Tuesday, October 20, 2015

प्रकृति की गुहार



प्रकृति की गुहार 

बार बार कह रही धरती माता
मेरी आबरू से ना खेलो
बार बार संकेत भी दे रही है प्रकृति
मेरा दोहन ना करो
बार बार प्रकृति के पंच तत्‍व कर रहा हमें आगाह
मुझे ना छेड़ो
कभी तूफान,सुनामी
तो कभी घनघोर बारिश
कभी भीषण जल त्रासदी
तो कभी बरसते आग के गोले
कभी धरती हिलती
तो कभी मेघ फटते
कभी लाखों को काल का ग्रास बनाती
तो कभी आर्थिक कमर तोड़ती
वह कह रही है संकेत समझो और संभलो
अपनी भौतिकता की चाह छोड़ो
क्‍योंकि प्रकृति और पुरूष के मिलने से ही
श्रृष्टि की प्रक्रिया है संभव
हे धरा के सपूतो जिस तरह अपनी स्‍त्री और धन की करते हो रक्षा
उसी तरह संसार की इस प्रकृति रूपी मां की न लो इज्‍जत
नहीं तो उसकी सहनशीलता और धैर्य टूटेगा तो
न रहेगी यह धरा और न रहोगे तुम
इसलिए्, अभी भी समय है
हम समझें ,संभलें बिना किसी अभिमान
ना करें प्रकृति का दोहन
उसे खिलनें दें
और उसके आगोश में जीयें जीवन।।
डा राजीव रंजन ठाकुर

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