श्रृष्टि चक्र का साइंस
शिव निराकार हैं जो कि ऊर्जा का मूल श्रोत है। श्रृष्टि के समय शिव सगुण और निर्गुण दोनों उभरती हैं। सगुण ईश्वर से शक्ति का उद्धव होता है। जिससे नाद (पर) की उत्पत्ति होती है एवं नाद से बिंदु (पर) की। बिंदु तीन हिस्सों में बंटता है।
1. बिंदु (पर) 2. नाद (अपर) एवं 3.बीज। प्रथम से शिव एवं अंतिम से शक्ति का तादात्म्य है तथा नाद दोनों का सम्मिलन है। शक्ति ज्योतिरूप है। यह अति सूक्ष्म है जिसे महायोनि कहते हैं। वहीं अद्र्धमात्रा अर्थात तिल अक्षर, प्रणव में आकार, उकार, मकार- इन तीन मात्राओं के अतिरिक्त बिन्दुरूपा नित्य अद्र्धमात्रा है। उसी का ब्रह्मा, विष्णु और महेश सदैव ध्यान करते हैं। यही राजयोग है।
यही ज्योतिरूप शक्ति मानव शरीर में कुण्डलिनी का रूप ग्रहण कर आधार चक्र में चमकती है। मानव शरीर में तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार छह चक्र होते हैं। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध एवं आज्ञा। इसके अतिरिक्तं ब्रह्मरन्ध्र बीजकोश के रूप में विद्यमान है। यह सर्प सदृश मूलाधार में कुण्डली लगाकर सुषुप्तावस्था में स्थित रहती है जिसे गहन साधना व ध्यान के जरिए जाग्रत किया जाता है। इसे जगाने पर यह धीरे-धीरे प्रत्येक चक्र को पार करके ब्रह्मरन्ध्र के सहस्रदल में मिल जाती है एवं अमृतपान कर पुन: वापस लौट आती है। ततपश्चात इस शक्ति को हम जिस किसी रूप में चाहते हैं ढ़ाल लेते हैं। वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया है कि शक्ति को अलग-अलग श्रोतों में रूपान्तरित किया जा सकता है।
कितना गजब का संयोग है कि श्रृष्टि का चक्र का तादात्म जितना विज्ञान से है उतना ही भाषा से। तभी तो नाउन,प्रोनाउन,एडजक्टिन,वर्भ आदि से जैसे-जैसे जीवात्मा जुड़ता जाता है उसका स्वरूप बदलता जाता है। वैसे ही कहने को तो पंथ अलग -अलग हैं लेकिन मूल एक ही है जो पंच तत्वों के मिलकर बना है जो प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटीन की थ्योरी का आधार भी है और उसे प्रमाणित भी करता है।
डा.राजीव रंजन ठाकुर
शिव निराकार हैं जो कि ऊर्जा का मूल श्रोत है। श्रृष्टि के समय शिव सगुण और निर्गुण दोनों उभरती हैं। सगुण ईश्वर से शक्ति का उद्धव होता है। जिससे नाद (पर) की उत्पत्ति होती है एवं नाद से बिंदु (पर) की। बिंदु तीन हिस्सों में बंटता है।
1. बिंदु (पर) 2. नाद (अपर) एवं 3.बीज। प्रथम से शिव एवं अंतिम से शक्ति का तादात्म्य है तथा नाद दोनों का सम्मिलन है। शक्ति ज्योतिरूप है। यह अति सूक्ष्म है जिसे महायोनि कहते हैं। वहीं अद्र्धमात्रा अर्थात तिल अक्षर, प्रणव में आकार, उकार, मकार- इन तीन मात्राओं के अतिरिक्त बिन्दुरूपा नित्य अद्र्धमात्रा है। उसी का ब्रह्मा, विष्णु और महेश सदैव ध्यान करते हैं। यही राजयोग है।
यही ज्योतिरूप शक्ति मानव शरीर में कुण्डलिनी का रूप ग्रहण कर आधार चक्र में चमकती है। मानव शरीर में तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार छह चक्र होते हैं। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध एवं आज्ञा। इसके अतिरिक्तं ब्रह्मरन्ध्र बीजकोश के रूप में विद्यमान है। यह सर्प सदृश मूलाधार में कुण्डली लगाकर सुषुप्तावस्था में स्थित रहती है जिसे गहन साधना व ध्यान के जरिए जाग्रत किया जाता है। इसे जगाने पर यह धीरे-धीरे प्रत्येक चक्र को पार करके ब्रह्मरन्ध्र के सहस्रदल में मिल जाती है एवं अमृतपान कर पुन: वापस लौट आती है। ततपश्चात इस शक्ति को हम जिस किसी रूप में चाहते हैं ढ़ाल लेते हैं। वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया है कि शक्ति को अलग-अलग श्रोतों में रूपान्तरित किया जा सकता है।
कितना गजब का संयोग है कि श्रृष्टि का चक्र का तादात्म जितना विज्ञान से है उतना ही भाषा से। तभी तो नाउन,प्रोनाउन,एडजक्टिन,वर्भ आदि से जैसे-जैसे जीवात्मा जुड़ता जाता है उसका स्वरूप बदलता जाता है। वैसे ही कहने को तो पंथ अलग -अलग हैं लेकिन मूल एक ही है जो पंच तत्वों के मिलकर बना है जो प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटीन की थ्योरी का आधार भी है और उसे प्रमाणित भी करता है।
डा.राजीव रंजन ठाकुर