Wednesday, November 30, 2016

वेद सार - 80


 श्यामा सरूपं करणी पृथिव्या अध्युद्भृृता । 
    इदमूषु प्र साधय पुना रूपाणि कल्पयं ।। 
                                                   अथर्ववेद:-1/24/4

व्याख्या:- जैसे उत्तम वैद्य ओषधों से रोग को दूर कर रोगी को सभी प्रकार से स्वस्थ करके उसे सुख पहुंचाता है, उसी प्रकार दूरदर्शी पुरुष सभी विघ्नोंं को हटाकर कार्य सिद्धि करके आनंद भोगता है।

 यथा भूूतं च भव्यं च न बिभीतो न रिष्पत: । 
एवा में प्राण मा बिभे: ।। 
                                                     अथर्ववेद:-2/14/6

व्याख्या:- समर्थ और सत्य पथ पर चलने वाला व्यक्ति न अतीत में और न भविष्य में भयभीत होता है। वह सदैव विजयी होता है। भूत और भविष्य का विचार करके जो कर्म करते हैं, वे सदैव सुखी रहते हैं। 

No comments:

Post a Comment