Friday, October 21, 2016

वेद सार -76


उदगातेव शकुने साम गायसि ब्रह्मपुत्र इव सवनेषु शंससि ।
वृषेव वाजी शिशुमतीरपीत्या सर्वतो न: शकुने भद्रमा वद विश्वतो न: शकुने पुण्यमा वद ।।

ऋग्वेद:-2/8/12/2

भावार्थ :-
 उदगाता - यज्ञ मे सामगान करने वाला महापंडित
इव- जैसे
शकुने- हे सर्वशक्तिमन्नीश्वर
साम- सामगान को
गायसि - गाते ही हो
ब्रह्मपुत्र - वेदों के वेत्ता
सवनेषु - विज्ञान सब पदार्थो की शंससि - प्रशंसा करता है
वृषा - उत्तम गुण और उत्तम पदार्थो की वृष्टि करने वाले
वाजी - सर्वशक्ति का सेवन और अन्नदि पदार्थो के देने वाले
शिशुमती: - उत्तम शिशु
अपीत्य - प्राप्त हो के
सर्वत: - सब ठिकानों से
न: - हमारे लिए
भद्रम- कल्याण को
आवद - अच्छे प्रकार कहो
पुण्यम - धर्मात्मा के कर्म करने को

व्याख्या:- हे सर्वशक्तिमन्नीश्वर । आप साम गान को गाते ही हो, वैसे ही हमारे हदय में सब विद्या का प्रकाशित गान करो। जैसे यज्ञ में महापंडित सामगान करता है वैसे आप भी हमलोगोंं के बीच में सामादि विद्या का प्रकाश कीजिए।
आप कृपा से पदार्थ विद्याओंं की प्रशंसा करते हो वैसे हमको भी यथावत प्रशंसित करो। जैसे वेदों का वेत्ता विज्ञान से सब पदार्थो की प्रशंसा करता है वैसे आप भी हम पर कृपा कीजिए।
 आप सर्वशक्ति का सेवन करने और अन्नदि पदार्थांे के देनेवाले तथा महाबलवान और बेगवान होने से वाजी हो, जैसे कि वृषभ के समान आप उत्तम गुण और उत्तम पदार्थो की वृष्टि करने वाले हो वैसे हम पर उनकी वृष्टि करो।
हमलोग आपकी कृपा से उत्तम शिशु को प्राप्त होके आप को ही भेजें।
हे शकुने। सब ठिकानों से हमारे लिए कल्याण को अच्छे प्रकार कहो। हे सबको सुख देने वाले ईश्वर । सब जगत के लिये धर्मात्मा के कर्म करने को उपदेश कर जिससे कोई मनुष्य अधर्म करने की इच्छा भी न करे और सब ठिकानों में सत्य धर्म की प्रवृति हो ।

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