6- अग्नि देव
अग्नि कोण के स्वामी हैं अग्नि देव। यजुर्वेद के अनुसार भगवान के मुख से इनकी उत्पत्ति हुई है। वहीं कठोपनिषद् के अनुसार अग्नि देवता ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। वे भिन्न-भिन्न स्थलों में अलग-अलग स्वरूप में स्थित रहते हें। पार्थिव अग्नि के रूप में काष्ठ के ईंधन से, मध्यम अग्नि के रूप में जल के ईंधन से और उत्तम अग्नि के रूप में जलाघात रूप(गैस) से उत्पन्न होते हें। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार अग्नि देवता प्रत्येक के जीवन ं मअुनस्यूत हें। इनके बिना किसी का जीवन संभव ही नहीं है। अग्नि देवता से ऋग्र्वेद का आविर्भव हुआ है। अग्नि पुराण इन्हीं की देन है। ऋग्वेद के अनुसार मानव और देवता के बीच कड़ी का काम अग्नि देव ही करते हैं। मनुष्य द्वारा अग्नि में डाली गई हवि अग्नि देव के माध्यम से ही सीधे देवताओं तक पहुंचती है। अत: इन्हें जो हब्य प्रदान करता है एस पर इनकी अपार कृपा दृष्टि रहती है।अग्नि देव का परिवार:- इनकी पत्नी का नाम स्वाहा है। स्वाहा से इनके तीन पुत्र हुए-पावक,पवमान औश्र शुचि।
अग्नि देव का वर्ण:- इनका वर्ण लाल है।
वाहन:- छाग इनका वाहन है।
आयुध:- ये यज्ञोपवित और रूद्राक्ष धारण किए हुए हें। इनके एक हाथ में शक्ति और दूसरे हाथ में वरद मुद्रा है।
ध्यान मंत्र:-
पिड़्ग भ्रूमयश्ऱकेशश्च पिड़्गाक्षस्रितयोडरुण।
छागस्थ: साक्षसूत्रश्च वरद: शक्तिधारक:।।
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