कैलाशपति के मंदिर से डमरू की डमग डम डम निकले....।
सचमुच कितना आनंद मिलता है डमरू की घ्वनि सुनकर। शिव डमरू बजाते हैं और विभोर होने पर नृत्य भी करते हैं। यह प्रलयंकर की मस्ती का प्रतीक है। व्यक्ति उदास, निराश और खिन्न, विपन्न बैठकर अपनी उपलब्ध शक्तियों को न खोए, पुलकित- प्रफुल्लित जीवन जिए। शिव यही करते हैं, इसी नीति को अपनाते हैं। उनका डमरू ज्ञान, कला, साहित्य और विजय का प्रतीक है। डमरू की ध्वनि यह संदेश देती है कि शिव कल्याण के देवता हैं। उनके हर शब्द में सत्यम, शिवम्,सुन्दरम् की ही ध्वनि निकलती है। डमरू से निकलने वाली सात्विकता की ध्वनि सभी को मंत्रमुग्ध सा कर देती है और जो भी उनके समीप आता है अपना सा बना लेती है।
डमरू की दोनों लड़ी(जिसकी चोट से आवाज उत्पन्न होती है) के मिलने से नारंगी के समान एक गोल आकृति बनती है जो ऊर्जा से युक्त धाराओं का बना एक पॉवर-सर्किट होता है। जिसके दोनों पेदों पर ऊर्जधाराएं अन्दर जा रही होती है। वह बाहर के शून्य से घर्षण करता घूमता हुआ ऊपर फव्वारा छोड़ता है और निचे जेट की तरह ऊर्जाधारा छोड़ता हुआ क्रियाशील हो जाता है। इसके बीच में यह डमरू की आकृति होती है जो निश्चित नियमों से स्वचालित होकर एक- दूसरे में पंप करने लगते है। यही पहली संरचना है जिसके केंद्र में चेतना की उत्पत्ति होता है। इसी डमरू के बजने से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती है जो पहले एक सूक्ष्म परमाणु के रूप में उत्पन्न होता है।
भगवान भेलेनाथ अपने हाथ में जो डमरू पकड़े हैं वो अनहद नाद का प्रतीक है। ऐसा नाद जो हमारे घट में गुरु कृपा से ही श्रवण होता है।
पुराणों के अनुसार भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। यह मंत्र से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता हैं। इन मंत्रों की एक माला (108 मंत्र) का जप प्रतिदिन करने से कोई भी कठिन कार्य शीघ्र सिद्ध हो जाता है।
शिव सूत्र रूप मंत्र इस प्रकार है-
'अइउण्, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्, ञमड.णनम्, भ्रझभञ, घढ़धश, जबगडदश, खफछठथ, चटतव, कपय, शषसर, हल।
1-बिच्छू के काटने पर इन सूत्रों से झाडऩे पर विष उतर जाता है।
2-सर्प के काटने पर पीडि़त के कान में उच्च स्वर से इन सूत्रों का पाठ सुनाना चाहिए।
3-ऊपरी बाधा का आवेश जिस व्यक्ति पर आया हो उस पर इन सूत्रों से अभिमन्त्रित जल डालने से आवेश छूट जाता है।
4-इन सूत्रों को भोज पत्र पर लिखकर गले में बांधने से अथवा हाथ पर बांधने से प्रेत बाधा नष्ट हो जाती है।
5-ज्वर, सन्निपात, तिजारी, चौथिया आदि इन सूत्रों द्वारा झाडऩे से शीघ्र छूट जाता है।
6-उन्माद या मिर्गी आदि रोग से पीडि़त होने पर सूत्रों से झाडऩा चाहिए तथा प्रतिदिन जल को अभिमन्त्रित करके पिलाना चाहिए।