येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन
देवा धनमिच्छमान: ।
तन्मे भूयो भवतु मा कनीयो
ग्ने सातघ्नो देवान हविषा निषेध।।
अथर्ववेद—3/15/5
व्याख्या – हे आग्ने लाभ
के मध्य व्यवधान डालने वाले देवताओं को आहुति से संतुष्ट कर लौटा दे। हे देवगणो
व्यापार में हमें धन की हानि न हो, तेरी कृपा से उसकी वञदिध होती रहे ।
येन धनेन प्रपणं चरामि धनेन
देवा धनमिच्छमान: ।
तस्मिन स इन्द्रो रुचिमा
दधातु प्रजापति: सविता सोमो अग्नि:।।
अथर्ववेद—3/15/6
व्याख्या –जिस धन के
दवारा हम व्यापार करना चाहते हैं उसमें कोई कमी न आए तथा इन्द्र सविता प्रजापति
सोम और अग्नि देवता हमारे मन को उस धन की ओर प्रेरित करें।
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