Thursday, October 6, 2016

वेद सार-73

औ शं नो मित्र: शं वरूण: शं नो भवत्वय्र्थमा ।
शं न इन्द्रो बृहस्पति: शं नो विष्णुरूरूक्रम ।।

                                                                        ऋग्वेद:-1/6/18/9







भावार्थ : -
शम् - सत्यसुखदायक
न: - हमको
मित्र : - मंत्रल प्रदेश्वर
वरूण - सर्वोत्कृष्ठ / स्वीकरणीय
भक्तु - हो
अर्यमा- पक्षपात रहित धर्म न्यायकारी  / यमराज
इन्द्र - परमैश्वर्यवान इन्दे्रश्वर
बृहस्पति: - महाविद्यावाचोधिपते वृहस्पति - सबसे बड़े सुख देने वाला विष्णु- सर्वव्यापक
उरुक्रम:- अनंतपराक्रमेश्वर।

व्याख्या:- हे मंगलप्रदेश्वर। आप सर्वथा सब के निश्चित मित्र हो । हमको सत्यसुखदायक सर्वदा हो। हे सर्वोत्कृष्ट, स्वीकरणीय वरेश्वर आप सब से परमोत्तम हो। इसलिए आप हमको परमसुखदायक हो। हे पक्षपात रहित धम्र्मन्यायकारिन आप यमराज हो इसलिए हमारे लिए न्याययुक्त सुख देने वाले आप ही हो। आप हमको परमश्वर्य युक्त शीघ्र स्थिर सुख दीजिए।
हे महाविद्यावाचोधिपते बृहस्पते परमात्मन। हमलोगों को सबसे बड़े सुख को देने वाले आप ही हो। हे सर्वव्यापक अनंतपराक्रमेश्वर विष्णो आप हमको अनंत सुख दो। जो कुछ मांगेंगे आप से ही मांगेंगे। सब सुखों को देने वाले आप के बिना कोई नहीं है। सर्वथा हमलोगों को आप का ही आशय है, अन्य किसी का नहीं। क्योंकि सर्वशक्तिमान न्यायकारी दयामय सबसे बड़े पिता को छोड़ के नीचे का आश्रय हम कभी न करेंगे। आप का तो स्वभाव ही है कि आंगीकृत को कभी नहीं छोड़ते सो आप सदैव हमको सुख देंगे, यह हमको दृढ़ निश्चय है।

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