शप्तारमेतु शपथो य: सुहात्र्तेन: सह। चक्षुर्मन्त्रस्य दुर्हार्द: पृष्ठरपि शृणीमसि।।
अथर्वर्वेद:-2/7/5
व्याख्या:-हमें शाप देने वाले को ही शाप लगे। अनुकूल रहने वाले व्यक्तियों से हमें सुख की प्राप्ति हो। हे मणे। अपने नेत्रों से घृणित संकेत करने वाले तथा गुप्त रूप से निंदा करने वाले मनुष्यों के नेत्रों और पाश्र्व को तू तोड़-फोड़ दे।
अग्ने यत् ते हरस्तेन तं प्रति हर योस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्म:।।
अथर्वर्वेद:-2/19/2
व्याख्या:-हे हरणशक्ति वाले अग्ने जो हमसे द्वेष करता है या जिससे हम द्वेष करते हैं,उस शत्रु की शक्ति का तू हरण कर।
अथर्वर्वेद:-2/7/5
व्याख्या:-हमें शाप देने वाले को ही शाप लगे। अनुकूल रहने वाले व्यक्तियों से हमें सुख की प्राप्ति हो। हे मणे। अपने नेत्रों से घृणित संकेत करने वाले तथा गुप्त रूप से निंदा करने वाले मनुष्यों के नेत्रों और पाश्र्व को तू तोड़-फोड़ दे।
अग्ने यत् ते हरस्तेन तं प्रति हर योस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्म:।।
अथर्वर्वेद:-2/19/2
व्याख्या:-हे हरणशक्ति वाले अग्ने जो हमसे द्वेष करता है या जिससे हम द्वेष करते हैं,उस शत्रु की शक्ति का तू हरण कर।
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