Friday, April 15, 2016

वेद सार 40

भग एवं भगवांऽअस्तु देवास्तेन वयं भगवन्त: स्याम।
तं त्वां भग सर्व इज्जोहवीति स नों भग पुर एता भवेह।।
                                                        यजुर्वेद :-34/38

भावार्थ :- 
भग - परमैश्र्ययुक्त
एव - होने से
भगवान - भगवान
अस्तु - हो
देवा: - हे विद्वानो
तेन - उस भगवान प्रसन्न ईश्वर के सहाय से
वयम् - हमलोग
भगवन्त : - परमैश्वर्ययुक्त
स्याम - हों
तम - उन
त्वा - आपको
सर्व : - सर्व संसार
इत - ही
जोहवीति - ग्रहण करने को अत्यंत इच्छा करता है
स: - सो
न: - हमको
भग - आप
पुर: - प्रथम से
एता - प्राप्त
भव - हों
इह - इसी जन्म से

व्याख्या :- हे सर्वाधिपते महाराजेश्वर आप परमैश्वर्य स्वरूप होने से भगवान हो। हे विद्वानो उस भगवान की सहायता से हमलोग परमैश्वर्ययुक्त हो।
हे परमेश्वर, सारा संसार आप को ही ग्रहण करने की अत्यंत इच्छा करता है। कौन ऐसा भाग्यहीन मनुष्य है जो आपको प्राप्त होने की इच्छा न करे। इसलिए आप हमको प्रथम से ही प्राप्त हो। फिर भी हम से आप और ऐश्वर्य अलग न हो। आप अपनी कृपा से इसी जन्म में परमैश्वर्य का यथावत भोग हम लोगों को करावें। परजन्म में तो कर्मानुसार फल होता है तथा आप की सेवा में हम नित्य तत्पर रहें।

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