शनिदेव
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शनि भगवान सूर्य के पुत्र हैं। छाया इनकी माता हैं। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मवैैवर्त पुराण के अनुसार बचपन से ही शनि देव भगवान श्री कृष्ण के अनुराग से मग्न रहते थे। बड़ा होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। पत्नी सती-साध्वी और तेजस्विनी थी। एक रात पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से वह पति के पास पहुंची। पति ध्यान में बैठे थे। पति की प्रतिक्षा करते-करते वह थक गई। इस बीच उसका ऋतुकाल भी निष्फल हो चुका था। इसी उपेक्षा से क्रुद्ध होकर पत्नी ने शाप दे दिया कि जिसे तुम देख लोगे वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनि देव ने पत्नी को मनाया। पत्नी को स्वयं पश्चाताप हो रहा था। लेकिन शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी। तबसे शनि देव सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि वे किसी का अहित नहीं चाहते थे। उनकी वक्र दृष्टि पड़ते ही कोई भी नष्ट हो सकता है। पश्चिम दिशा में इनका वास है।महाराज दशरथ को दिए हुए वरदान के अनुसार शनि देव यदि किसी की कुण्डली या गोचर में मृत्यु स्थान, जन्म स्थान अथवा चतुर्थ स्थान मे रहे तो वह उनकी कुदृष्टि से सबसे अधिक पीडि़त यानि मृत्युतुल्य कष्ट भोगेगा। शनि देव प्रत्येक राशि में 30 30 महीने रहते हैं और 30 ही वर्ष में सब राशियों को पार करते हैं। शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। इनका गोत्र कश्यप है। इनके अधिदेवता प्रजापति तथा प्रत्याधिदेवता यम हैं।
शनि देव का वर्ण :- मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वर्ण कृष्ण है।
शनि देव का वाहन :- इनका वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है।
शनि देव का आयुध :- इनके हाथ में क्रमश: धनुष, वाण, त्रिशुल और वरमुद्रा है।
शनिदेव की वक्र दृष्टि से :- पेट और पैरों की बिमारी, गैस, पेड़ से गिरना, पत्थर से चोट लगना, वाहन दुर्घटना आदि की संभावना बनी रहती है। इनकी पीड़ा से आदमी राजा से रंक भी बन सकता है। हर वो कष्ट व परोशानियों की पराकाष्टा इनकी वक्र दृष्टि से संभव है।
शनि देव की पूजा का वैदिक मंत्र :- ऊं शन्नो देवीरभिष्टयऽआयो भवन्तु पीतपे। शं यो रमिस्रवन्तु न: ।।
तांत्रिक मंत्र :- ऊं ऐं हृीं श्रीं शनैश्चराय: नम:।
जप संख्या :-92 हजार। इसका दशांश 9200 तर्पण व इसका दशांश 920 मार्जन मंत्र का हवण करें। हवण में शमी की लकड़ी का उपयोग अवश्य करें।
रत्न :- नीलम या नीली चांदी में बनवाकर मध्यमा अंगुली में शनिवार को मध्याह्न काल में धारण करें। या फिर शनिवार को गिरे हुए काले घोड़े के नाल या नाव में लगी कील की अंगुठी बनवाकर धारण करें। बिच्छ या धतूरे की जड़ को भी काला कपड़ा में बांधकर अभिषिक्त कर भुजा में बांधने से भी काम चलेगा।
अभिषिक्त करने का मंत्र :- ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
विशेष:-शनिवार के दिन काला कुत्ता को भोजन कराने, काला उड़द, काली तील, सरसों तैल का दान या शनिदेव की मूर्ति पर अर्पित करने से भी शनि का प्रकोप कम होता है।
व्रत :- 33 शनिवार तक शनिवार का व्रत करें। हनुमान व शिव जी की उपासना तथा पिप्लादि ऋषि की पूजा अर्चना से भी शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
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