Monday, February 6, 2012

मानव

मानव
अरे मानव!
तू छोड़ दे
अब मानवता की व्याख्या
क्योंकि तू
अब न रहा
मानव
अपनाई दानवता।।
तू मानव!
होगा भी कैसे
क्योंकि अब,
तुझमें दिल नहीं
करता है तू कुकृत्य
जिससे
मानव को संच नहीं।।
बच्चे, बूढ़े और
जवां
सब होते हैं तेरे समा,
तेरी बंदूक की एक बटन
करती है हरपल भयां।।
झूठ, फरेबी
और मक्कारी,
करता तू सबसे
गद्दारी,
अपने अहम की पूत्र्ति हेतु,
ईश्वर को भी देता गाली।।
प्यास बुझाने हेतु
पानी नहीं,
तुझे चाहिए
बरबस खून
इसको पाने पर ही
तुझे मिलता है सुकून।।
जात-पात की बिछी क्यारी
आत्मा ने
जमीर भूला दी
तुझे नहीं अब
मानवता की लेनी दुहाई
अब केवल
खून!
चाहिए भाई।।
अरे मानव! तू
कैसा मानव?
तू तो हुआ अब
बरबस दानव
मानवता छोड़
दानवता अपनाई
सचमुच! क्या यही है
कलियुग की सच्चाई?

डॉ राजीव रंजन ठाकुर
ठाकुर भवन
गुमटी नं-12 के पास
भीखनपुर, भागलपुर

No comments:

Post a Comment