राहु
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राहु की माता का नाम सिंहिका है। सिंहिका दैत्यराज हिरण्यकशिपु की पुत्री थी। राहु को सैहिकेय भी कहा जाता है। राहु कुल 100 भाई है। इनमें सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली भी राहु ही है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार समुद्र मंथन से जब अमृत प्राप्त हुआ तो राहु छलपूर्वक अमृत पान के लिए देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। उसके इस कपट को जब सूर्य और चंद्र देव ने भगवान विष्णु को बताया तब उन्होंने चक्र से उसका धड़ सिर से अलग कर दिया। किंतु अमृत पीने से वह अमर हो गया था। इसी कारण ब्रह्मा ने उसको ग्रह बना दिया। राहु ग्रह मंडलाकार होता है। यह ग्रहों के साथ ब्रह्मा की सभा में बैठता है। राहु हमेशा पृथ्वी पर ही भ्रमण करता है। यह छाया का अधिष्ठातृ देवता है। यह कन्या राशि का स्वामी है। इनका वास नेऋत्य कोण में है।ऋग्वेद के अनुसार राहु वैर भाव से पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को तथा अमावस्या के दिन सूर्य पर आक्रमण कर उसे आच्छन्न कर देता है। जिस कारण ग्रहण लगता है।
राहु का वर्ण :- मत्स्य पुराण के अनुसार राहु का वर्ण नीलमेघ के समान है और सिंहासन का रंग भी नीला है। राहु का मुख भयंकर है।
राहु का वाहन :- राहु का रथ अन्धकाररूप है। इसे कवच आदि से सजाये हुए वायु के समय वेगवाले आठ घोड़े खींचते हैं। व्याध्र इनका वाहन है।
राहु का अायुद्ध :- इनके हाथ में तलवार, ढ़ाल, त्रिशुल और वरमुद्रा है।
राहु की वक्र दृष्टि से :- दिल का दौरा, विष संबंधी समस्या, आत्महत्या, पाचन संस्थान की गड़बड़ी, काम में बाधा, बनते काम विगडऩे आदि की संभावना बनी रहती है।
राहु की आराधना का वैदिक मंत्र :- 'ऊँ कयानश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कयाशचिष्ठयाऽवृताÓ
तांत्रिक मंत्र :- ऊँ ह्रीं राहवे नम:।
जप संख्या :- 72 हजार। इसका दशांश 7200 तर्पण व इसका दशांश 720 मार्जन तंत्र से हवन करें। हवन में दूर्वा का प्रयोग अवश्प करें।
रत्न :- गोमेद को चांदी में बंधवाकर शनिवार के दिन मध्यमा अंगुली में धारण करें। या फिर चंदन या अश्वगांधा की जड़ को काले या भूरे कपड़े में बांधकर मंत्र से अभिषिक्त कर शनिवार को ही बांह पर बांधे।
अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊँ रां राहवे नम:।
व्रत :- शनिवार को उपवास करें।
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