9- ब्रह्मदेव
मुण्डकोपनिषद् के अनुसार ब्रह्मदेव ऊध्र्व क्षेत्र के स्वामी हैं। इनके प्रात: स्मरण मात्र से सभी प्रकार के मंगल होते हैं। सभी मांगलिक कार्यों के प्रारंभिक पूजन में इनका स्मरण पूजन करने का विधान है। प्रजापति ब्रह्मा को परब्रह्म परमात्मा के रूप में स्वीकार किया गया है। भगवान विष्णु के नाम कमल से ब्रह्मा जी का पादुर्भाव हुआ है। भगवान विष्णु की प्रेरणा से सरस्वती देवी ने उनके हृदय में प्रविष्ट होकर उनके चारों मुखों से उपवेद और चार वेदों का सस्वरगण कराया। पुन: उन्होने सृष्टि विस्तार के लिए सनक, सनदेन, स्नातन, सनतकुमार चार मानस पुत्र उत्पन्न किए। इसके बाद मरीचि, पुलस्य, पुलह, क्रतु, अंगिरा, मृगु, वसिष्ठ दक्ष व कर्दम आदि मानस पुत्रों को उत्पन्न किया। ब्रह्मा का दिन ही दैनन्दिन सृष्टि चक्र का समय होता है। उनका दिन ही कल्प कहलाता है। समस्त पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि प्रक्रिया में सर्वप्रथम ब्रह्मा के ही प्रकट होने का वर्णन आता है।----इनके पूर्व मुख से ऋग्वेद, पश्चिम मुख से सामवेद, उत्तर मुख से अथर्ववेद और दक्षिण मुख से यजुर्वेद का अविर्भाव हुआ।
यज्ञ या हवण के दैनिक प्रयोग में लाई जाने सबसे पवित्र समिधा काष्ठ, 'पलासÓ को ब्रह्मा का ही प्रतीक माना जाता है।
वर्ण:- अग्नि पुराण के अनुसार इसका आधा भाग श्वेत और आधा कृष्ण है। ये चतुर्मुख, चतुर्भुज हैं।
वाहन:-ब्रह्म देव हंस पर आरूढ़ रहते हैं।
आयुध:-ब्रह्म देव एक हाथ में अक्षसूत्र और स्रुुवा, दूसरे हाथ में कुण्डिका और आज्यस्थाली, तीसरे हाथ में कमंडलु और चौथे हाथ में रूद्राक्ष की माला धारण किए रहते हैं। इनके बाम भाग में सरस्वती तथा दक्षिण भाग में सावित्री विराजमान रहती हंै।
ध्यान मंत्र :-
'अहं ब्रह्मा च शर्वश्च जगत: कारणं परम्।
आत्मेश्वर उपद्रष्टा स्वंयदृगविशेषण:।।Ó
------------------------------
No comments:
Post a Comment