भद्रं कर्णेभि: शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षाभिर्यजत्रा।
स्थिरैरड्गैस्तुष्टुवा œसस्तनूमिव्र्यशेमहि देवाहितं यदायु : ।।
यजुर्वेद:-25/11
भावार्थ :-
भद्रम - कल्याण को ही
कर्णेभि: - कानों से
श्रृणुयाम- हमलोग सुनें
देवा:- हे देवेश्वर
पश्येम - हम सदा देखें
अक्षमि - आंखों से
यजत्रा: - हे यजनीयश्वर
स्थिरै - दृढ़
अंड्गैै- अंग
उपांड्ग- श्रोत्रादि इन्द्रिय तथा सेनादि उपांग से
तुष्टुवांस:- आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें
देवाहितम् - इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक
यद - जो
आयु - आयु को।।
व्याख्या :- हे देवेश्वर। हमलोग कानों से सदैव भद्र कल्याण को ही सुने, अकल्याण की बात हम कभी न सुने। हे यजनीयेश्वर । हे यज्ञक त्र्तारो। हम आंखों से कल्याण(मंगलसुख) को ही सदा देखें।
हे जगदीश्वर। हमारे सब अंग उपांग सदा स्थिर रहें जिनसे हमलोग स्थिरता से आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें तथा हमलोग आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक आयु को विविध सुखपूर्वक प्राप्त हों अर्थात सदा सुख में ही रहें ।
स्थिरैरड्गैस्तुष्टुवा œसस्तनूमिव्र्यशेमहि देवाहितं यदायु : ।।
यजुर्वेद:-25/11
भावार्थ :-
भद्रम - कल्याण को ही
कर्णेभि: - कानों से
श्रृणुयाम- हमलोग सुनें
देवा:- हे देवेश्वर
पश्येम - हम सदा देखें
अक्षमि - आंखों से
यजत्रा: - हे यजनीयश्वर
स्थिरै - दृढ़
अंड्गैै- अंग
उपांड्ग- श्रोत्रादि इन्द्रिय तथा सेनादि उपांग से
तुष्टुवांस:- आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें
देवाहितम् - इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक
यद - जो
आयु - आयु को।।
व्याख्या :- हे देवेश्वर। हमलोग कानों से सदैव भद्र कल्याण को ही सुने, अकल्याण की बात हम कभी न सुने। हे यजनीयेश्वर । हे यज्ञक त्र्तारो। हम आंखों से कल्याण(मंगलसुख) को ही सदा देखें।
हे जगदीश्वर। हमारे सब अंग उपांग सदा स्थिर रहें जिनसे हमलोग स्थिरता से आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें तथा हमलोग आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक आयु को विविध सुखपूर्वक प्राप्त हों अर्थात सदा सुख में ही रहें ।
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