Wednesday, January 11, 2017

वेद सार--93

   वि न इन्‍द्र मृघो जहि नीख यच्‍छ पृतन्‍यत:
अधमं गमया तमो यो अस्‍मां अभिदासति।। 
अथर्ववेद – 1/ 21/ 2 
व्‍याख्‍या-- हमारा शत्रु बनकर जो हमारे धन क्षेत्रादि को छीनकर हमारा विनाश कराना चाहता है हे इन्‍द्र तू उसे अंधेरों मे डाल । हमारे बैरियों का तू विनाश कर और हमारी सेनाओ द़वारा पराजित बैरियों को मुंह लटकाए भागने पर विवश कर दे।  

सुषूदत मृडत मृडया नस्‍तनूभ्‍यो मयस्‍तोकेभ्‍यस्‍कृधि ।।
अथर्ववेद—1/ 26/ 4
व्‍याख्‍या– आश्रय प्रदान करने वाले इन्‍द्रादि देवता हमें आनंदित करें हमारे अनिष्‍टों को दूर कर सुखी करें तथा हमारे पुत्र- पौत्रों को आरोग्‍य प्रदान करें।       




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