Tuesday, November 20, 2012

छठ के मौके पर पटना के अदालतगंज घाट पर घटी घटना से दुखी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देर रात मीडियाकर्मियों को बुलाकर बात की। उन्होंने कहा कि यह हादसा काफी दुखदायी है। मैं इस घटना से अत्यधिक मर्माहत हूं। हादसे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। मेरी गहरी संवेदना मृतकों के परिजनों के लिए है। उन्होंने कहा-'विपक्ष की बातों का कोई मतलब है? मैं इसकी नोटिस भी नहीं लेता। वे अपना जमाना भूल गए। छठ में ही नारियल घाट (दानापुर) की नाव दुर्घटना में 80 लोग मरे थे। लेकिन अभी यह सब कहने-सुनने का मौका नहीं है। इंसानियत के नाते मेरी सबसे अपील है कि वे धीरज व संयम से काम लें। ... विपक्ष ने तो मधुबनी कांड को भी मुद्दा बना लिया था। क्या हुआ, कौन नहीं जानता है? वे तो लोग यह भी कह रहे हैं कि चचरी के पुल में करोड़ों का घोटाला कर लिया। बताइए, ये क्या है?Ó यह हादसा हमारे लिए बड़ी सबक है। इससे नसीहत ले हम आगे की कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा-'मैं खुद घाटों का निरीक्षण कर लौटा तो करीब सात बजे मुझे हादसे की जानकारी मिली। तत्काल सभी वरीय अधिकारियों को मौके पर जाकर राहत एवं बचाव कार्य करने तथा घाट पर फंसे लोगों को सुरक्षित निकालकर उन्हें घर तक पहुंचाने, घायलों की चिकित्सा कराने का निर्देश दिया। भगदड़ क्यों हुई, इसका पता लगाने के लिए प्रधान सचिव गृह से जांच कराई जा रही है। वे सभी बिन्दुओं पर गहराई से जांच कर रिपोर्ट सौंपेंगे। उन्होंने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया है। जांच रिपोर्ट आने के बाद जिम्मेदारी निर्धारित कर कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि सूचना मिली थी कि बिजली का तार गिरने से यह हादसा हुआ। बिजली बोर्ड के सदस्य को घटनास्थल पर भेजा गया। प्रारंभिक जांच से यह स्पष्ट हुआ कि चचरी पुल के टूटने से हादसा नहीं हुआ, न ही बिजली से कोई दुर्घटना हुई। पीपा पुल से घाट की तरफ ऊपर रास्ते में भगदड़ हुआ, जिसके कारण यह घटना घटी। क्या सीएम का इतना कह देने से हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों का राहत मिलेगी। यह तो समय ही बताएगा। हां यह जरूर है कि हर घटना को हम जीवन का सबक मानते हैं।

Thursday, November 1, 2012

राजनीतिक आत्ममंथन

 उचित समय है यह,
करने का राजनीतिक पुनर्विलोकन,
राजनीतिज्ञ आत्ममंथन करें,
और करें अवलोकन !!
लंबी जंग और कुर्बानी दी,
 मातृभूमि की रक्षा को।
 तब पाई थी स्वाधीनता,
 और जाने सर्वस्व को !!
 पाई स्वाधीनता अवश्‍य,
 मगर उलझ गए गोरे गालों में।
माता के हृदय को विभक्त किया,
 और बंट गए दो राष्ट्रों में !!
 हृदय विदृर्ण हुआ तब-तब,
 जब-जब सपूतों ने खेली खून की होली
 कहलानें को स्वतंत्र हुए,
 अपनाई आर्थिक ऋण की झोली !!
 लोकतंत्र की आंधी आई थी,
 बीते लगभग बरस साठ
अपने साथ सपन लाई थी,
सबकुछ होगा सबके पास !!
 वादों के बोझों को जनता,
 आज रही है कंधों झेल
हे राजनीतिज्ञों! कब दोगे इससे मुक्ति,
 जब हो जाएगा हर्ट फेल !!
 लोकतंत्र की इच्जत उतरी,
बीबी ने भी कुर्सी पकड़ ली।
दांव लगाई और चारा खाई
सफल राजनीतिज्ञ भी बन गया भाई !!
 मंदिर बॉटी, मस्जिद बॉटी,
 और बॉटे गुरुद्वारे।
इससे भी न हुआ तो,
अगड़े-पिछड़ों में बॉट दिए सारे !!
तुम भी काटो, हम भी काटें,
 बिना लिए लगाम।
 सत्ता को कैसे भी पाओ,
चाहे जाए हजारों जान !!
 लोकतंत्र की नीति बनाओ,
 सदन में मल्लयुद्ध कराओ।
 सत्ताधारी चाहे जो भी करें,
 होगे वो बदनाम !!
कहलाने को लोकतांत्रिक कहलाते,
 इसकी व्यवस्था को न ला पाते।
समय-समय पर बहस करवाते,
 लेते रहते हजारों जान !!
 आओ समय है समझें-संभले,
बिना किसी अभिमान।
 राजनीतिज्ञों! कहो अभी भी,
 कितनें लोगे जान? !!
उचित समय है यह,
 करने का राजनीतिक पुनर्विलोकन।
 राजनीतिज्ञ आत्ममंथन करें,
 और करें अवलोकन !।