उपहूताऽइह गावऽउपहूताऽअजवय:।
अथोऽन्नस्यकीलाल उपहूतो गृहेषु न:। क्षेमाय व: शान्त्यै प्रपधे शिवशग्मऽ शंय्यो: शंय्यो:।।
यजुर्वेद :-31/ 43
भावार्थ :-
उपहूता - नित्य स्थिर
इह - इस संसार में
गाव : - उत्तम गाय, भैंस, घोड़े, हाथी
अजावय: - बकरी, भेड़ तथा उपलक्षण से अन्य सुखदायक पशु
अथो - और
अन्नस्य - अन्न,सर्व रोगनाशक औषधियों का
कीलाल: - उत्कृष्ट रस
स्थिर - प्राप्त रख
गृहेषु - घरों में
न: - हमारे
क्षेमाय - कुशलता के लिए
ब : - तुम्हारे
शान्तयै - शांति
प्रपद्ये - मैं यथावत प्राप्त होऊं
शिवम् - मोक्ष सुख को
शग्मम् - इस संसार के सुख को
शंयो: - मोक्ष सुख की कामना, प्रजा सुख की कामना
व्याख्या: - हे पश्वाधिपते महात्मन् आप की कृपा से उत्तम गाय, भैंस, घोड़े, हाथी, बकरी, भेड़ तथा उपलक्षण से अन्य सुखदायक पशु और अन्य सर्व रोग नाशक औषधियों का उत्कृष्ट रस हमारे घरों में नित्य स्थिर रहे जिससे इस किसी पदार्थ के बिना कोई दु:ख न हो।
हे विद्वानो, तुम्हारे संग और ईश्वर की कृपा से क्षेम, कुशलता और शांति तथा सर्वोपद्रव विनाश के लिए मोक्ष सुख और इस संसार के सुख को मैं यथावत प्राप्त होऊं। मोक्ष सुख और प्रजा सुख इन दोनों की कामना करने वाला जो मैं हूं, मेरी उक्त दोनों कामनाओं को आप यथावत शीघ्र पूरा कीजिए। आपका यही स्वभाव है कि आपने भक्तों की कामना पूरी करते हैं।
अथोऽन्नस्यकीलाल उपहूतो गृहेषु न:। क्षेमाय व: शान्त्यै प्रपधे शिवशग्मऽ शंय्यो: शंय्यो:।।
यजुर्वेद :-31/ 43
भावार्थ :-
उपहूता - नित्य स्थिर
इह - इस संसार में
गाव : - उत्तम गाय, भैंस, घोड़े, हाथी
अजावय: - बकरी, भेड़ तथा उपलक्षण से अन्य सुखदायक पशु
अथो - और
अन्नस्य - अन्न,सर्व रोगनाशक औषधियों का
कीलाल: - उत्कृष्ट रस
स्थिर - प्राप्त रख
गृहेषु - घरों में
न: - हमारे
क्षेमाय - कुशलता के लिए
ब : - तुम्हारे
शान्तयै - शांति
प्रपद्ये - मैं यथावत प्राप्त होऊं
शिवम् - मोक्ष सुख को
शग्मम् - इस संसार के सुख को
शंयो: - मोक्ष सुख की कामना, प्रजा सुख की कामना
व्याख्या: - हे पश्वाधिपते महात्मन् आप की कृपा से उत्तम गाय, भैंस, घोड़े, हाथी, बकरी, भेड़ तथा उपलक्षण से अन्य सुखदायक पशु और अन्य सर्व रोग नाशक औषधियों का उत्कृष्ट रस हमारे घरों में नित्य स्थिर रहे जिससे इस किसी पदार्थ के बिना कोई दु:ख न हो।
हे विद्वानो, तुम्हारे संग और ईश्वर की कृपा से क्षेम, कुशलता और शांति तथा सर्वोपद्रव विनाश के लिए मोक्ष सुख और इस संसार के सुख को मैं यथावत प्राप्त होऊं। मोक्ष सुख और प्रजा सुख इन दोनों की कामना करने वाला जो मैं हूं, मेरी उक्त दोनों कामनाओं को आप यथावत शीघ्र पूरा कीजिए। आपका यही स्वभाव है कि आपने भक्तों की कामना पूरी करते हैं।
No comments:
Post a Comment