Wednesday, November 30, 2016

वेद सार - 80


 श्यामा सरूपं करणी पृथिव्या अध्युद्भृृता । 
    इदमूषु प्र साधय पुना रूपाणि कल्पयं ।। 
                                                   अथर्ववेद:-1/24/4

व्याख्या:- जैसे उत्तम वैद्य ओषधों से रोग को दूर कर रोगी को सभी प्रकार से स्वस्थ करके उसे सुख पहुंचाता है, उसी प्रकार दूरदर्शी पुरुष सभी विघ्नोंं को हटाकर कार्य सिद्धि करके आनंद भोगता है।

 यथा भूूतं च भव्यं च न बिभीतो न रिष्पत: । 
एवा में प्राण मा बिभे: ।। 
                                                     अथर्ववेद:-2/14/6

व्याख्या:- समर्थ और सत्य पथ पर चलने वाला व्यक्ति न अतीत में और न भविष्य में भयभीत होता है। वह सदैव विजयी होता है। भूत और भविष्य का विचार करके जो कर्म करते हैं, वे सदैव सुखी रहते हैं। 

Monday, November 28, 2016

अथर्ववेद सार

यस्ते गन्ध: पृथिवी संबभुव यं विम्रत्योषधयो: यमाप: । 
य गन्धर्वा अप्सरश्च भेजिरे तेन मा सुरभिं कृणु मानो द्विक्षत कश्चन।।      

अर्थात, पृथिवी पर स्थित सुगंधित औषधियों और वनस्पतियों के रूप में जो गंध उत्पन्न होती है और जिसे गंधर्व और अप्सराएं धारण करती हैं। हे पृथिवी तू उस गंध से हमें युक्त कर। हमसे ईष्र्या करने वाला कोई न हो। सभी हमारे प्रति मित्र भाव रखे। (अथर्ववेद)

सुधि पाठकों द्वारा विश्व के लगभग सभी देशों में मेरे ब्लाग को लाइक करने व इसमें उधृत साम्रगी को पढऩे की ललक ने मेरी उत्साह को भी काफी बढ़ाया है, खास कर वेदसार को लेकर। अभी तक मैं आपलोगों के समक्ष ऋृगवेद और यजुर्वेद की कुछ महत्वपूर्ण ऋृचाओं को बड़े ही सरल भाव में प्रस्तुत किया। यही कारण है कि उसे आपलोगें ने उसे हाथों- हाथ लिया। आज से मै आपलोगों के समक्ष  अथर्ववेद की ऋचाओं को प्रस्तुत करूंगा।  इसकी ऋचाएं स्वयं सिद्ध है जिसकी आराधना कर मनुष्य अभिष्ट की प्राप्ति कर सकता है। वैदिक साहित्य में अथर्ववेद को ब्रह्मवेद और अथर्वाड्गिरस नाम से भी जाना जाता है। अथर्वा और अंगिरस नाम के दो ऋषियों में ही सर्वप्रथम अग्नि को प्रकट किया था। अग्नि की उपासना यज्ञ द्वारा की जाती है। अथर्वा ऋषि द्वारा जो ऋचाएं प्रकट की गई हैं वे अध्यात्मपरक, सुखकारक, आत्मा का उत्थान करने वाली तथा मंगल कारक स्थितियां प्रदान करने वाली है। ये सृजनात्मक ऋचाएं हंै। वहीं आंगिरस द्वारा जो ऋचाएं प्रस्तुत की गई हंै वो अभिचार कर्म को प्रकट करनेवाली शत्रुनाशक, जादू - टोना, मारण, वशीकरण आदि को प्रदान करने वाली हैं। ये संहारात्मक ऋचाएं हैं। अथर्ववेद संहिता बीस कांडो में विभक्त है जिसमें 726 सुक्त हैं। अथर्ववेद के संपूर्ण मंत्रो को शांति, पुष्टि और अभिचार इन तीन भागो में विभक्त किया जा सकता है। इस वेद में 33 देवताओं का वर्णन किया गया है। ये सभी देवता तंत्र शक्ति के जनक हैं। इसी वेद में पहली बार मातृभूमि की कल्पना की गई है। 

Wednesday, November 9, 2016

वेद सार - 79

भद्रं कर्णेभि: शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षाभिर्यजत्रा।
 स्थिरैरड्गैस्तुष्टुवा œसस्तनूमिव्र्यशेमहि देवाहितं यदायु : ।।

                                                                         यजुर्वेद:-25/11
भावार्थ :-
भद्रम - कल्याण को ही
कर्णेभि: - कानों से
श्रृणुयाम- हमलोग सुनें
देवा:- हे देवेश्वर
पश्येम - हम सदा देखें
अक्षमि - आंखों से
यजत्रा: - हे यजनीयश्वर
स्थिरै - दृढ़
अंड्गैै- अंग
उपांड्ग- श्रोत्रादि इन्द्रिय तथा सेनादि उपांग से
तुष्टुवांस:- आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें
देवाहितम् - इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक
यद - जो
आयु - आयु को।।

व्याख्या :- हे देवेश्वर। हमलोग कानों से सदैव भद्र कल्याण को ही सुने, अकल्याण की बात हम कभी न सुने। हे यजनीयेश्वर । हे यज्ञक त्र्तारो। हम आंखों से कल्याण(मंगलसुख) को ही सदा देखें।
हे जगदीश्वर। हमारे सब अंग उपांग सदा स्थिर रहें जिनसे हमलोग स्थिरता से आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें तथा हमलोग आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक आयु को विविध सुखपूर्वक प्राप्त हों अर्थात सदा सुख में ही रहें ।

Wednesday, November 2, 2016

वेद सार- 78

प्र तद्वोचेदमृत नु विद्वान गन्धर्वो धाम विभृतं गुहा सत।
त्रीणिं पदानि निहिता गुहास्य यस्तानि वेद स पितु: पिताऽसत् ।
                                                                                    यजुर्वेद -32/9


भावार्थ :-
 तद् - उस आपका
प्र वोर्चत् - उपदेश तथा धारण करना जानता है
अमृतम् - अमृत
नु - निश्चय से
विद्वान - विद्वान
गन्धर्व- सर्वगत ब्रह्म को धारण करने वाला
धाम - मुक्तों का धाम
विभृतम्- सबका धारण और पोषण करने वाला
गुहा - सबकी बुद्धि का साक्षी
सत- ब्रह्म ह
त्रीणि - तीन
पदानि - पद है, जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय करने के सामथ्र्य
निहिता - विद्यमान
अस्य - परमात्मा के
य:- जो
तानि - इनको
वेद - जानता है
स: -वह
पितु: - पिता का भी / विद्वानों में भी ।

व्याख्या:- हे वेदादिशास्त्र और विद्वानों के प्रतिपादन करने योग्य जो अमृत, मुक्तों का धाम, सर्वगत, सब का धारण और पोषण करने वाला, सब की बुद्धियों का साक्षी ब्रह्मा है वह आप का उपदेश तथा धारण जो विद्वान जानता है वह गन्धर्व कहलाता है। परमात्मा के तीन पद हैं -जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करने के सामथ्र्य, तथा ईश्वर को जो स्वहृदय में जानता है वह पिता का भी पिता है अर्थात विद्वानों में भी विद्वान है।