Tuesday, February 15, 2011

व्यक्तित्व

व्यक्तित्व
'इंसान कितना ही उंचा क्यों न उठ जाए,कितनी ही मंजिलें क्यों न पार कर ले लेकिन उसके अच्ठे-बुरे कर्मों की परछाइयां उसका कभी पीछा नहीं छोड़ती। Ó
लोग बाग यह सोचते हैं कि अब तक उन्होंने जो कुछ शिक्षा ग्रहण की है वह काफी है। उससे ज्यादा योग्य व काबिल व्यक्ति कोई नहीं है। यहीं पर लोग भ्रम के शिकार हो जाते हैं। कारण उन्होंने शिक्षा ग्रहण की है, ज्ञान नहीं। शिक्षा और ज्ञान दो अलग -अलग आयाम हैं, जैसे बुद्धि और विवेक। शिक्षा की सीमा तो हो सकती है लेकिन ज्ञान की नहीं। मनुष्य जन्म से चिता तक जाने के पहले तक अज्ञानता के इसी सागर में डुबकियां लगाते रहता है कि उसने बहुत पढ़ लिया,बहुत डिग्रियां ले ली,बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया। लेकिन वास्तविकता यह है कि उसने कुछ जाना ही नहीं। वह इस पृथ्वी पर नंगा आया था केवल जाने के समय के लिए उसने कफन पाने के लिए इतना लंबा सफर तय किया। अगर इसे कोई मनुष्य ज्ञान कहता है तो मेरी समझ में उससे बड़ा अज्ञानी इस धरा पर कोई नहीं है। आपने शिक्षा कितनी ग्रहण की है इसके लिए तो आप प्रमाण- पत्र दे सकते हैं,दिखा सकते हैं लेकिन आपने कितना ज्ञान अर्जित किया है, इसे मापने का शायद मेरे विचार से पैमाना आपकी बुद्धि,विवेक,शालीनता और आपका चरित्र बल है जो आपके ललाट की आभा से शोभायमान होता है।
मेरा विचार है कि अगर आपने शिक्षा लेते वक्त उसके व्यावहारिक व सामाजिक पक्ष को नहीं जाना तो आपमें वही शिक्षा अहम् पैदा कर देगी जो आपको ना तो चैन से जीने देगा और ना ही आप चैन से दूसरों को जीने देंगे। जबकि ज्ञान के आसपास अहम कभी फटक भी नहीं सकता। ज्ञान भरे गिलास में पानी की तरह है जो सत्य है। वहीं शिक्षा एक मृग मारीचिका है जो हमेशा संसार में गोते लगवाता रहता है। ज्ञान वह मक्खन है जिसे शिक्षा व व्यवस्था रूपी छाछ को मथ कर प्राप्त किया जा सकता है।

डॉ राजीव रंजन ठाकुर

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