीं वत्यलाय नम: ।

11.कुम्भ राशि- ऊँ श्रीं उपेप्द्राय अच्युताय नम: ।

12. मीन राशि- ऊँ क्लीं उद्धृताय उद्धारिणे नम: ।

Wednesday, April 6, 2016

नवग्रह देवता श्रृंखला 8

                                      राहु 

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राहु की माता का नाम सिंहिका है। सिंहिका दैत्यराज हिरण्यकशिपु की पुत्री थी। राहु को सैहिकेय भी कहा जाता है। राहु कुल 100 भाई है। इनमें सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली भी राहु ही है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार समुद्र मंथन से जब अमृत प्राप्त हुआ तो राहु छलपूर्वक अमृत पान  के लिए देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। उसके इस कपट को जब सूर्य और चंद्र देव ने भगवान विष्णु को बताया तब उन्होंने चक्र से उसका धड़ सिर से अलग कर दिया। किंतु अमृत पीने से वह अमर हो गया था। इसी कारण ब्रह्मा ने उसको ग्रह बना दिया। राहु ग्रह मंडलाकार होता है। यह ग्रहों के साथ ब्रह्मा की सभा में बैठता है। राहु हमेशा पृथ्वी पर ही भ्रमण करता है। यह छाया का अधिष्ठातृ देवता है। यह कन्या राशि का स्वामी है। इनका वास नेऋत्य कोण में है।
ऋग्वेद के अनुसार राहु वैर भाव से पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को तथा अमावस्या के दिन सूर्य पर आक्रमण कर उसे आच्छन्न कर देता है। जिस कारण ग्रहण लगता है।

राहु का वर्ण :- मत्स्य पुराण के अनुसार राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है और सिंहासन का रंग भी नीला है। राहु का मुख भयंकर है।

राहु का वाहन :- राहु का रथ अन्धकाररूप है। इसे कवच आदि से सजाये हुए वायु के समय वेगवाले  आठ घोड़े खींचते हैं। व्याध्र इनका वाहन है।

राहु का अायुद्ध :- इनके हाथ में तलवार, ढ़ाल, त्रिशुल और वरमुद्रा है।

राहु की वक्र दृष्टि से :- दिल का दौरा, विष संबंधी समस्या, आत्महत्या, पाचन संस्थान की गड़बड़ी, काम में बाधा, बनते काम विगडऩे आदि की संभावना बनी रहती है।

राहु की आराधना का वैदिक मंत्र :- 'ऊँ कयानश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कयाशचिष्ठयाऽवृताÓ 

तांत्रिक मंत्र :- ऊँ ह्रीं राहवे नम:।

जप संख्या :- 72 हजार। इसका दशांश 7200 तर्पण व इसका दशांश 720 मार्जन तंत्र से हवन करें। हवन में दूर्वा का प्रयोग अवश्प करें।

रत्न :- गोमेद को चांदी में बंधवाकर शनिवार के दिन मध्यमा अंगुली में धारण करें। या फिर चंदन या अश्वगांधा की जड़ को काले या भूरे कपड़े में बांधकर मंत्र से अभिषिक्त कर शनिवार को ही बांह पर बांधे।

अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊँ रां राहवे नम:। 

व्रत :- शनिवार को उपवास करें। 

Tuesday, April 5, 2016

नवग्रह देवता श्रृंखला 7


                                 शनिदेव

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शनि भगवान सूर्य के पुत्र हैं। छाया इनकी माता हैं। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मवैैवर्त पुराण के अनुसार बचपन से ही शनि देव भगवान श्री कृष्ण के अनुराग से मग्न रहते थे। बड़ा होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। पत्नी सती-साध्वी और तेजस्विनी थी। एक रात पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से वह पति के पास पहुंची। पति ध्यान में बैठे थे। पति की प्रतिक्षा करते-करते वह थक गई। इस बीच उसका ऋतुकाल भी निष्फल हो चुका था। इसी उपेक्षा से क्रुद्ध होकर पत्नी ने शाप दे दिया कि जिसे तुम देख लोगे वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनि देव ने पत्नी को मनाया। पत्नी को स्वयं पश्चाताप हो रहा था। लेकिन शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी। तबसे शनि देव सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि वे किसी का अहित नहीं चाहते थे। उनकी वक्र दृष्टि पड़ते ही कोई भी नष्ट हो सकता है। पश्चिम दिशा में इनका वास है।
महाराज दशरथ को दिए हुए वरदान के अनुसार शनि देव यदि किसी की कुण्डली या गोचर में मृत्यु स्थान, जन्म स्थान अथवा चतुर्थ स्थान मे रहे तो वह उनकी कुदृष्टि से सबसे अधिक पीडि़त यानि मृत्युतुल्य कष्ट भोगेगा। शनि देव प्रत्येक राशि में 30 30 महीने रहते हैं और 30 ही वर्ष में सब राशियों को पार करते हैं। शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। इनका गोत्र कश्यप है। इनके अधिदेवता प्रजापति तथा प्रत्याधिदेवता यम हैं।

शनि देव का वर्ण :- मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वर्ण कृष्ण है।

शनि देव का वाहन :- इनका वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है।

शनि देव का आयुध :- इनके हाथ में क्रमश: धनुष, वाण, त्रिशुल और वरमुद्रा है।


शनिदेव की वक्र दृष्टि से :- पेट और पैरों की बिमारी, गैस, पेड़ से गिरना, पत्थर से चोट लगना, वाहन दुर्घटना आदि की संभावना बनी रहती है। इनकी पीड़ा से आदमी राजा से रंक भी बन सकता है। हर वो कष्ट व परोशानियों की पराकाष्टा इनकी वक्र दृष्टि से संभव है।


शनि देव की पूजा का वैदिक मंत्र :- ऊं शन्नो देवीरभिष्टयऽआयो भवन्तु पीतपे। शं यो रमिस्रवन्तु न: ।।

तांत्रिक मंत्र :- ऊं ऐं हृीं श्रीं शनैश्चराय: नम:।

जप संख्या :-92 हजार। इसका दशांश 9200 तर्पण व इसका दशांश 920 मार्जन मंत्र का हवण करें। हवण में शमी की लकड़ी का उपयोग अवश्य करें।


रत्न :- नीलम या नीली चांदी में बनवाकर मध्यमा अंगुली में शनिवार को मध्याह्न काल में धारण करें। या फिर शनिवार को गिरे हुए काले घोड़े के नाल या नाव में लगी कील की अंगुठी बनवाकर धारण करें। बिच्छ या धतूरे की जड़ को भी काला कपड़ा में बांधकर अभिषिक्त कर भुजा में बांधने से भी काम चलेगा।

अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।

विशेष:-शनिवार के दिन काला कुत्ता को भोजन कराने, काला उड़द, काली तील, सरसों तैल का दान या शनिदेव की मूर्ति पर अर्पित करने से भी शनि का प्रकोप कम होता है।

व्रत :- 33 शनिवार तक शनिवार का व्रत करें। हनुमान व शिव जी की उपासना तथा पिप्लादि ऋषि की पूजा अर्चना से भी शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

Saturday, April 2, 2016

नवग्रह देवता श्रृंखला 6

                                    शुक्र देव

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शुक्राचार्य दानवों के पुरोहित हैं। ये योग के आचार्य हैं। मृतसंजीवनी विद्या के बल पर ये मरे हुए दानवों को भी जिला देते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्राचार्य ने दानवों के कल्यानार्थ अनेक कठिनतम व्रत का अनुष्ठान किया जिसे आज तक कोई नहीं कर पाया। इससे प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने इन्हें वर दिया कि तुम युद्ध में देवताओं को भी पराजित कर दोगे और तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा। साथ ही इन्हें धनों का अध्यक्ष और प्रजापति बना दिया। इतना ही नहीं इन्हें समग्र औषधियों, मंत्रों और रसों के भी स्वामी बना दिया गया। ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोकों के प्राण का परित्राण करने लगे। महाभारत के अनुसार कभी वृष्टि, कभी अवृष्टि, कभी भय, कभी अभय उत्पन्न कर वे प्राणियों के योग क्षेत्र का कार्य पूरा करते हैं। ये लोकों के लिए अनुकूल ग्रह हैं। इनके अधिदेवता इंद्राणी और प्रत्यधिदेवता इंद्र है। वृष और तुला राशि के स्वामी हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वर्ण श्वेत है।

शुक्रदेव का वाहन :- इनके रथ में अग्नि के समान वर्णवाले आठ घोड़े जूते होते हैं। रथ पर ध्वजाएं फहरती रहती है।

शुक्रदेव का परिवार :- शुक्राचार्य की दो पत्नियां है। एक का नाम गो है जो पितरों की कन्या है। वहीं दूसरी का नाम जयंती है जो देवराज इंद्र की पुत्री है। गो से इन्हें चार पुत्र हुए - त्वष्टा, वरुत्री, शंड़ और अमर्क जबकि जयंती से देवयानी का जन्म हुआ।

शुक्र की वक्र दृष्टि से :- कोढ़, पित्त, कफ संबंधी रोग, वीर्य विकार, नेत्र पीड़ा, मूत्र पीड़ा, गुदा रोग, गर्भाशय की कमजोरी, पेट का दर्द अथवा अण्डकोश में सूजन आदि होने की संभावना बनी रहती है।

शुक्र ग्रह के जप का वैदिक मंत्र :- ऊॅ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिवत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानर्ठ शुक्रमन्धरस इंद्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।

शुक्र ग्रह के जप का तांत्रिक मंत्र :- ऊं ह्रीं श्रीं शुक्राय नम:।

जपसंख्या :- 16 हजार। इसका दशांश 1600 तर्पण व इसका दशांश 160 मार्जन हवण करें। हवण में गूलर की लकड़ी का प्रयोग करें।

रत्न धारण - हीरा, जरकन या सफेद पुखराज की अंगुठी बनवाकर शुक्रवार को सूर्योदय काल में कनिष्ठा अंगुली में धारण करें। या फिर मजीदी या अरंडी की जड़ को सफेद कपड़े में बांधकर अभिषिक्त कर गले या बाजू में बांधे।

अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊॅं द्रां द्रींं स: शुक्राय नम: को 101 बार पढ़ें।

व्रत - शुक्रवार का व्रत करें और पूजा में सफेद पुष्प व सफेद वस्तुओं का ही यथासंभव प्रयोग करें।