Wednesday, May 18, 2016

वेद सार 46

अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षममदितिर्माता स पिता स पुत्र:।
विश्वे देवा पन्चजना अदितिर्जातमदितिजनित्वम।।
                                                          ऋग्वेद:- 1/6/16/10

भावार्थ:-
अदिति-सदैव विनाश रहित
द्यौ:-सदैव स्वप्रकाश स्वरूप
अविकृत-विकार को न प्राप्त
अन्तरिक्षम्- सब का अधिष्ठाता
माता-सुख देने और मान करने वाला
स:-सो
पिता-जनक और पालक
पुत्र-नरकादि दु:खों से पवित्र और रक्षा करने वाला
विश्वे-सब
देवा:-दिव्य गुणों वाला
पन्च-पांच प्राण
जना:-जगत के जीवन हेतु
जातम्-प्रादुर्भूत
जनित्वम्-जन्म का हेतु

व्याख्या:-हे त्रैकाल्याबाधेश्वर आप सदा विनाश रहित तथा स्वप्रकाशस्वरूप हो,सबके अधिष्ठाता हो। आप मोक्ष प्राप्त जीवों को विनाश रहित सुख देने और अत्यन्त मान करने वाले हो सो अविनाशी स्वरूप हम सब लोगों के पिता और पालक हो।आप मुमुक्षु धर्मात्मा विद्वानों को नरकादि द़:खों से पवित्र और रक्षण करने वाले हो। आप अविनाशी परमात्मा ही हैं जो जीवन हेतु पंचप्राण के रचने वाले हैं। आप सदा प्रादुर्भूत  और चेतन ब्रह्म हैं।

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