Saturday, February 4, 2017

वेद सार-- 98

जरायै त्‍वा परि ददामि जरायै नि ध्रुवामि त्‍वा।
जरा त्‍वा भद्रा नेष्‍ट व्‍यन्‍ये यन्‍तु मृत्‍युवो यावाहुरितरांछतम।।
                                  अथर्ववेद-- 3/3/7
व्‍याख्‍या—हे रोगमुक्‍त पुरुष हम तुझे वृदधावस्‍था तक जीवित रहने वाला बनाते हैं तथा वृदधावस्‍था  तक रोगों से तेरी रक्षा करते हैं। विदवान मृत्‍यु के कारणररूप जिन रोगों के विषय में कहते हैं , वे सभी रोग स्‍वयं दूर हो जाएं ।

संजग्‍माना अविभ्‍युरस्मिन गोष्‍ठे करीषिणो:।  
विभ्रती: सौम्‍यं मध्‍वनमीवा उपेतन।।    
                                 अथर्ववेद-- 3/11/7
व्‍याख्‍या– गोशाला में निर्भय होकर विचरण करने वाली हे गौओ तुम पुत्र- पौत्रों से संपन्‍न होकर चिरकाल तक स्थित रहो। गोबर करती हुई तुम निरोग रहकर सौम्‍य दुग्‍ध धारण करती हुई आगमन करो।     


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