येन वेहद बभूविथ नाशयामसि तत त्वत।
इदं तदन्यत्र त्वदप दूरे नि दध्मसि।।
अथर्ववेद—3/23/1
व्याख्या– जिस पापजन्य व्याधि के कारण हे स्त्री तू बांझ हुई है उस व्याधि को हम तुझसे दूर करते हैं। यह व्याधि िफर से उत्पन्न न हो इसलिए इसे हम तुझसे दूर करते हैं।
आ ते योनिं गर्भ एतु पुमान बाण इवेषुधिम ।
आ वीरोऽत्र जायतां पुत्रस्ते दशमास्य:।।
अथर्ववेद—3/23/2
व्याख्या– तरकस में बाण के प्रवेश करने के समान ही हे स्त्री पुंसत्व से युक्त गर्भ को तेरे गर्भाशय में स्थापित करते हैं। इस गर्भ से दश माह के उपरांत वीर पुत्र की उत्पत्ति हो।
कृणोभि ते प्राजापत्यमा योनिं गर्भ एतु ते।
विन्दस्व त्वं पुत्रं नारि यस्तुभ्यं शमसच्छतुमु तस्मै त्वं भव।।
अथर्ववेद—3/23/5
व्याख्या– हे स्त्री प्रजापति द़वारा बनाए प्रजनन संबंधी नियमानुसार हम तेरे निमित्त यह विधान करते हैं । इस विधान के द़वारा गर्भाशय में गर्भ की स्थापना हो तथा तुझे सुख प्रदान करने वाले पुत्र की प्राप्ति हो।