Wednesday, April 24, 2013
गीता प्रेस ने सुंदर कांड को पूर्ण रूप देने के लिए दिया विस्तार
- किष्किंधा कांड में शामिल शक्ति जागरण के दो दोहों का स्थानांतरण
पवनसुत हनुमान का नाम आते ही उनकी रामदूत के रूप में निभाई गई उन तमाम भूमिकाओं का स्मरण हो आता है, जिनका उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास ने सुंदर कांड में किया है। किंतु बाल्यकाल में मिला श्राप। जिसके चलते उनकी अपार शक्ति और सामथ्र्य विस्मृत रहती है, उन्हें हर बार क्षमता का एहसास कराना पड़ता है। किष्किंधा कांड में जामवंत पवनसुत की इसी सामथ्र्य को जगाते हैं। रामचरित मानस के प्रकाशक गीता प्रेस ने सुंदर कांड को विस्तार देते हुए उसमें किष्किंधा कांड के दो दोहे जोड़े हैं।
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस के किष्किंधा कांड में जब समुद्र लांघ लंका में जाने वाले राम दूत की जब तलाश होती है। तब अंगद जैसे तमाम बलवान अपने को असमर्थ पाते हैं। ...और हनुमान, श्राप के चलते अपनी शक्ति और सामथ्र्य भूले हुए हैं। अंत में जामवंत ...का चुप साध रहे हनुमाना... कह उनकी शक्ति याद दिलाते हैं और तब हनुमान विराट रूप धारण कर लंका जाने को तैयार होते हैं। यहीं पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पावन चरित्र का गुणगान करते हुए गोस्वामी जी किष्किंधा कांड का विश्राम कर देते हैं।
सुंदर कांड में समुद्र लांघने, सीता माता को खोजने, मेघनाद समेत तमाम योद्धाओं को परास्त करने और लंका दहन के बाद श्रीराम को मां सीता का समाचार देने तक की हनुमान की भूमिकाओं का वर्णन है। यद्यपि तुलसीदास जी ने सुंदर कांड के प्रारंभ में भगवान श्री राम के साथ ही अतुलित बलधामं, हेमशैलाभदेहं... हनुमान जी की महिमा का भी गान किया है किंतु उनकी शक्ति के जागरण का प्रसंग किष्किंधा कांड में ही छूट जाता है।
रामचरित मानस के विख्यात ज्ञाता और संस्था के परम सहयोगी रहे रामसुखदास के आग्रह पर गीता प्रेस ने सुंदर कांड के नवीन प्रकाशन में यह संशोधन किया है। नए संस्करण में परंपरागत सुंदर कांड के प्रारंभ से पूर्व किष्किंधा कांड के 29वें और 30वें दोहे को मय चौपाई, छंद और सोरठा के जोड़ दिया है। इन दोहों में जामवंत हनुमान की शक्ति का जागरण कर उन्हें लंका जाने को प्रेरित करते हैं।
मानस मर्मज्ञ व्याख्याकारों की मानें तो अखंड पाठ के दौरान तो किष्किंधा कांड और सुंदर कांड का पाठ निरंतरता में क्रमानुसार होता है। लेकिन केवल सुंदर कांड का पाठ करने की स्थिति में हनुमान जी की शक्ति का निरूपण नहीं हो पाता। श्राप के चलते अपनी शक्ति से विस्मृत रहने वाले हनुमान के अद्भुत प्रसंगों का स्मरण करने से पूर्व उनकी शक्ति का जागरण कराना आवश्यक है। तभी हनुमान के विराट स्वरूप का उदय होता है और उपासना सार्थक होती है।
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ऐसे लगा था हनुमान को श्राप
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बाल सुलभ चंचल स्वभाव के चलते अंजनी पुत्र समाधि में लीन भृगु और अंगिरा ऋषि कुल के साधु को सता बैठे। ध्यान भंग होने से आवेश में आए साधु ने अपनी अपार शक्ति भूल जाने का श्राप केसरी नंदन को दे डाला था। बाद में पश्चाताप करने पर समाधान दिया कि किसी के याद दिलाने पर ही हनुमान को उनकी अपार शक्ति का स्मरण होगा।
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