Saturday, May 14, 2016

वेद सार 45

कि थं स्विद्वनं क उ स वृक्षऽआस यतो द्यावापृथिवी निष्टतक्षु:।
 मनीषिणो मनसा पृच्छतेदु तद्यदध्यतिष्ठभुवनानि धारयन।
                                                                               यजुर्वेद:-17/20

भावार्थ - किंस्वित - विद्या क्या है
वनम् - वन
क: - किसको
उ-और
स:-उसी को
वृक्ष:- वृक्ष
आस-कहते हैं
यत: - जिस सामथ्र्य से
द्यावापृथिवी - स्वर्ण सुख विशेष और भूमि मध्य
मनीषिण: - हे विद्वानो
मनसा-उसके विज्ञान से
पृच्छत - प्रश्न करो
इद - उसका निश्चय
तद - उसके विषय में
यद - जो
अध्यतिष्ठत् - समस्त जगत में और सबके ऊपर विराजमान हो रहा है भुवनानि - सब भुवनों को
धारयन् - धारण करके।

व्याख्या: - विद्या क्या है? वन और वृक्ष किसको कहते हैं? 
:: जिस सामथ्र्य से विश्वकर्मा ईश्वर ने अनेक विधि रचना से अनेक पदार्थ को रचा है वैसे हीं स्वर्ग, नरक सहित अन्य लोकों को रचा है। उसी को वन और वृक्ष आदि कहते हैं। हे विद्वानो जो सब भुवनों को धारण करके समस्त जगत में और सबसे ऊपर विराजमान हो रहा है उसके विषय में प्रश्न और निश्चय तुम लोग करो। ईश्वर के विज्ञान से ही जीवों का कल्याण होता है। अन्यथा नहीं।

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