Monday, March 18, 2013

सेक्‍स के उम्र को घटाना

सहमति से संबंध बनाने की उम्र 16 साल करने की मंत्रिमंडलीय समूह की सिफारिश पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की मुहर लग गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में महिला का पीछा करने और अश्लील इशारा करने को गैरजमानती अपराध की श्रेणी में रखने का फैसला किया गया है। मंत्रिमंडल से मंजूरी के बाद संशोधित रूप में अपराध कानून संशोधन विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा। ज्ञात हो कि मंत्रियों के बीच उत्पन्न इस मुद्दे पर विवाद दूर करने की जिम्मेदारी पी. चिदंबरम की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंड़लीय समूह को सौंपी गई थी जिसमें सहमति से संसर्ग की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने पर एकराय बनी। साथ ही दुष्कर्म के अपराध को महिलाओं के साथ जोड़कर बलात्कार शब्द के प्रयोग का फैसले के साथ ही तेजाब हमले पर कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल की सजा दी जाएगी जिसे ताउम्र सजा में बदला जा सकेगा। दुष्कर्म पीडि़ता की मौत या उसके कौमा में चले जाने की स्थिति में मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है। विधेयक में महिला का पीछा करने और अश्लील इशारे करने को गैरजमानती श्रेणी में रखने का फैसला किया गया है। लेकिन कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए फर्जी शिकायत के मामले में सजा के प्रावधान को विधेयक से हटा लिया गया है। इस बाबत मेरा मानना है कि इस कानून के बन जाने से भारतीय संविधान की धारा 12 व 13 जिसके तहत कानून के समक्ष समानता व कानून के समक्ष समान न्याय के अधिकारों का उल्लंघन होगा। इतना ही नहीं कानून ने जहां वोट डालने,न्यायिक निर्णय,न्यायिक प्रक्रिया आदि के लिए बालिग होने की उम्र 18 वर्ष रखा है यानि उक्त कार्य के लिए इसी उम्र के बाद समझदारी आती है तो सेक्स के लिए आपसी सहमति की उम्र 16 कैसे जायज हो सकता है। यहीं नहीं आइपीसी की धारा 375 के तहत जहां सेक्स के लिए उम्र 16 वर्ष तय की गई है वहीं जुबेनाइल जस्टिस ऐक्ट के तहत इसे 18 वर्ष माना गया है। आइपीसी की धारा 354 के तहत स्त्री के सतीत्व का उल्ल्ंघन होने पर दो साल की सजा व जुर्माना या दोनों,धारा-509 के तहत शब्द,भाव-भंगिमा व ऐसी किसी भी हरकत जिससे स्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचता हो तो दोषी को एक साल की सजा या जुर्माना या दोनो हो सकता है। इससे साफ जाहिर है कि देश मे कानून मौजूद है बस जरूरत है उसे राजनीतिक परिवेश से निकालकर सच्चे दिल से लागू करने की,समाज को सही दिशा देने की। नहीं तो मौजूदा परिवेश में इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए फर्जी शिकायत के मामले में सजा के प्रावधान को विधेयक से हटा लिया गया है जिस कारण इसका 98 फीसद मामलों में दुरूपयोग ही होगा। इससे पुरूष समाज और एग्रेसिव होगा और महिलाओं के प्रति अपराध की विभत्सता में और वृद्धि होगी। क्योंकि दिल्ली दुष्कर्म की घटना के बाद या इससे पहले कोलकाता में दुष्कर्म के आरोपी धन्नंजय चटर्जी को फांसी दिए जाने के बाद विराम नहीं तो कम से कम दुष्कर्म की घटनाओं पर अंकुश अवश्य लग जाना चाहिए था।

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