उदुत्सं शतऽधारं सहस्त्रधारमक्षितम।
एवास्माकेदं धान्यं सहस्त्रधारमक्षितम।।
                        अथर्ववेद—3/24/4
व्याख्या-- हजारों धाराओं से प्रवाहित होने पर जल की उत्नत्ति का स्थान खाली
नहीं होता, इसी प्रकार हमारा धन अनेक रूपों में व्यय होने के पश्चात
भी सदा स्थित रहता है। 
शतहस्त समाहार सहस्त्रहस्त सं किर।
कृतस्य कार्यस्य चेह स्फातिं समावह।।
 
                  अथर्ववेद—3/24/5
व्याख्या-- हे मनुष्यो अपने दवारा किए गए और किए जानेवाले कार्यों की वृदिध
के निमित्त सैकङों हाथों वाले होकर धन का संचय करो और हजारों हाथों वाले होकर
उसका दान करो।       
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