Friday, September 9, 2022

पितृ पक्ष में भूलकर भी न करें ये काम

पितृ पक्ष या श्राद्ध के दौरान लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं। ऐसा मान्यता है कि पितृ पक्ष में मृत पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं। इससे इंसान का जीवन प्रभावित हो सकता है। ऐसे में लोग श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं। हालांकि, पितृपक्ष के कुछ नियम होते हैं, जिनका भूलकर भी उल्लघंन नहीं करना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान चावल, मांसा, लहसुन, प्याज, तामसिक और बाहर का भोजन करने से बचें। इस दौरान बैंगन की सब्जी भी नहीं खानी चाहिए। सात्विक भोजन करें। इसके अलावा श्राद्ध भोजन में मसूर, काली उड़द, चना, काला जीरा, काला नमक, काली सरसों और कोई भी अशुद्ध या बासी खाद्य पदार्थ का इस्तेमाल न करें। जिस इंसान को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करना है। उसको बाल, दाढ़ी यहां तक के नाखून भी नहीं काटने चाहिए. इस दौरान बिना धुले और गंदे कपड़े पहनने से भी परहेज करना चाहिए। कर्म करते समय चमड़े से बने किसी भी चीज को नहीं पहनना चाहिए। यहां तक के चमड़े के पर्स या बटुए को भी पास में नहीं रखना चाहिए। श्राद्ध कर्म के दौरान मंत्रों का जाप करते समय किसी के टोकने पर जरा भी न रुके। इसके पूरा करने से के बाद अन्य कार्य करें। पितृ पक्ष के दौरान किसी भी तरह के व्यसन से फल नहीं मिलता है। श्राद्ध के दिन कर्म करने वाले व्यक्ति को बार-बार भोजन करने से बचना चाहिए। ऐसा करना अच्छा नहीं माना जाता। इससे पितर नाराज होते हैं। पूजा के लिए लोहे के बर्तनों का प्रयोग न करें। इसकी जगह पर सोने, चांदी, तांबे या कांसे के बर्तनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, पितृ पक्ष के दौरान किसी भी तरह की नई वस्तु को खरीदने से बचना चाहिए। जरूरत होने पर भी न नए कपड़े खरीदे और न ही पहनें।

Friday, September 2, 2022

क्‍यों बीच से बंटा है केले का पत्‍ता

केले के पत्ते के बंटवारे की यह कथा भगवान श्रीराम के लिए हनुमान जी की भक्ति का अनुपम उदाहरण है। भगवान राम लंका विजय के बाद हनुमान जी और पूरी वानर सेना के साथ अयोध्या पहुंचे। वहां इस ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ, जिसमें सारी वानर सेना आमंत्रित थी। सुग्रीवजी ने वानरों को समझाया- यहां हम मेहमान हैं। सबको यहां बहुत शिष्टता दिखानी है, ताकि वानरों को लोग अभद्र न कहें। वानरों ने अपनी जाति का मान रखने के लिए सतर्क रहने का वचन दिया। एक वानर ने सुझाव दिया, ‘वैसे तो हम शिष्टाचार का पूरा प्रयास करेंगे, लेकिन हमसे कोई चूक न होने पावे, इसके लिए हमें मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी। आप किसी को हमारा अगुवा बना दें, जो हमें मार्गदर्शन देता रहे। हम पर नजर रखे और यदि वानर आपस में लड़ने-भिड़ने लगें, तो उन्हें रोक सके।’ हनुमानजी अगुआ बने। भोज के दिन हनुमानजी सबके बैठने आदि का इंतजाम देख रहे थे। व्यवस्था सुचारु बनाने के बाद वह श्रीराम के पास पहुंचे। श्रीराम ने हनुमानजी को आत्मीयता से कहा, ‘हनुमानजी आप भी मेरे साथ बैठकर भोजन करें।’ एक तरफ तो प्रभु की इच्छा थी। दूसरी तरफ यह विचार कि संग भोजन करने से कहीं प्रभु के मान की हानि न हो। हनुमानजी धर्मसंकट में पड़ गए। वह अपने प्रभु के बराबर बैठना नहीं चाहते थे। प्रभु के भोजन के उपरांत ही वह प्रसाद ग्रहण करना चाहते थे। इसके अलावा बैठने का कोई स्थान शेष नहीं बचा था और न ही भोजन के लिए थाली के रूप में प्रयुक्त होने वाला केले का पत्ता बचा था, जिसमें भोजन परोसा जाए। प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी के मन की बात भांप ली। उन्होंने पृथ्वी को आदेश दिया कि वह उनके बगल में हनुमानजी के बैठने भर भूमि बढ़ा दें। प्रभु ने स्थान तो बना दिया, पर एक और केले का पत्ता नहीं बनाया। वह हनुमानजी से बोले, ‘आप मुझे पुत्र समान प्रिय हैं। आप मेरी ही थाली (केले का पत्ता) में भोजन करें।’ इस पर श्री हनुमान जी बोले, ‘प्रभु मुझे कभी भी आपके बराबर होने की अभिलाषा नहीं रही। जो सुख सेवक बनकर मिलता है, वह बराबरी में नहीं मिलेगा। इसलिए आपकी थाल में खा ही नहीं सकता।’ श्रीराम ने समस्त अयोध्यावासियों के समक्ष वानर जाति का सम्मान बढ़ाने के लिए कहा, ‘हनुमान, मेरे हृदय में बसते हैं। हनुमान की आराधना का अर्थ है स्वयं मेरी आराधना। यदि कोई मेरी आराधना करता है, लेकिन हनुमान की नहीं, तो वह पूजा पूर्ण नहीं होगी। फिर श्रीराम ने अपने दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के बीचोंबीच एक रेखा खींच दी, जिससे वह पत्ता जुड़ा भी रहा और उसके दो भाग भी हो गए। इस तरह भक्त और भगवान दोनों के भाव रह गए। श्रीराम की कृपा से केले का पत्ता दो भाग में बंट गया। भोजन परोसने के लिए केले के पत्ते को सबसे शुद्ध माना जाता है। शुभ कार्यों में देवों को भोग लगाने में आज भी केले के पत्ते का प्रयोग होता है।