Saturday, April 2, 2016

नवग्रह देवता श्रृंखला 6

                                    शुक्र देव

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शुक्राचार्य दानवों के पुरोहित हैं। ये योग के आचार्य हैं। मृतसंजीवनी विद्या के बल पर ये मरे हुए दानवों को भी जिला देते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्राचार्य ने दानवों के कल्यानार्थ अनेक कठिनतम व्रत का अनुष्ठान किया जिसे आज तक कोई नहीं कर पाया। इससे प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने इन्हें वर दिया कि तुम युद्ध में देवताओं को भी पराजित कर दोगे और तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा। साथ ही इन्हें धनों का अध्यक्ष और प्रजापति बना दिया। इतना ही नहीं इन्हें समग्र औषधियों, मंत्रों और रसों के भी स्वामी बना दिया गया। ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोकों के प्राण का परित्राण करने लगे। महाभारत के अनुसार कभी वृष्टि, कभी अवृष्टि, कभी भय, कभी अभय उत्पन्न कर वे प्राणियों के योग क्षेत्र का कार्य पूरा करते हैं। ये लोकों के लिए अनुकूल ग्रह हैं। इनके अधिदेवता इंद्राणी और प्रत्यधिदेवता इंद्र है। वृष और तुला राशि के स्वामी हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वर्ण श्वेत है।

शुक्रदेव का वाहन :- इनके रथ में अग्नि के समान वर्णवाले आठ घोड़े जूते होते हैं। रथ पर ध्वजाएं फहरती रहती है।

शुक्रदेव का परिवार :- शुक्राचार्य की दो पत्नियां है। एक का नाम गो है जो पितरों की कन्या है। वहीं दूसरी का नाम जयंती है जो देवराज इंद्र की पुत्री है। गो से इन्हें चार पुत्र हुए - त्वष्टा, वरुत्री, शंड़ और अमर्क जबकि जयंती से देवयानी का जन्म हुआ।

शुक्र की वक्र दृष्टि से :- कोढ़, पित्त, कफ संबंधी रोग, वीर्य विकार, नेत्र पीड़ा, मूत्र पीड़ा, गुदा रोग, गर्भाशय की कमजोरी, पेट का दर्द अथवा अण्डकोश में सूजन आदि होने की संभावना बनी रहती है।

शुक्र ग्रह के जप का वैदिक मंत्र :- ऊॅ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिवत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानर्ठ शुक्रमन्धरस इंद्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।

शुक्र ग्रह के जप का तांत्रिक मंत्र :- ऊं ह्रीं श्रीं शुक्राय नम:।

जपसंख्या :- 16 हजार। इसका दशांश 1600 तर्पण व इसका दशांश 160 मार्जन हवण करें। हवण में गूलर की लकड़ी का प्रयोग करें।

रत्न धारण - हीरा, जरकन या सफेद पुखराज की अंगुठी बनवाकर शुक्रवार को सूर्योदय काल में कनिष्ठा अंगुली में धारण करें। या फिर मजीदी या अरंडी की जड़ को सफेद कपड़े में बांधकर अभिषिक्त कर गले या बाजू में बांधे।

अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊॅं द्रां द्रींं स: शुक्राय नम: को 101 बार पढ़ें।

व्रत - शुक्रवार का व्रत करें और पूजा में सफेद पुष्प व सफेद वस्तुओं का ही यथासंभव प्रयोग करें।

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