प्र तद्वोचेदमृत नु विद्वान गन्धर्वो धाम विभृतं गुहा सत।
त्रीणिं पदानि निहिता गुहास्य यस्तानि वेद स पितु: पिताऽसत् ।
यजुर्वेद -32/9
भावार्थ :-
तद् - उस आपका
प्र वोर्चत् - उपदेश तथा धारण करना जानता है
अमृतम् - अमृत
नु - निश्चय से
विद्वान - विद्वान
गन्धर्व- सर्वगत ब्रह्म को धारण करने वाला
धाम - मुक्तों का धाम
विभृतम्- सबका धारण और पोषण करने वाला
गुहा - सबकी बुद्धि का साक्षी
सत- ब्रह्म ह
त्रीणि - तीन
पदानि - पद है, जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय करने के सामथ्र्य
निहिता - विद्यमान
अस्य - परमात्मा के
य:- जो
तानि - इनको
वेद - जानता है
स: -वह
पितु: - पिता का भी / विद्वानों में भी ।
व्याख्या:- हे वेदादिशास्त्र और विद्वानों के प्रतिपादन करने योग्य जो अमृत, मुक्तों का धाम, सर्वगत, सब का धारण और पोषण करने वाला, सब की बुद्धियों का साक्षी ब्रह्मा है वह आप का उपदेश तथा धारण जो विद्वान जानता है वह गन्धर्व कहलाता है। परमात्मा के तीन पद हैं -जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करने के सामथ्र्य, तथा ईश्वर को जो स्वहृदय में जानता है वह पिता का भी पिता है अर्थात विद्वानों में भी विद्वान है।
त्रीणिं पदानि निहिता गुहास्य यस्तानि वेद स पितु: पिताऽसत् ।
यजुर्वेद -32/9
भावार्थ :-
तद् - उस आपका
प्र वोर्चत् - उपदेश तथा धारण करना जानता है
अमृतम् - अमृत
नु - निश्चय से
विद्वान - विद्वान
गन्धर्व- सर्वगत ब्रह्म को धारण करने वाला
धाम - मुक्तों का धाम
विभृतम्- सबका धारण और पोषण करने वाला
गुहा - सबकी बुद्धि का साक्षी
सत- ब्रह्म ह
त्रीणि - तीन
पदानि - पद है, जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय करने के सामथ्र्य
निहिता - विद्यमान
अस्य - परमात्मा के
य:- जो
तानि - इनको
वेद - जानता है
स: -वह
पितु: - पिता का भी / विद्वानों में भी ।
व्याख्या:- हे वेदादिशास्त्र और विद्वानों के प्रतिपादन करने योग्य जो अमृत, मुक्तों का धाम, सर्वगत, सब का धारण और पोषण करने वाला, सब की बुद्धियों का साक्षी ब्रह्मा है वह आप का उपदेश तथा धारण जो विद्वान जानता है वह गन्धर्व कहलाता है। परमात्मा के तीन पद हैं -जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करने के सामथ्र्य, तथा ईश्वर को जो स्वहृदय में जानता है वह पिता का भी पिता है अर्थात विद्वानों में भी विद्वान है।
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