लक्ष्मी रूपेण संस्थिता......
अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनु: कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च धर्म जलजं घंटां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दघतीं हस्तै: प्रसन्नाननां
सेवे सैभिमर्दिनीमिह महालक्ष्मी सरोजस्थिताम्।।
मार्कण्डेय पुराण
कितनी अद्भुत बात है कि मानव समस्त कामनाओं से अभिभूत हो मां लक्ष्मी की इस भाव से कि जिनके हाथ में अक्षमाला, परशु, गदा, वाण, वज्र, कमल, धनुष, कुण्डिका, शक्ति, खडग़, पर्म, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और सुदर्शनचक्र धारण करने वाली कमलस्थित महिषासुरमर्दिनी महालक्ष्मी का ध्यान करता है। सचमुच शक्ति शब्द सुनते ही हमारे सामने एक स्त्री का स्वरूप ही उभरता है। उससे भी अद्भुत बात यह है कि उस स्त्री में हमें केवल और केवल मां का ही रूप दिखाई देता है। जब-जब पुरूष ने इस शक्तिरूपा को मां से इतर भोग्या के रूप में देखा है तब-तब उसका परिणाम विनाशकारी हुआ है। रावण महिषासुर, अंधकासुर, चंड-मुंड,शुंभ- निशुंभ, बाली से लेकर आज के युग तक इस जैसे आततायियों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसका शक्ति ने संहार किया है। तमाम प्राकृतिक आपदाएं इस शक्ति के प्रकोप का जीता-जागता उदाहरण है।
माता लक्ष्मी की उपासना उनके तीन रूपों में किए जाने का विधान है।
1. श्री कनकधारा 2.श्री लक्ष्मी 3. श्री महालक्ष्मी
1. देवी कनकधारा की आराधना इस मंत्र से करनी चाहिए- अड़्गं हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती, भृड़्गाड़्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अड़्गीकृताखिल विभूतिरपाड़्ग लीला, माड़्गल्यदास्तु मम मंगल देवताया।।
2. श्री लक्ष्मी की आराधना इस मंत्र से कारनी चाहिए- जय पद्मपलाशक्षि जय त्वं श्रीपतिप्रिये।
जय मातर्महालक्ष्मि संसारर्णवतारिणि।।
3. श्री महालक्ष्मी की आराधना इस मंत्र से करनी चाहिए-सिंहासनगत: शक्र: सम्प्राप्य त्रिदिवं पुन:।
देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां तत:।।
इस स्त्रोतो मां लक्ष्मी का ध्यान व पूजा कर मनुष्य समस्त वैभवों और धान्य-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है, ऐसा पुराणों में वर्णित है।
माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जिसे रात में ही दिखाई देता है। वहीं जब माता गज की सवारी करती हंै तब वह समस्त ऐश्वर्य और वैभव प्रदान करने वाली वैभव स्वरूपा बन जाती है। इस लिए पुराणों में मां के तीन स्वरूप की पूजा अलग-अलग कामनाओं के लिए करने का विधान है। मां की पूजा स्थिर लग्न यानि जब लग्न में कुंभ, सिंह, वृष और वृश्चिक का प्रवेश होता है तब करनी चाहिए। क्योंकि इस काल में पूजा का प्रभाव सौ फीसद फलदायी माना गया है। मार्कण्डेय पुराण में जो तीन रात्रि यानि कालरात्रि, महारात्रि, महोरात्रि की जो चर्चा की गई है उसमें महोरात्रि वही रात्रि है जिसमें स्थिर लग्न के समय मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ है। उसी वक्त हम उस देवी की आराधना करते है। मां लक्ष्मी की पूजा में श्रीयंत्र का बहुत महत्व है। इस यंत्र की स्थापना करने या फिर इस महोरात्रि में उसकी पूजा-आराधना से समस्त कामनाओं की पूर्ति संभव है।
पूजन सामग्री-माता की पूजा के लिए लाल कमल पुष्प, स्फटिक की माला, कमलाक्ष, रोली, अक्षत, स्वर्णधातु, जल, धूप, केला,दीपक,लाल वस्त्र आदि की आवश्यकता होती है।
पूजा विधि-पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर उस पर रंगोली बनाएं। चौकी के चारों कोने पर चार दीपक जलाएं। जिस स्थान पर गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करनी हो वहां कुछ चावल रखें। इस स्थान पर गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को रखें। लक्ष्मी माता की पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु की मूर्ति लक्ष्मी माता के बायीं ओर रखकर पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद आसन पर मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं। इसके बाद अपने गंगा जल से स्वयं,आसन,भूमि व समस्त सामग्री को इस मंत्र से शुद्धि करें- ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यास्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर शुचि। इसके बाद हाथ में जल लेकर ऊं केशवाय नम:,ऊं माधवाय नम: ,ऊं नारायणाय नम: नामक मंत्र से आचमन करें।
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए इस मंत्र का उच्चरण करें-चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
इसके बाद घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें। इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें। हाथ में अक्षत लेकर बोलें -भूर्भुव: स्व: महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम।
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं। रक्त चंदन लगाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। फिर लक्ष्मी देवी की अंग पूजा करें। ततपश्चात देवी को इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। फिर एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोले एष पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें। पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें।
डॉ राजीव रंजन ठाकुर
अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनु: कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च धर्म जलजं घंटां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दघतीं हस्तै: प्रसन्नाननां
सेवे सैभिमर्दिनीमिह महालक्ष्मी सरोजस्थिताम्।।
मार्कण्डेय पुराण
कितनी अद्भुत बात है कि मानव समस्त कामनाओं से अभिभूत हो मां लक्ष्मी की इस भाव से कि जिनके हाथ में अक्षमाला, परशु, गदा, वाण, वज्र, कमल, धनुष, कुण्डिका, शक्ति, खडग़, पर्म, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और सुदर्शनचक्र धारण करने वाली कमलस्थित महिषासुरमर्दिनी महालक्ष्मी का ध्यान करता है। सचमुच शक्ति शब्द सुनते ही हमारे सामने एक स्त्री का स्वरूप ही उभरता है। उससे भी अद्भुत बात यह है कि उस स्त्री में हमें केवल और केवल मां का ही रूप दिखाई देता है। जब-जब पुरूष ने इस शक्तिरूपा को मां से इतर भोग्या के रूप में देखा है तब-तब उसका परिणाम विनाशकारी हुआ है। रावण महिषासुर, अंधकासुर, चंड-मुंड,शुंभ- निशुंभ, बाली से लेकर आज के युग तक इस जैसे आततायियों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसका शक्ति ने संहार किया है। तमाम प्राकृतिक आपदाएं इस शक्ति के प्रकोप का जीता-जागता उदाहरण है।
माता लक्ष्मी की उपासना उनके तीन रूपों में किए जाने का विधान है।
1. श्री कनकधारा 2.श्री लक्ष्मी 3. श्री महालक्ष्मी
1. देवी कनकधारा की आराधना इस मंत्र से करनी चाहिए- अड़्गं हरे: पुलकभूषणमाश्रयन्ती, भृड़्गाड़्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अड़्गीकृताखिल विभूतिरपाड़्ग लीला, माड़्गल्यदास्तु मम मंगल देवताया।।
2. श्री लक्ष्मी की आराधना इस मंत्र से कारनी चाहिए- जय पद्मपलाशक्षि जय त्वं श्रीपतिप्रिये।
जय मातर्महालक्ष्मि संसारर्णवतारिणि।।
3. श्री महालक्ष्मी की आराधना इस मंत्र से करनी चाहिए-सिंहासनगत: शक्र: सम्प्राप्य त्रिदिवं पुन:।
देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां तत:।।
इस स्त्रोतो मां लक्ष्मी का ध्यान व पूजा कर मनुष्य समस्त वैभवों और धान्य-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है, ऐसा पुराणों में वर्णित है।
माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जिसे रात में ही दिखाई देता है। वहीं जब माता गज की सवारी करती हंै तब वह समस्त ऐश्वर्य और वैभव प्रदान करने वाली वैभव स्वरूपा बन जाती है। इस लिए पुराणों में मां के तीन स्वरूप की पूजा अलग-अलग कामनाओं के लिए करने का विधान है। मां की पूजा स्थिर लग्न यानि जब लग्न में कुंभ, सिंह, वृष और वृश्चिक का प्रवेश होता है तब करनी चाहिए। क्योंकि इस काल में पूजा का प्रभाव सौ फीसद फलदायी माना गया है। मार्कण्डेय पुराण में जो तीन रात्रि यानि कालरात्रि, महारात्रि, महोरात्रि की जो चर्चा की गई है उसमें महोरात्रि वही रात्रि है जिसमें स्थिर लग्न के समय मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ है। उसी वक्त हम उस देवी की आराधना करते है। मां लक्ष्मी की पूजा में श्रीयंत्र का बहुत महत्व है। इस यंत्र की स्थापना करने या फिर इस महोरात्रि में उसकी पूजा-आराधना से समस्त कामनाओं की पूर्ति संभव है।
पूजन सामग्री-माता की पूजा के लिए लाल कमल पुष्प, स्फटिक की माला, कमलाक्ष, रोली, अक्षत, स्वर्णधातु, जल, धूप, केला,दीपक,लाल वस्त्र आदि की आवश्यकता होती है।
पूजा विधि-पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर उस पर रंगोली बनाएं। चौकी के चारों कोने पर चार दीपक जलाएं। जिस स्थान पर गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करनी हो वहां कुछ चावल रखें। इस स्थान पर गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को रखें। लक्ष्मी माता की पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु की मूर्ति लक्ष्मी माता के बायीं ओर रखकर पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद आसन पर मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं। इसके बाद अपने गंगा जल से स्वयं,आसन,भूमि व समस्त सामग्री को इस मंत्र से शुद्धि करें- ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यास्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर शुचि। इसके बाद हाथ में जल लेकर ऊं केशवाय नम:,ऊं माधवाय नम: ,ऊं नारायणाय नम: नामक मंत्र से आचमन करें।
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए इस मंत्र का उच्चरण करें-चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
इसके बाद घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें। इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें। हाथ में अक्षत लेकर बोलें -भूर्भुव: स्व: महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम।
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं। रक्त चंदन लगाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। फिर लक्ष्मी देवी की अंग पूजा करें। ततपश्चात देवी को इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। फिर एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोले एष पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें। पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें।
डॉ राजीव रंजन ठाकुर
No comments:
Post a Comment