Tuesday, May 10, 2016

दस दिक्‍पाल देवता 5

                                                    7-अनंत देव

अनंत देव अध:(रसातल) क्षेत्र के स्वामी हैं। श्रीमद् भागवत के अनुसार भगवान की एक मूर्ति गुणातीत है जिसे वासुदेव कहा जाता है वहीं दूसरी तामसी है जिसे अनंत या शेष कहते हैं। भगवान की तामसी नित्यकला 'अनंतÓ के नाम से विख्यात है। ये अनादि हैं। इनके वीक्षण मात्र से प्रकृति में गति जाती है और सत्व,रज तथा तम- ये तीनों गुण अपने-अपने कार्य करने लगते हैं। इस तरह जगत की उत्पत्ति ,स्थिति और लय का क्रम चल पड़ता है। इनके पराक्रम,प्रभाव औश्र गुण अनंत हैं। ये संपूर्ण लोकों की स्थिति के लिए ब्रह्मांड को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। देवता,असुर,नाग,सिद्ध,गंधर्व,विद्याधर,मुनिगण आदि अनंत भगवान का ही ध्यान करते हैं। इनकी आंखें पे्रम के मद से आनंदित और विह्वल रहती है। भगवान अनंत द्रष्टा और दृश्य को आकृष्ट कर एक बना देते हैं। इसलिए इन्हें 'संकर्षणÓ भी कहा जाता है। कोई पीडि़त या पतित व्यक्ति इनके नाम का अनायास ही अगर उच्चारण कर लेता है तो वह इतना पुण्यात्मा बन जाता है कि वह दूसरे पुरुषों के पाप-ताप को भी नष्ट कर देता है।

वर्ण:- इनका शरीर पीताम्बर है। कान में कुंडल और गले में वैजयन्ती की माला धारण किए रहते हैं।

आयुध:- इनके एक हाथ में हल की मूठ रहती है,वहीं दूसरे हाथ में अभय मुद्रा है।

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                                                         8-नैर्ऋति देव

नैर्ऋति देव नैर्ऋत्य कोण के स्वामी हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार ये सभी राक्षसों के अधिपति और परम पराक्रमी हैं। दिक्पाल निर्ऋति के लोक में जो ारक्षस रहते हैं वे जाति मात्र के राक्षस हें। आचरण में वे पूर्णरूप से पुण्यात्मा हैं। वे श्रुति और स्मृति के मार्ग पर चलते हैं। वे ऐसा खान-पान नहीं करते जिनका शास्त्रों में विधान नहीं है। वे पुण्य का अनुष्ठान करते हैं। वहीं स्कन्दपुराण के अनुसार इन्हें सभी प्रकार के भोग सुलभ हैं। निर्ऋति देवता भगवदीय जनों के हित के लिए पृथ्विी पर आते हैं।

वर्ण:- इनका शरीर गाढ़े काजल की भाति काला है तथा बहुत विशाल है।

आयुध:- ये पीले आभूषणों से भूषित और हाथ में खड्ग लिये हुए हैं। राक्षयों का समूह इन्हें चारो ओर से घेरे रहता है।

सवारी:-मत्स्य पुराण के अनुसार ये पालकी पर चलते हैं। इनका तेज काफी प्रखर है।

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