चंद्रमा के समान गौर कान्ति वाले शांत स्वरूप जो प्राणियों को चारो पुरुषार्थ प्रदान करने वाले हैं, जो अपने भक्तों द़वारा अर्पित किसी भी प्रकार के भोगों को ग्रहण कर लेते हैं। उन साक्षात उमामहेश्वर का लिंग रूप को बारंबार आठो प्रहर नमस्कार करके ही प्राणीमात्र इस भवबंधन से मुक्त हो उनका सानिध्य प्राप्त कर सकता है। तीनों लोकों व समस्त देवों का स्वामी त्रिलोकीनाथ महादेव समस्त चराचर के लिए पूजनीय है। इनकी शरण में आया पतित भी इस भवसागर से पार उतर सकता है। महाकालेश्वर स्वयं महाकाल है इसीलिए तो महामृत्युंजय की सिद्धि या जाप कर मनुष्य मृत्युतुल्य कष्ट से भी मुक्ति पा लेता है। समस्त प्रकार के दैहिक, दैविक और भौतिक पापों से भी मानव को मुक्ति प्रदान करने में अगर कोई सक्षम हैं तो वह हैं महादेव। इसीलिए तो लिंग महापुराण में कहा गया है कि हजारों पाप करके तथा सैकड़ों विप्रों का वध करके भी जो भक्तिपूर्वक भगवान रूद्र का आश्रय ग्रहण करता है वह अवश्य ही इस संसार के बंधनों से मुक्त हो शिवत्व को प्राप्त हो जाता है। स्वयं भगवान विष्णु ने कहा है कि समस्त लोक लिंगमय है और सभी लिंग में ही स्थित है। अत: कोई भी प्राणी अगर शाश्वत पद की इच्छा रखता हो तो उसे शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
पुराणों के अनुसार महादेव ही सृष्टि, पालन और संहार के कारण भी है और कारण भी। तभी तो एक मात्र शिवलिंग की पूजा से ही समस्त देवी, देवताओं की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है। जि
स प्रकार शिव को निराकार माना गया है उसी प्रकार भूतभावन भोलेनाथ अपने आचरण के अनुरूप अपने भक्तों को भी बिना किसी राग-द्वेष के चाहे वह देव हो, दानव हो, यक्ष हो, किन्नर हो, वनस्पति हो, नदी हो, पहाड़ हो, सभी को अपनाते हैं और अपना अभय वरदान देते हैं। उन्होंने कभी भी किसी भक्त व साधक को निराश नहीं किया। इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष जिसके प्रभाव से पूरा ब्रह्माण्ड दग्ध होने लगा तो उन्होंने उसे पी लिया और नीलकंठ बन गए। सचमुच भोलेनाथ भोले हैं। जो भी इनकी शरण में गया उसका कल्याण हो गया। -
---- डॉ. राजीव रंजन ठाकुर भागलपुर
स प्रकार शिव को निराकार माना गया है उसी प्रकार भूतभावन भोलेनाथ अपने आचरण के अनुरूप अपने भक्तों को भी बिना किसी राग-द्वेष के चाहे वह देव हो, दानव हो, यक्ष हो, किन्नर हो, वनस्पति हो, नदी हो, पहाड़ हो, सभी को अपनाते हैं और अपना अभय वरदान देते हैं। उन्होंने कभी भी किसी भक्त व साधक को निराश नहीं किया। इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष जिसके प्रभाव से पूरा ब्रह्माण्ड दग्ध होने लगा तो उन्होंने उसे पी लिया और नीलकंठ बन गए। सचमुच भोलेनाथ भोले हैं। जो भी इनकी शरण में गया उसका कल्याण हो गया। -
---- डॉ. राजीव रंजन ठाकुर भागलपुर
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