Sunday, November 8, 2015

आधी आबादी सब पर भारी

बिहार में विधानसभा के चुनाव का परिणाम आ चुका है। चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर इतिहास के अनेकों उदाहरण को सही साबित कर दिया कि अगर रमणियां चेहरे से नकाब उतारकर रणक्षेत्र में उतरती हैं तो उसका परिणाम अप्रत्यशित होता है।
चुनाव के पूर्व सपनों के सौदागर ने सपने बेचने की जबरदस्त कोशिश की। वह यह भूल गए कि बिहार की भूमि पर जौहरियों की कमी नहीं है। यहां सपनों को भी परखा जाता है। चुनाव में मतदाताओं ने यह प्रमाणित कर दिया कि लोकतंत्र के भीड़तंत्र कहीं और मायने रखता हो लेकिन बिहार की जनता लोकतंत्र का मतलब अच्छी तरह समझती है। और यह हो भी क्यों नहीं क्योंकि उत्तर वैदिक काल के सोलह महाजनपदों में से एक लिच्छवी गणराज्य ही विश्व का पहला लोकतांत्रिक प्रदेश था।
चुनाव के प्रथम चरण से ही आधी आबादी ने जिस प्रकार अपनी आंतरिक शक्ति को संजो कर मौन रूप में उसका प्रयोग किया इससे तो लग ही रहा था कि परिणाम कुछ अप्रत्याशित ही होंगे। लेकिन स्वाभिमान और अहं वश बड़े-बड़े महारथी जनता को सपनों के जाल में उलझानें की कोशिश करते रहे। आधी आबादी जहां झूठे सनपों से उब चुकी थी वहीं जंगलराज के खौफ से सिहर भी रही थी। लेकिन उन्होंने अपने मौन की धारा को सुशासन की तरफ मोडऩे के लिए घुंघट से निकलकर ईबीएम का बटन दबाया।
इस चुनावी परिणाम के परिप्रेक्ष्य पर अगर नजर डालें तो आईने की तरह साफ-साफ यह दिखता है कि सुशासन के दौरान मुनिया बिटिया के लिए साइकिल,मध्याह्न भोजन,कन्या विवाह योजना,पोशाक राशि योजना,युवाओं के लिए ऋण योजना,छात्रवृति योजना के साथ -साथ विकास और सुशासन का खुशनुमा चेहरा दिखाई पड़ा। सुशासन के सामाजिक प्रबंधन का भी नजारा सामने था। मतदान का परिणाम भी जात-पात से उठकर सामाजिक विकास के नाम पर मिले मत की ओर ध्यान इंगित कर रहा है। मतदान में पुरुषों के मुकाबले 6 फीसद अधिक मतदान करने वाली महिलाओं ने गजब का कारनामा कर दिखाया। सही मायने में सिक्स ने कर ही दिया फिक्स।
सचमुच आधी आबादी ने दिखा दिया कि वह जब अपनी मर्यादा को तोड़कर बाहर निकलती है तो सारी शक्तियां तहस-नहस हो जाती है।      

डा. राजीव रंजन ठाकुर

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