Saturday, July 30, 2016

नाद की उत्पत्ति और ऊर्जा का संचार करता है डमरू


कैलाशपति के मंदिर से डमरू की डमग डम डम निकले....।
सचमुच कितना आनंद मिलता है डमरू की घ्वनि सुनकर। शिव डमरू बजाते हैं और विभोर होने पर नृत्य भी करते हैं। यह प्रलयंकर की मस्ती का प्रतीक है। व्यक्ति उदास, निराश और खिन्न, विपन्न बैठकर अपनी उपलब्ध शक्तियों को न खोए, पुलकित- प्रफुल्लित जीवन जिए। शिव यही करते हैं, इसी नीति को अपनाते हैं। उनका डमरू ज्ञान, कला, साहित्य और विजय का प्रतीक है। डमरू की ध्वनि यह संदेश देती है कि शिव कल्याण के देवता हैं। उनके हर शब्द में सत्यम, शिवम्,सुन्दरम् की ही ध्वनि निकलती है। डमरू से निकलने वाली सात्विकता की ध्वनि सभी को मंत्रमुग्ध सा कर देती है और जो भी उनके समीप आता है अपना सा बना लेती है।
डमरू की दोनों लड़ी(जिसकी चोट  से आवाज उत्पन्न होती है) के मिलने से नारंगी के समान एक गोल आकृति बनती है जो ऊर्जा से युक्त धाराओं का बना एक पॉवर-सर्किट होता है। जिसके दोनों पेदों पर ऊर्जधाराएं अन्दर जा रही होती है। वह बाहर के शून्य से घर्षण करता घूमता हुआ ऊपर फव्वारा छोड़ता है और निचे जेट की तरह ऊर्जाधारा छोड़ता हुआ क्रियाशील हो जाता है। इसके बीच में यह डमरू की आकृति होती है जो निश्चित नियमों से  स्वचालित होकर एक- दूसरे में पंप करने लगते है। यही पहली संरचना है  जिसके केंद्र में चेतना की उत्पत्ति होता है। इसी डमरू के बजने से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती है जो पहले एक सूक्ष्म परमाणु के रूप में उत्पन्न होता है।
भगवान भेलेनाथ अपने हाथ में जो डमरू पकड़े हैं वो अनहद नाद का प्रतीक है। ऐसा नाद जो हमारे घट में गुरु कृपा से ही श्रवण होता है।
पुराणों के अनुसार भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। यह मंत्र से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता हैं। इन मंत्रों की एक माला (108 मंत्र) का जप प्रतिदिन करने से कोई भी कठिन कार्य शीघ्र सिद्ध हो जाता है।

शिव सूत्र रूप मंत्र इस प्रकार है-
'अइउण्, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्, ञमड.णनम्, भ्रझभञ, घढ़धश, जबगडदश, खफछठथ, चटतव, कपय, शषसर, हल।
1-बिच्छू के काटने पर इन सूत्रों से झाडऩे पर विष उतर जाता है।
2-सर्प के काटने पर पीडि़त के कान में उच्च स्वर से इन सूत्रों का पाठ सुनाना चाहिए।
3-ऊपरी बाधा का आवेश जिस व्यक्ति पर आया हो उस पर इन सूत्रों से अभिमन्त्रित जल डालने से आवेश छूट जाता है।
4-इन सूत्रों को भोज पत्र पर लिखकर गले में बांधने से अथवा हाथ पर बांधने से प्रेत बाधा नष्ट हो जाती है।
5-ज्वर, सन्निपात, तिजारी, चौथिया आदि इन सूत्रों द्वारा झाडऩे से शीघ्र छूट जाता है।
6-उन्माद या मिर्गी आदि रोग से पीडि़त होने पर सूत्रों से झाडऩा चाहिए तथा प्रतिदिन जल को अभिमन्त्रित करके पिलाना चाहिए।

Friday, July 29, 2016

कुछ सरल उपाय जिससे शिव होते हैं प्रसन्न

रूद्र संहिता में कहा गया है -'ऊं तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र प्रचोदयात्Ó।।
शिव को देवों का देव कहते हैं। इन्हें शंकर, भोलेनाथ, महादेव, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ भक्तों पर शीघ्र की प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। शिव की पत्नी माता पार्वती हैं जो शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं। इनके दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश पर्वत पर उनका वास है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं।
शिव पुराण के अनुसार कुछ ऐसे सरल उपाय हैं जिससे भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं-
1. शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से शिव की कृपा मिलती है।
2. बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ- साथ शिव को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है।
3. शिवरात्रि पर धतुरा, भांग और आक चढाने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं।
4. शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की भक्तिभाव से पूजा करने से भी मनोवांक्षित फल प्राप्त होता है।
5. ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
6. गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
7. मुकद्दमों , युद्ध एवं प्रतियोगिताओं में सफलता के लिए अष्टधातु से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
8.सर्व सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
9. पारे के शिवलिंग को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है।
10.शिवपुराण का पाठ करने से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करते हैं।
11. शिव को स्तुति प्रिय है। अत: स्तुतियों से भगवान शिव की आराधना करें। रुद्राष्टक, पंचाक्षर, मानस, द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करें।

इन आसान मंत्रों का भी प्रयोग कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करें

1.ऊॅंनम: शिवाय

2.प्रौं ह्रीं ठ:

3.ऊर्ध्व भू फट्

4.इं क्षं मं औं अं

5.नमो नीलकण्ठाय

6.ऊॅ पार्वतीपतये नम:

7.ऊॅ ह्रीं ह्रौं नम: शिवाय।

8.ऊॅ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।

Wednesday, July 27, 2016

वेद सार - 55


चतु: स्रक्तिर्नाभिर्ऋतस्य सप्रथा: स नो विश्वायु: सप्रथा: स न: सप्रथा:।
 अप द्वेषोऽअप ह्वरोडन्यव्रतस्य सश्चिम।
                                                                             यजुर्वेद:-38/20

भावार्थ :-
चतु: स्रक्ति - चार कोण वाली
नाभि - मर्मस्थान
ऋतस्य - ऋत की भरी नैरोग्य और विज्ञान का घर
सप्रथा: - विस्तीर्ण सुखयुक्त
स: - वह
न: - हमारी
विश्वायु : - पूर्ण आयु हो
सप्रथा: - जैसे सर्वसामथ्र्य से विस्तीर्ण हो वैसे आप
सर्वायु: - सर्वायु
अपद्वेष: - द्वेष रहित
अपह्वर: - चलन / कंपन रहित हो अन्यव्रतस्य - आपकी आज्ञा और आपसे भिन्न को लेशमात्र भी ईश्वर न मानें यही हमारा व्रत है
सश्चिम - आपको सदा सेवे


व्याख्या :- हे महावैद्य सर्व रोग नाशकेश्वर। ऋत की भरी चार कोणों वाली नाभि , नैरोग्य और विज्ञान का घर विस्तीर्ण सुखयुक्त आप की कृपा से हो तथा आप की कृपा से पूर्ण आयु हो। आप जैसे सर्व सामथ्र्य विस्तीर्ण हो वैसे ही विस्तृत सुख से विस्तार सहित सर्वायु हमको दीजिए।
हे ईश्वर हम द्वेष रहित आपकी कृपा से तथा चलन रहित हो। आप की आज्ञा और आप से भिन्न को लेशमात्र भी ईश्वर न मानें, यही हमारा व्रत है। इससे अन्य व्रत को कभी न मानें किंतु आप को सदा सेवें। यही हमारा परमनिश्चय है। इस परम निश्चय की रक्षा आप की कृपा से करें।

Tuesday, July 26, 2016

अद्भुत करुणामयी हैं भोलेनाथ

   कितने करुणामयी हैं भोलेनाथ। समस्त प्राणियों को चाहे वह किसी भी अवस्था में क्यों न हो उनके लिए अपने आप को स्व:सुलभ बना लिया है। उनके कल्याण के लिए आर्यावर्त के विभिन्न दिशाओं में 12 महत्वपूर्ण स्थलों पर विभिन्न नाम से विभिन्न प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने के लिए विराजमान हो गए हैं। इतना ही नहीं द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् और द्वादश ज्योतिर्लिंग स्मरणम् में स्पष्ट कहा गया है कि पूजा-पाठ, तपस्या, साधना के इतर भी अगर प्राणि प्रात: व संध्या काल इन 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम का मात्र स्मरण कर लेता है तो उसके सात जन्मों के किए हुए पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य मात्र इन 12 ज्योतिर्लिंगों के स्तोत्र का पाठ कर लेता है वह इनके दर्शन से होने वाले फल को प्राप्त कर सकता है।
    लिंग पुराण में स्वयं भगवान आशुतोष ने कहा है कि आर्यावर्त की इस पवित्र भूमि पर मैं प्राणियों में भक्ति भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से सोमनाथ के रूप में दंभ और अहंकार का नाश करने के लिए, मल्लिकार्जुन में संतजनों को मोक्ष देने के लिए ,प्राणियों को मृत्यु के भय के निवारण के लिए महाकाल, प्राणियों के कल्याण व उसको भव सागर से पार उतारने के लिए ऊंंकारेश्वर, समस्त रोगों के निवारण और कामनाओं की पूर्ति के लिए वैद्यनाथ, दुष्टों का संहार करने के लिए भीमशंकर, समस्त तापों से मुक्ति के लिए रामेश्वरम्, परम पद प्रदान के लिए नागेश, प्राणियों को पाप की छाया से दूर करने के लिए विश्वनाथ, समस्त पातकों को नष्ट करने के लिए त्रिम्बकेश्वर, समस्त कल्याण कारक के रूप में केदारनाथ एवं प्राणियों को पुत्र शोक से मुक्ति प्रदान करने के लिए धुश्मेश्वर नामक लिंग के रूप में विराजमान हूं। इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों का जो भी प्राणी अपने जीवन काल में पूजा-आराधना कर लेता है उसका पुनर्जन्म कतई नहीं हो सकता है। इतना ही नहीं इन दोनों स्तोत्रो के द्वारा शार्टकट में सदा शिव ने समस्त चराचर जगत को यह तक बता दिया है कि तुम अगर पूर्णरूपेण अक्षम हो, अधम हो, पापी हो या कुछ भी हो। अगर मेरे इन 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा कर पाने में सक्षम नहीं हो तो द्वादश ज्योतिर्लिंग स्मरण व स्तोत्र का स्मरण मात्र से ही तुम मेरी शरण में आ सकते हो, मुझे प्राप्त कर सकते हो, मेरी कृपा प्राप्त कर सकते हो।
    सचमुच भोलेनाथ जगत के कितने हितैषी हैं यह तो इससे साफ जाहिर हो ही जाता है। तभी तो कहा गया है- एतानि द्वादश ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।

Thursday, July 21, 2016

वेद सार 54

गणानां त्वा गणपतिœ यं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिœ हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिœं हवामहे वसो मम। अहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।
                                                                                                                        यजुर्वेद- 3/19

भावार्थ:-
गणानाम् - हे समूहाधिपते आप मेरे सब समूहों के पति होने से
त्वा- आपको
गणपतिम-गणपति नाम से
हवामहे- ग्रहण करता हंू
प्रियाणाम्- मेरे प्रिय कर्मकारी,पदार्थ और जनों के पालक भी आप ही हो
प्रियपतिम्-प्रिय पति
हवामहे - मैं अवश्य जानूं
निधीनाम् - सब निधियों के पति होने से
निधिपतिम् - निश्चित निधिपति
वसो- हे वसो
मम - अपने सामथ्र्य का
अहम् - मैं
अजानि - दूर फेकूं
गर्भधम् - सब जगत को जिस सामथ्र्य से उत्पन्न किया है उस अपने सामथ्र्य का धारण और पोषण करने वाला।

व्याख्या : हे समूहाधिपते। आप मेरे सब समूहों के पति होने से आपको गणपति नाम से ग्रहण करता हूं। तथा मेरे प्रिय कर्मकारी पदार्थ और जनों के पालक भी आप ही हैं। इनमे आपको प्रियपति मैं अवश्य जानूं। इसी प्रकार मेरी सब निधियों के पति होने से आपको मैं निश्चित निधिपति जानूं।
     हे वसो। सब जगत को जिस सामथ्र्य से उत्पन्न किया है उस अपने सामथ्र्य का धारण और पोषण करने वाला आप को ही मैं जानूं। सबका कारण आपका सामथ्र्य है,यही सब जगत का धारण और पोषण करता है। यह जीवादि जगत तो जन्माता और मरता है। परंतु आप सदैव अजन्मा और अमृतस्वरूप हैं। आप की कृपा से अधर्म, अविद्या, दुष्टभावादि को दूर फेकूं। हमलोग आप की ही प्राप्ति की इच्छा करते हैं। सो आप अब शीघ्र हम को प्राप्त हों जो प्राप्त होने में आप थोड़ा सी विलंब करेंगे तो हमारा कुछ भी ठिकाना नहीं लगेगा।