Tuesday, May 24, 2016

वेद सार 48

य आत्मदा बलदा यस्य विश्वऽउपासते प्रशिष यस्य देवा:।
यस्य च्छायामृतं ययस् मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
                                                                          यजुर्वेद:- 25/13

भावार्थ:-
य:-जो परमात्मा
आत्मदा-आत्मज्ञानादि का दाता
बलदा-त्रिविध बल का दाता
यस्य-जिसके
विश्वे-समस्त जड़-चेतन
उपासते-यथावत मानते हैं
प्रशिषम्-अनुशासन
देवा:-विद्वान लोग
छाया-आश्रय ही
अमृतम-विज्ञानी लोगों का मोक्ष कहलाता है
अछाया-अकृपा
मृत्यु-दुष्ट जनों के लिए वारम्बार मरण और जन्मरूप महाक्लेश दायक है
कस्मै-परमसुख दायक
देवाय- पिता की
हविषा-हम सब मिलकर प्रेम विश्वास और भक्ति
विधेम-करें

व्याख्या:-हे मनुष्यो जो परमात्मा अपने लोगों को आत्मज्ञानादि का दाता है तथा त्रिविध बल का जो दाता हे,जिसके अनुशासन को यथावत् विद्वान लोग मानते हैं। सब प्राणी जड़ और चेतन उस परमात्मा के नियमों का कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता है। उसकी छाया विज्ञानी(विद्वान) लोगों का मोक्ष कहलाता है तथा जिसकरी अछाया दुष्ट जनों के लिए बारम्बार मरण और जन्मरूप महाक्लेशदायक है।
हे मित्रो वही एक परम सुखदायक पिता है। आओ सब मिलकर प्रेम और विश्वास से भक्ति करें। कभी उनको छोड़कर अन्य को उपास्य न मानें। वह अपने को अत्यंत सुख देगा इसमें कतई संदेह नहीं है।

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