कितने करुणामयी हैं भोलेनाथ। समस्त प्राणियों को चाहे वह किसी भी अवस्था में क्यों न हो उनके लिए अपने आप को स्व:सुलभ बना लिया है। उनके कल्याण के लिए आर्यावर्त के विभिन्न दिशाओं में 12 महत्वपूर्ण स्थलों पर विभिन्न नाम से विभिन्न प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने के लिए विराजमान हो गए हैं। इतना ही नहीं द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् और द्वादश ज्योतिर्लिंग स्मरणम् में स्पष्ट कहा गया है कि पूजा-पाठ, तपस्या, साधना के इतर भी अगर प्राणि प्रात: व संध्या काल इन 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम का मात्र स्मरण कर लेता है तो उसके सात जन्मों के किए हुए पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य मात्र इन 12 ज्योतिर्लिंगों के स्तोत्र का पाठ कर लेता है वह इनके दर्शन से होने वाले फल को प्राप्त कर सकता है।
लिंग पुराण में स्वयं भगवान आशुतोष ने कहा है कि आर्यावर्त की इस पवित्र भूमि पर मैं प्राणियों में भक्ति भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से सोमनाथ के रूप में दंभ और अहंकार का नाश करने के लिए, मल्लिकार्जुन में संतजनों को मोक्ष देने के लिए ,प्राणियों को मृत्यु के भय के निवारण के लिए महाकाल, प्राणियों के कल्याण व उसको भव सागर से पार उतारने के लिए ऊंंकारेश्वर, समस्त रोगों के निवारण और कामनाओं की पूर्ति के लिए वैद्यनाथ, दुष्टों का संहार करने के लिए भीमशंकर, समस्त तापों से मुक्ति के लिए रामेश्वरम्, परम पद प्रदान के लिए नागेश, प्राणियों को पाप की छाया से दूर करने के लिए विश्वनाथ, समस्त पातकों को नष्ट करने के लिए त्रिम्बकेश्वर, समस्त कल्याण कारक के रूप में केदारनाथ एवं प्राणियों को पुत्र शोक से मुक्ति प्रदान करने के लिए धुश्मेश्वर नामक लिंग के रूप में विराजमान हूं। इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों का जो भी प्राणी अपने जीवन काल में पूजा-आराधना कर लेता है उसका पुनर्जन्म कतई नहीं हो सकता है। इतना ही नहीं इन दोनों स्तोत्रो के द्वारा शार्टकट में सदा शिव ने समस्त चराचर जगत को यह तक बता दिया है कि तुम अगर पूर्णरूपेण अक्षम हो, अधम हो, पापी हो या कुछ भी हो। अगर मेरे इन 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा कर पाने में सक्षम नहीं हो तो द्वादश ज्योतिर्लिंग स्मरण व स्तोत्र का स्मरण मात्र से ही तुम मेरी शरण में आ सकते हो, मुझे प्राप्त कर सकते हो, मेरी कृपा प्राप्त कर सकते हो।
सचमुच भोलेनाथ जगत के कितने हितैषी हैं यह तो इससे साफ जाहिर हो ही जाता है। तभी तो कहा गया है- एतानि द्वादश ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।
लिंग पुराण में स्वयं भगवान आशुतोष ने कहा है कि आर्यावर्त की इस पवित्र भूमि पर मैं प्राणियों में भक्ति भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से सोमनाथ के रूप में दंभ और अहंकार का नाश करने के लिए, मल्लिकार्जुन में संतजनों को मोक्ष देने के लिए ,प्राणियों को मृत्यु के भय के निवारण के लिए महाकाल, प्राणियों के कल्याण व उसको भव सागर से पार उतारने के लिए ऊंंकारेश्वर, समस्त रोगों के निवारण और कामनाओं की पूर्ति के लिए वैद्यनाथ, दुष्टों का संहार करने के लिए भीमशंकर, समस्त तापों से मुक्ति के लिए रामेश्वरम्, परम पद प्रदान के लिए नागेश, प्राणियों को पाप की छाया से दूर करने के लिए विश्वनाथ, समस्त पातकों को नष्ट करने के लिए त्रिम्बकेश्वर, समस्त कल्याण कारक के रूप में केदारनाथ एवं प्राणियों को पुत्र शोक से मुक्ति प्रदान करने के लिए धुश्मेश्वर नामक लिंग के रूप में विराजमान हूं। इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों का जो भी प्राणी अपने जीवन काल में पूजा-आराधना कर लेता है उसका पुनर्जन्म कतई नहीं हो सकता है। इतना ही नहीं इन दोनों स्तोत्रो के द्वारा शार्टकट में सदा शिव ने समस्त चराचर जगत को यह तक बता दिया है कि तुम अगर पूर्णरूपेण अक्षम हो, अधम हो, पापी हो या कुछ भी हो। अगर मेरे इन 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा कर पाने में सक्षम नहीं हो तो द्वादश ज्योतिर्लिंग स्मरण व स्तोत्र का स्मरण मात्र से ही तुम मेरी शरण में आ सकते हो, मुझे प्राप्त कर सकते हो, मेरी कृपा प्राप्त कर सकते हो।
सचमुच भोलेनाथ जगत के कितने हितैषी हैं यह तो इससे साफ जाहिर हो ही जाता है। तभी तो कहा गया है- एतानि द्वादश ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।
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