Saturday, August 22, 2015

व्यर्थ नहीं जाती शिव की पूजा

किशोर चंद्र शेखरे रति प्रतिक्षणं मम् ... 
ललाट पर चंद्रमा धारण करने के कारण भोलेनाथ सभी रोगों का नाश करने वाले तथा अभूतपूर्व शीतलता प्रदान करने वाले माने जाते हैं। इसीलिए तो जब चारो तरफ से मानव असहाय हो जाता है, देवताओं की गुत्थियां उलझ जाती हैं, दानवों को शक्ति की आवश्यकता आन पड़ती है तो सभी भगवान भूतभावन महादेव की शरण में पहुंचते हैं। इनकी शरण में पहुंचते ही सभी अपने सारे कष्टों से निवृत हो मनोवांछित फल को प्राप्त कर लेता है। धार्मिक ग्रंथों में शिव को परम ब्रह्म बताया गया है। शिव ही परम कल्याणकारी एवं जीवों की गति हैं। शिव स्वयं जगतगुरु है और साधक बनकर जीवों को साधना की शिक्षा दे उसे उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी करते हैं। इसी पथ से मानव के लिए संसार से मुक्ति का मार्ग खुलता है। जीवों के रोग मुक्त होने के जितने भी उपाय हैं वह सभी योग मार्ग के द्वारा ही संचालित होते हैं और उसके प्रणेता भी स्वयं सदाशिव ही हैं। मानव जीवन में समय की महत्ता सर्वोपरि है। क्योंकि संसार का हर कुछ इसी के अधीन है। यह एक सतत् चलायमान सत्ता है जो कभी रूकती नहीं है। इसी सत्ता के विभिन्न परिदृश्य के रूप में देव, दानव, मानव, प्रकृति अपना-अपना किरदार निभाते हैं। संपूर्ण जीवन जगत के लिए इस काल के नियंता स्वयं भोलेनाथ ही हैं जो महाकाल के रूप में जाने जाते हैं। इस महाकाल की अराधना के लिए साधक पोडषोपचार विधि से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव की आराधना करता है तो उसके मृत्युतुल्य कष्ट भी दूर हो जाते हैं। शिव मृत्युंजय होने के कारण ही मृत्यु की मृत्यु, काल के भी काल माने जाते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार शिव प्रकृति प्रिय और उसके सानिध्य में रहते हैं,प्राकृतिक चीजों का सेवन करते हैं। प्रकृति सावन मास में अपने चरम यौवन पर रहती है इसलिए उन्हें श्रावण मास अति प्रिय है। इसलिए अभिष्ट की प्राप्ति व सिद्धि के लिए जो भी प्राणी भष्म,धतुर,भांग,आक व कमल के पुष्प से महादेव की लिंग रूप में पूजा करता है उसे अवश्य ही सफलता मिलती है। लिंग पुराण में स्वयं सूत जी ने एक कथा के दौरान देवताओं से कहा है कि एक मात्र भोलेनाथ ही है जिनकी पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जा सकती है। इसीलिए तो कहा गया है कि शिव समान कोई नहीं दूजा .....।

---- डॉ. राजीव रंजन ठाकुर

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