Friday, May 12, 2017

वेद सार- 105



यत संयमो न वि यमो वि यमो यन्‍न संयम।

इन्‍द्रजा: सोमजा आथर्वणमसि व्‍याघ्रजम्‍भनम।।

                                          अथर्ववेद –4/3/7

व्‍याख्‍या--  हिंसक प्रवृत्तियों वाले व्‍याघ्रादि को अधीन करने के लिए अथर्वा दवारा प्रयुक्‍त और इन्‍द्र तथा सोम दवारा प्रकट नियम यह है कि जहां संयम सफल ना हो वहा दमन का प्रयोग किया जाय और जहां दमन की आवश्‍यकता ना हो वहां संयम से कार्य करना ही उपयुक्‍त है।
  
उदुषा उदु सूर्य उदिदं मामकं वच।

उदेजतु प्रजापतिर्वृषा शुष्‍मेण वाजिना।।   

                                           अथर्ववेद—4/4/2
व्‍याख्‍या—बलशाली वीर्य से संपन्‍न करने वाले हे सूर्य हमारा यह मंत्र युक्‍त वचन भी इस वीर्य की वृदिध करने वाला हो । उषा भी वीर्य से उद़ध्‍ृत्र करे । प्रजापति भी बल –वीर्य से संपन्‍न करे।


Friday, April 14, 2017

वेद सार--104



उदुत्‍सं शतधारं सहस्‍त्रधारमक्षितम।
एवास्‍माकेदं धान्‍यं सहस्‍त्रधारमक्षितम।।

                        अथर्ववेद—3/24‍/4

व्‍याख्‍या-- हजारों धाराओं से प्रवाहित होने पर जल की उत्‍नत्ति का स्‍थान खाली नहीं होता, इसी प्रकार हमारा धन अनेक रूपों में व्‍यय होने के पश्‍चात भी सदा स्थित रहता है।


शतहस्‍त समाहार सहस्‍त्रहस्‍त सं किर।
कृतस्‍य कार्यस्‍य चेह स्‍फातिं समावह।।  


                  अथर्ववेद—3/24‍/5


व्‍याख्‍या-- हे मनुष्‍यो अपने दवारा किए गए और किए जानेवाले कार्यों की वृदिध के निमित्‍त सैकङों हाथों वाले होकर धन का संचय करो और हजारों हाथों वाले होकर उसका दान करो।       

Friday, March 31, 2017

वेद सार - 103

येन वेहद बभूविथ नाशयामसि तत त्‍वत।   
इदं तदन्‍यत्र त्‍वदप दूरे नि दध्‍मसि।।
अथर्ववेद—3/23/1
व्‍याख्‍या– जिस पापजन्‍य व्‍याधि के कारण हे स्‍त्री तू बांझ हुई है उस व्‍याधि को हम तुझसे दूर करते हैं। यह व्‍याधि ि‍फर से उत्‍पन्‍न न हो इसलिए इसे हम तुझसे दूर करते हैं।  


आ ते योनिं गर्भ एतु पुमान बाण इवेषुधिम ।
आ वीरोत्र जायतां पुत्रस्‍ते दशमास्‍य:।।
 अथर्ववेद—3/23/2
व्‍याख्‍या– तरकस में बाण के प्रवेश करने के समान ही हे स्‍त्री पुंसत्‍व से युक्‍त गर्भ को तेरे गर्भाशय में स्‍थापित करते हैं। इस गर्भ से दश माह के उपरांत वीर पुत्र की उत्‍पत्ति हो।    

कृणोभि ते प्राजापत्‍यमा योनिं गर्भ एतु ते।    
विन्‍दस्‍व त्‍वं पुत्रं नारि यस्‍तुभ्‍यं शमसच्‍छतुमु तस्‍मै त्‍वं भव।।
अथर्ववेद—3/23/5
व्‍याख्‍या– हे स्‍त्री प्रजापति द़वारा बनाए प्रजनन संबंधी नियमानुसार हम तेरे निमित्‍त यह विधान करते हैं । इस विधान के द़वारा गर्भाशय में गर्भ की स्‍थापना हो तथा तुझे सुख प्रदान करने वाले पुत्र की प्राप्ति हो।


वेद सार - 102

येन  हस्‍ती वर्चसा सम्‍वभूव येन राजा मनुष्‍येष्‍वप्‍स्‍वन्‍त:
येन देवा देवतामग्र आयन्‍तेन मामद़य वर्चसाग्‍ने वर्चस्विनं कृणु ।।
                                       अथर्ववेद—3/22/3
व्‍याख्‍या – जिस तेज से जलचर प्राणी शक्तिसंपन्‍न होते हैं, राजा मनुष्‍यों में तेजस्‍वी होता है और जिस तेज के द़वारा देवों ने सर्वप्रथम देवत्‍व प्राप्‍त किया तथा जिससे हाथी बलवान होता है, वह तेज हमें यशस्‍वी करे।     


Friday, March 3, 2017

वेद सार - 101



सोमं राजानमवसे
ग्निं गीर्भिर्हवामहे। 

आदित्‍यं विष्‍णु सूर्य ब्रहमाणं च बृहस्‍पतिम।।

                                                   अथर्ववेद—3/4‍/20

व्‍याख्‍या- हम अपनी सुरक्षा के निमित्‍त राजा सोम , अग्नि आदित्‍यगण विष्‍णु सूर्य प्रजापति ब्रहमा तथा र्बृहस्‍पति आदि देवताओं को स्‍तोत्रों दवारा आहवाहित करते हैं।

यं त्‍वा होतारं मनसाभि संविदुस्‍त्रयोदश भौवना पंच मानवा ।

वर्चोधसे यशसे सून्‍तत्‍तावते तेभ्‍यो अग्निभ्‍यो हुतमस्‍त्‍वेतत।।

                                                  अथर्ववेद—3/5‍/21

व्‍याख्‍या- तेरह भौवन अर्थात संवत्‍सर के तेरह माह और पांच ॠतुएं देवों का आवाहन करने वाले जाने जाते हैं। उन वर्चस्‍वी, सत्‍यभाषी, कीर्तिवान और सत्‍यवाणी वाले तथा उनकी विभूति रूप अग्नियों के निमित्‍त यह हवि प्राप्‍त हो।

Saturday, February 25, 2017

वेद सार-100


उतेदानीं भगवन्‍त:  स्‍यामोत प्रपित्‍व उतमध्‍ये अहनाम।
उतोदितौ मघवन्‍त्‍सूर्यस्‍य वयं देवानां सुमतौ ।।
                                  अथर्ववेद—3/16/4
व्‍याख्‍या – तेरी कृपा से हे देव हम भाग्‍यशाली हों । दिन के प्रात: काल तथा मध्‍यकाल में भी हम भाग्‍यशाली ही रहें । हे धन के स्‍वामी भग देवता हम सूर्योदय के समय समस्‍त देवताओं की कृपा प्राप्‍त करने वाले हों।     
    
संशितं म इदं ब्रहम संशितं वीर्य बलम।
वृश्‍चामि शत्रुणां बाहूननेन हविषाहम ।।
                                   अथर्ववेद—3/19/1

व्‍याख्‍या –हमारा ब्रहमनत्‍व जाति से भ्रंश करने वाले दोष के मिटाने से तीक्ष्‍ण हो गया । अब यह उच्‍चारित मंत्र अत्‍यंत तेजस्‍वी और प्रभावशाली हो। इसके प्रभाव से हमारी शक्ति एवं पराक्रम में तेजस्विता आए ।     

Friday, February 24, 2017

वेद सार-99

येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन देवा धनमिच्‍छमान: ।   
तन्‍मे भूयो भवतु मा कनीयो ग्‍ने सातघ्‍नो देवान हविषा निषेध।।
                                   अथर्ववेद—3/15/5
व्‍याख्‍या – हे आग्‍ने लाभ के मध्‍य व्‍यवधान डालने वाले देवताओं को आहुति से संतुष्‍ट कर लौटा दे। हे देवगणो व्‍यापार में हमें धन की हानि न हो, तेरी कृपा से उसकी वञदिध होती रहे ।  

येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन देवा धनमिच्‍छमान:
तस्मिन स इन्‍द्रो रुचिमा दधातु प्रजापति: सविता सोमो अग्नि:।।  
                                  अथर्ववेद—3/15/6
व्‍याख्‍या –जिस धन के दवारा हम व्‍यापार करना चाहते हैं उसमें कोई कमी न आए तथा इन्‍द्र सविता प्रजापति सोम और अग्नि देवता हमारे मन को उस धन की ओर प्रेरित करें।

Saturday, February 4, 2017

वेद सार-- 98

जरायै त्‍वा परि ददामि जरायै नि ध्रुवामि त्‍वा।
जरा त्‍वा भद्रा नेष्‍ट व्‍यन्‍ये यन्‍तु मृत्‍युवो यावाहुरितरांछतम।।
                                  अथर्ववेद-- 3/3/7
व्‍याख्‍या—हे रोगमुक्‍त पुरुष हम तुझे वृदधावस्‍था तक जीवित रहने वाला बनाते हैं तथा वृदधावस्‍था  तक रोगों से तेरी रक्षा करते हैं। विदवान मृत्‍यु के कारणररूप जिन रोगों के विषय में कहते हैं , वे सभी रोग स्‍वयं दूर हो जाएं ।

संजग्‍माना अविभ्‍युरस्मिन गोष्‍ठे करीषिणो:।  
विभ्रती: सौम्‍यं मध्‍वनमीवा उपेतन।।    
                                 अथर्ववेद-- 3/11/7
व्‍याख्‍या– गोशाला में निर्भय होकर विचरण करने वाली हे गौओ तुम पुत्र- पौत्रों से संपन्‍न होकर चिरकाल तक स्थित रहो। गोबर करती हुई तुम निरोग रहकर सौम्‍य दुग्‍ध धारण करती हुई आगमन करो।     


Monday, January 23, 2017

वेद सार--97

शप्तारमेतु शपथो य: सुहात्र्तेन: सह। चक्षुर्मन्त्रस्य दुर्हार्द: पृष्‍ठरपि शृणीमसि।।
                                                                                                      अथर्वर्वेद:-2/7/5
व्याख्या:-हमें शाप देने वाले को ही शाप लगे। अनुकूल रहने वाले व्यक्तियों से हमें सुख की प्राप्ति हो। हे मणे। अपने नेत्रों से घृणित संकेत करने वाले तथा गुप्त रूप से निंदा करने वाले मनुष्यों के नेत्रों और पाश्र्व को तू तोड़-फोड़ दे।


अग्ने यत् ते हरस्तेन तं प्रति हर योस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्म:।।
                                                                                                     अथर्वर्वेद:-2/19/2
व्याख्या:-हे हरणशक्ति वाले अग्ने जो हमसे द्वेष करता है या जिससे हम द्वेष करते हैं,उस शत्रु की शक्ति का तू हरण कर।

Sunday, January 22, 2017

वेद सार--96

सूर्य यत् ते तपस्तेन तं प्रति तप योस्मान् द्वेष्टि यं वचं द्विष्म:।।
                                                                            अथर्वर्वेद:-3/21/3
व्याख्या:- हे शक्तिमान सूर्य तू अपनी प्रज्जवल शक्ति द्वारा उन शत्रुओं को जला जो हमसे द्वेष करते हैं अथवा जिनसे हम द्वेष करते हैंं।

वायो यत् ते तेजस्तेनत यतेजसं कृणु योस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्म:।। 
                                                                             अथर्वर्वेद:-2/20/5
व्याख्या:-हे वशीभूत करने की शक्ति वाले वायु तू इस शक्ति के द्वारा उस शत्रु को तेजहीन कर दे,जो हमसे द्वेष करता है अथवा हम जिससे द्वेष करते हैं।

Saturday, January 21, 2017

वेद सार-95

यथेदं भूम्या अधि तृणं वातो मथायति।
एवा मथ्नामि ते मनो यथा मां कामिन्यसो यथा मन्नापगा अस:।।
                                                               अथर्वर्वेद:-2/30/5
व्याख्या:- जिस प्रकार वायु के फेर में पड़ा हुआ तृण निरंतर चक्कर काटता हुआ घूमता है,उसी प्रकार हे स्त्री हम तेरे मन को हिलाते हैं,जिससे तू हमारी इच्छा कर और हमें छोड़कर कहीं और न जाए।


अंगे अंगे लोम्नि लोम्नि यस्ते पर्वणि पर्वणि।
यक्ष्मं त्वचस्यं ते वचं कश्यपस्य वीबर्हेण विष्वञ्चं वि हामसि।। 
                                                             अथर्वर्वेद:-2/33/7
व्याख्या:-हे रोगिन तेरे समस्त अंगो एवं रोमकूपों से तथा प्रत्येक संधि भाग से जहां-जहां भी यक्ष्मा रोग का निवास हो वहां से उसे दूर करते हैं। 

Sunday, January 15, 2017

मध्‍यकालीन इतिहास का कर्टेन लेजर

मैं अपने व्‍लाग के प्रति वैश्विक स्‍तर पर पाठकों के जुडाव और उनकी अभिरुचि को देखते हुए मध्‍यकालीन भारतीय इतिहास से जुडी कुछ तथ्‍यों को किस्‍तों में पेश करूंगा जो न केवल आपके ज्ञान को समृदध करेगा बल्कि पेशेवर लोगों व वैसे छात्रों के लिए भी काफी मददगार साबित होगा जो किसी उच्‍चस्‍तरीय प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं या करने की सोच रहे हैं।  हलांकि संभव है कि बहुत कुछ आपलोग जानते भी हों वाबजूद मुझे उम्‍मीद है कि इस शीर्षक के अन्‍तर्गत छपने वाली सामग्री आपके लिए उपयोगी होगी। संबंधित सामग्री पर आपलोगों की क्‍या राय है या आपको इसका मीटिरियल कैसा लगा हमें कमेंट अवश्‍य भेजें।

डा. राजीव रंजन ठाकुर
  

वेद सार--94

नन रक्षांसि न पिशाचा: सहन्‍ते देवानामोज: प्रथमजं हयेतत ।
यो बिभर्ति दाक्षायणं हिरण्‍यं स जीवेषु कृणुते दीर्घमायु:।।  
                                     अथर्ववेद—1/35/2
व्‍याख्‍या—सुवर्ण के धारण करने वाले मानव को ज्‍वरादि रोग पीडि़त नहीं करते । मांसभक्षी पिशाच उसे दु:ख नहीं पहुंचा सकते क्‍योंकि वह हिरण्‍य (सोना) इन्‍द्रादि देवों से पहले ही उत्‍पन्‍न हुआ है। यह बल पैदा करने और शरीर पर धारण करने वाली आठवीं धातु है। जो मानव दाक्षायण सोना धारण करता है वह दीर्घायु को प्राप्‍त होता है।       

समानां मासामृतुभिष्‍टवा वयं संवत्‍सरस्‍य पयसापिपर्मि।
इन्‍द्राग्‍नि विश्‍वे देवास्‍ते नु मन्‍यन्‍तामहयर्णीयमाना:।।
                                    अथर्ववेद--- 1/35/4

व्‍याख्‍या—हे धन वैभव और ऐश्‍वर्य की कामना करने वाले मानव हम तुझे समान माह वाली ॠतुएं तथा संवत्‍सर पर्यन्‍त रहने वाले गौ दुग्‍ध आदि से युक्‍त करते हैं । इन्‍द्र अग्नि तथा सभी देवता हमारी त्रुटियों से क्रोधित न होकर स्‍वर्ण धारण करने से उत्‍पन्‍न फल प्रदान करें।               

Wednesday, January 11, 2017

वेद सार--93

   वि न इन्‍द्र मृघो जहि नीख यच्‍छ पृतन्‍यत:
अधमं गमया तमो यो अस्‍मां अभिदासति।। 
अथर्ववेद – 1/ 21/ 2 
व्‍याख्‍या-- हमारा शत्रु बनकर जो हमारे धन क्षेत्रादि को छीनकर हमारा विनाश कराना चाहता है हे इन्‍द्र तू उसे अंधेरों मे डाल । हमारे बैरियों का तू विनाश कर और हमारी सेनाओ द़वारा पराजित बैरियों को मुंह लटकाए भागने पर विवश कर दे।  

सुषूदत मृडत मृडया नस्‍तनूभ्‍यो मयस्‍तोकेभ्‍यस्‍कृधि ।।
अथर्ववेद—1/ 26/ 4
व्‍याख्‍या– आश्रय प्रदान करने वाले इन्‍द्रादि देवता हमें आनंदित करें हमारे अनिष्‍टों को दूर कर सुखी करें तथा हमारे पुत्र- पौत्रों को आरोग्‍य प्रदान करें।       




वेद सार--92

योन: स्‍वो यो अरण: सजात उत निष्‍टयो यो अस्‍मां अभिदासति ।
रुद्र: शरव्‍य यैतान ममामित्रान वि विध्‍यातु।।
                                  अथर्ववेद – 1 /19 / 3
व्‍याख्‍या– हमसे संग्राम करके, अधिकार को लेकर, हमें दास बनाने वाले हमारे स्‍वजन अथवा दूसरे अन्‍य लोग, सजातीय अथवा दूसरी जाति वाले छोटे लोग जो हमारे शत्रु हैं, रुद्रदेव उन्‍हें अपने हिंसक वाणों से छलनी करें।

: सपत्‍नो यो सपत्‍नो यश्‍च दिव पाति न:
देवास्‍तं सर्वे धूर्वन्‍तु ब्रहम वर्म ममान्‍तम।।
                                    अथर्ववेद – 1/ 19/ 4
व्‍याख्‍या– हमारे जो शत्रु गुप्‍त रूप से अथवा प्रकट होकर द़वेष भाव से हमारा संहार करने का प्रयत्‍न करें या हमें शापित करें उन शत्रुओं को सभी देवता समाप्‍त करें । कवचरूपी मंत्र हमारी सुरक्षा करे।