Saturday, October 13, 2012

जीने की सोच

 जिंदगी जीना और ढोना दो अलग-अलग सोच हैं। एक में आप आशावादी,साम-दाम-दंड और भेद से काम लेते हैं वहीं दूसरे में आपकी सोच निराशावादी और शोषित मानसिकता जैसी होती है जिस पर किसी और का शासन कायम होता हैं। आप जिंदगी से भयभीत और डरे होते हैं। लेकिन सच है कि जो दौडता है वही जीत या हार सकता है। अगर आप दौडेंगे ही नहीं तो जिंदगी बोझ तो लगेगी ही। निष्‍काम कर्म करते रहें । सही रास्‍ते -सोच व दिशानिर्देशन इसके मुख्‍य अवयव है। कहा भी गया है कि भगवान भी उसी की सहयाता करता है जो दूसरों को रास्‍ता दिखाता है। इसलिए चाह के पहले दान व त्‍याग का भाव अत्‍यावश्‍यक है। क्‍योकि आप भी जानते हैं कि ढलते सूर्य को कोई प्रणाम नहीं करता । ऊर्जा तो उदयिमान सूर्य से ही मिलती है। जब तक आप तरोताजा रहेंगे आपकी पूछ होगी अन्‍यथा जिंदगी का सबसे खास साथी आपकी पत्‍नी भी आपको ताने देगी और हो सकता है कि उस मुकाम पर आपका साथ भी छोड दे। इसलिए जब तक जिएं कर्मवीर व शेर बनकर ।

 डां राजीव रंजन ठाकुर

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