4-वायु देव
वायु देव वायव्य दिशा के स्वामी हैं। ऋग्वेद के अनुसार इनकी उत्पत्ति विराटपुरुष के प्राण से हुई है। प्राणियों में जो प्राण है उसके अधिष्ठातृ देवता वायु ही हैं। शरीर के पांचो प्राणों में देवभाव वायु देव से ही प्राप्त होता है। आधिभौतिक दृष्टि से भी विचार करें तो प्रतीत होता है कि श्वांस द्वारा वायु को ग्रहण न किया जाए तो मृत्यु निश्चित है। इस तरह हम प्रत्येक क्षण वायु के द्वारा ही अमरता को प्राप्त करते हैं। वायु देव ने ही संपूर्ण यजुर्वेद और वायु पुराण प्रदान कर संसार को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाया है। वायु देव हर क्षण मृत्यु से बचाकर हमें सत्यपथ पर चलाते रहते हैं। संसार में जितने भी बल हें सबका केंद्र वायु देव ही हैंं। महाभारत के अनुसार वायु के समक्ष किस की का बल नहीं है।वायु देव के परिवार:- हनुमान और भीम इनके पुत्र हैं जो क्रमश: अंजनी और कुंती के गर्भ से उत्पन्न हुए।
आयुध:- इनके एक हाथ में ध्वज और दूसरे हाथ में वरमुद्रा है।
वायु देव की आराधना का मंत्र:-
धावद्धरिणमारूढ़ द्विभुजं ध्वजधारिणम्।
वरदानकरं धूम्रवार्ण वायुमहं भजे।।
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5-यम देव
यम देव दक्षिण दिशा के स्वामी हैं। यह हमारे शुभ और अशुभ कार्यों को जानते हैं। ऋग्वेद के अनुसार यम देव पूर्ण ज्ञानी हैं। इनके लोक में निरंतर अनश्वर ज्योति जगमगाती रहती है। यह लोक स्वयं अनश्वर है और इसमें कोई मरता नहीं है। इनका वर्ण नीला है और देखने में काफी उग्र हैं। इनकी आंखें लाल है। संसार के समस्त जीवों का जब वह शरीर का त्याग करता है तो उसके कर्मों के अनुसार उसकी आत्मा को दंड और पुरस्कार का प्रावधान यम देव ही करते हैं। भैंसा इनकी सवारी है। और इनके हाथ में पाश रहता है।यम देव का परिवार:-यम देव भगवान सूर्य के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम संज्ञा है। हरिवंश पुराण के अनुसार यम की बहन यमी ही यमुना है। इनकी दूसरी बहन तपती है। दोनो बहनें क्रमश: उत्तर और दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों में से है।
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