यस्ते गन्ध: पृथिवी संबभुव यं विम्रत्योषधयो: यमाप: ।
य गन्धर्वा अप्सरश्च भेजिरे तेन मा सुरभिं कृणु मानो द्विक्षत कश्चन।।
अर्थात, पृथिवी पर स्थित सुगंधित औषधियों और वनस्पतियों के रूप में जो गंध उत्पन्न होती है और जिसे गंधर्व और अप्सराएं धारण करती हैं। हे पृथिवी तू उस गंध से हमें युक्त कर। हमसे ईष्र्या करने वाला कोई न हो। सभी हमारे प्रति मित्र भाव रखे। (अथर्ववेद)
सुधि पाठकों द्वारा विश्व के लगभग सभी देशों में मेरे ब्लाग को लाइक करने व इसमें उधृत साम्रगी को पढऩे की ललक ने मेरी उत्साह को भी काफी बढ़ाया है, खास कर वेदसार को लेकर। अभी तक मैं आपलोगों के समक्ष ऋृगवेद और यजुर्वेद की कुछ महत्वपूर्ण ऋृचाओं को बड़े ही सरल भाव में प्रस्तुत किया। यही कारण है कि उसे आपलोगें ने उसे हाथों- हाथ लिया। आज से मै आपलोगों के समक्ष अथर्ववेद की ऋचाओं को प्रस्तुत करूंगा। इसकी ऋचाएं स्वयं सिद्ध है जिसकी आराधना कर मनुष्य अभिष्ट की प्राप्ति कर सकता है। वैदिक साहित्य में अथर्ववेद को ब्रह्मवेद और अथर्वाड्गिरस नाम से भी जाना जाता है। अथर्वा और अंगिरस नाम के दो ऋषियों में ही सर्वप्रथम अग्नि को प्रकट किया था। अग्नि की उपासना यज्ञ द्वारा की जाती है। अथर्वा ऋषि द्वारा जो ऋचाएं प्रकट की गई हैं वे अध्यात्मपरक, सुखकारक, आत्मा का उत्थान करने वाली तथा मंगल कारक स्थितियां प्रदान करने वाली है। ये सृजनात्मक ऋचाएं हंै। वहीं आंगिरस द्वारा जो ऋचाएं प्रस्तुत की गई हंै वो अभिचार कर्म को प्रकट करनेवाली शत्रुनाशक, जादू - टोना, मारण, वशीकरण आदि को प्रदान करने वाली हैं। ये संहारात्मक ऋचाएं हैं। अथर्ववेद संहिता बीस कांडो में विभक्त है जिसमें 726 सुक्त हैं। अथर्ववेद के संपूर्ण मंत्रो को शांति, पुष्टि और अभिचार इन तीन भागो में विभक्त किया जा सकता है। इस वेद में 33 देवताओं का वर्णन किया गया है। ये सभी देवता तंत्र शक्ति के जनक हैं। इसी वेद में पहली बार मातृभूमि की कल्पना की गई है।