वैश्वानरस्य सुमतों स्याम राजा हि कं भुवनानामभिश्री :।
इतो जातो विश्वमिदं विचष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण।।
ऋग्वेद-1/7/6/1
भावार्थ:-वैश्वानरस्थ-परमेश्वर की
सुमतों-उत्कृष्ट ज्ञान में
स्यान-हम निश्चित सुखस्वरूप और विज्ञान वाले हों
राजा-हमारा तथा समस्त जगत का स्वामी
हि-और
कम्-सबका सुखदाता
भुवनानाम-सब भुवनों का अभिश्री:-सब का निधि
इत: इसी ईश्वर के सामथ्र्य से
जात:- उत्पन्न हुआ
विश्वम्-संसार
इदम्-यह
विचस्टे-उसने रचा है
वैश्वानर:- संसारस्थ सब नरों का नेता
यतते-प्रकाशक हंै
सूयेण-सूर्य के साथ।
व्याख्या:-
हे मनुष्यो, जो हमारा तथा समस्त जगत का राजा, समस्त भुवनों का स्वामी, सब का सुखदाता, सबका निधि, समस्त नरों का नेता और जिसने सूर्य समेत समस्त प्रकाशक पदार्थ रचे हंै उसी से यह संसार उत्पन्न हुआ है। उसी परमेश्वर के उत्कृष्ट ज्ञान में हम निश्चित ही सुखस्वरूप और विज्ञान वाले हों। हे महाराजाधिराजेश्वर आप हमारी इस आशा को कृपा कर पूरा करो।
इतो जातो विश्वमिदं विचष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण।।
ऋग्वेद-1/7/6/1
भावार्थ:-वैश्वानरस्थ-परमेश्वर की
सुमतों-उत्कृष्ट ज्ञान में
स्यान-हम निश्चित सुखस्वरूप और विज्ञान वाले हों
राजा-हमारा तथा समस्त जगत का स्वामी
हि-और
कम्-सबका सुखदाता
भुवनानाम-सब भुवनों का अभिश्री:-सब का निधि
इत: इसी ईश्वर के सामथ्र्य से
जात:- उत्पन्न हुआ
विश्वम्-संसार
इदम्-यह
विचस्टे-उसने रचा है
वैश्वानर:- संसारस्थ सब नरों का नेता
यतते-प्रकाशक हंै
सूयेण-सूर्य के साथ।
व्याख्या:-
हे मनुष्यो, जो हमारा तथा समस्त जगत का राजा, समस्त भुवनों का स्वामी, सब का सुखदाता, सबका निधि, समस्त नरों का नेता और जिसने सूर्य समेत समस्त प्रकाशक पदार्थ रचे हंै उसी से यह संसार उत्पन्न हुआ है। उसी परमेश्वर के उत्कृष्ट ज्ञान में हम निश्चित ही सुखस्वरूप और विज्ञान वाले हों। हे महाराजाधिराजेश्वर आप हमारी इस आशा को कृपा कर पूरा करो।
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