Saturday, April 23, 2011

इतिहास का साक्षी लाजपत पार्क बहा रहा आंसू

भागलपुर के मध्य में स्थित लाजपत पार्क जो जंगे आजादी के दिनों से लेकर आज तक इतिहास के कई अध्यायों का गवाह रहा है। स्वतंत्रता सेनानी दीपनारायण सिंह ने 30 एकड़ जमीन दान में देकर तात्कालिन तड़वन्ना में लाजपत पार्क की नींव रखी। दीप बावू ने पंजाब केशरी लाला लाजपत राय जिनको 1928 ई. में साइमन कमीशन का विरोध करने को लेकर लाहौर में अंगे्रजी हुकूमत के आदेश पर बर्बरता पूर्वक पीटा गया। जिसको लेकर तत्कालीन भारतवर्ष में एक भूचाल सा आ गया और इसी पिटाई के बाद लाला लाजपत राय की मौत हो गयी थी,के सम्मान में आजादी के दिवानों के लिए एक प्लेटफार्म के रूप में विकसित किया। यहां आजादी के दिवानों ने 'इंकलाव जिंदावादÓ, 'अंग्रेजों भारत छोड़ोÓ के नारों को बुलंदी दी।
सन् 1934 ई. में प्रलयंकारी भूकंप के बाद जब महात्मा गांधी यहां आए तो इसी पार्क में उन्होंने जनता को अपना संदेश दिया था। 1942 ई.के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजी वस्त्रों की होलीका भी यहीं जलाई गयी थी। जंगे आजादी के दिनों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस, खान अब्दुल गफ्फार खां, आचार्य कृपलानी, सरोजनी नायडू, डा. राजेन्द्र प्रसाद आदि ने इसी पार्क में विशाल जन समूह को संबोधित किया था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन 1974 ई. के आदोलन में जय प्रकाश नारायण ने नौजवानों को 'जाग रे तरूणाईÓ का संदेश यहीं दिया था। कई दफा आम चुनावों में अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी सरीखे नेताओं ने इसी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया। वहीं इतिहास की गाथा कहलाने वाली इस पावन धरती को प्रशासन की उदासीनता ने जानवरों का चारागाह में तब्दील कर दिया है। इस पार्क में सालाना आयोजित होने वाले मेले, सर्कस, मीना बाजार, डिज्नीलैंड आदि से लिए गए कर जो कि नगर निगम वसूलती है का आधा हिस्सा भी इसके सौन्दर्यीकरण के नाम पर खर्च करता तो इतिहास का साक्षी यह मैदान अपनी दयनीय स्थिति पर आंसू नहीं बहाता।

डा. राजीव रंजन ठाकुर
भागलपुर

Saturday, April 9, 2011

Gandhigiri relevant today

Anna Hazare's campaign was successful in delivering their message to the world. on 1930-1931 Gandhi's civil disobedience movement,after independence in 1977, Jayaprakash Narayan's movement show a glimpse of Anna Hazare in the nonviolence movement. The whole country stood with them. The one thing that emerged to lead the country right earring to what extent so-called public representatives have been hollow. They should have forced him to work the person had to be a Gandhian. Movement of people of all sections attachement tells what extent corruption Rupee leech sucks blood to all sections of the people that he was not able to revolt. Order problems associated with corruption. Its roots are very deep. After a gap to merge the whole world saw that all effective weapons today is how Gandhi and his principles.
Today the whole world is struggling to battle on every front is rough for them in Anna that this campaign is a sign that the issue no matter determined through the most trusted on anything you decided your bike and the target should not be activated to achieve success Acumeangee your step. Similarly, the act now - just Team India captain Mahendra Singh Dhoni is also shown.
Maybe after this movement Afalafal Ombudsman appointed under the Bill passed through Fiarkaparast some people are built like strangulation of democratic faith. Ombudsman under the guise of preparing to clamp down on the power of nature and autocracy and centralisation of power. After Bill passed only some of the Ombudsman's appointment is not to be. People need to truly swear that the corruption of minds with myself all the way to eliminate the person and purpose stand in opposition system, would clear the covenant and Karmana. Gandhiji always used to say that the utterances and actions to act in synergy with the true will succeed.

Dr. Rajiv Ranjan Thakur

आज भी प्रासंगिक है गांधीगीरी

अन्ना हजारे का अभियान दुनिया में अपने संदेश को पहुंचाने में सफल रहा। स्वतंत्रतापूर्व 1930-31 में गांधीजी का सविनय अवज्ञा,स्वतंत्रता पश्चात 1977 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की झलक अन्ना हजारे की इस अहिंसक आंदोलन में दिखी। सारा देश उनके साथ खड़ा हो गया। इससे एक बात तो सामने आई कि आज देश को सही नेतृत्व देने बाले तथाकथित जनप्रतिनिधि किस हद तक खोखले हो चुके हैं। जिस काम को उन्हें करना चाहिए था उसे मजबूरन एक गांधीवादी व्यक्ति को करना पड़ा। आंदोलन में हर तबके के लोगों का जुडऩा यह बताता है कि भ्रष्टाचार रूपी जोंक किस कदर हर तबके के लोगों का खून चूस रहा है कि वह चाहकर भी बगावत नहीं कर पा रहा था। भ्रष्टाचार व्यवस्था से जुड़ी हुई समस्या है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। लंबे अंतराल के बाद सारी दुनिया ने देखा कि हर मर्ज के लिए आज भी गांधी व उनका सिद्धांत कितना कारगर अस्त्र है।
आज जब सारी दुनिया हर मोर्चे पर किसी न किसी जंग से जूझ रही है ऐसे में उनके लिए अन्ना का यह अभियान एक संकेत है कि मुद्दा चाहे कुछ भी हो अगर दृढ़ प्रतिज्ञ होकर अपने आप पर सबसे ज्यादा भरोसा कर कुछ भी ठान लें और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्रियाशील हो जाएं तो सफलता आपका कदम चूमेंगी। इसी तरह का कारनामा अभी-अभी टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने भी कर दिखाया है।
रही बात लोकपाल की तो यह समय ही बताएगा कि वह कितना कारगर होगा। हो सकता है कि इस आंदोलन के फलाफल के बाद पारित विधेयक के तहत नियुक्त लोकपाल के जरिए कुछ फिरकापरस्त लोग लोकतंत्र की आस्था का गला घोंटने का मन बनाए हों। लोकपाल की आड़ में सत्ता पर निरंकुशवादी प्रवृति का शिकंजा कसने की तैयारी हो और सत्ता का केंद्र्रीयकरण हो जाए। केवल विधेयक पारित कर लोकपाल की नियुक्ति से कुछ होने को नहीं है। जरूरत है लोगों को सच्चे दिल से कसम खाने की कि वह जेहन से भ्रष्टाचार को खत्म करने में खुद के साथ ही हर वैसे व्यक्ति व तंत्र के विरोध में खड़ा होकर मनसा,वाचा और कर्मणा से निर्मल होगा। क्योंकि गांधीजी हमेशा कहा करते थे कि कथनी और करनी में तालमेल के साथ कर्म करने पर ही सच्ची सफलता मिलेगी।

डॉ. राजीव रंजन ठाकुर