सनातन धर्म की परंपरा में पूजा विधि
का बहुत महत्व है। हर इंसान जिंदगी की भाग दौड़ से पस्त होकर या फिर जिंदगी में कुछ विशेष अभिलाषा को लेकर कुछ ही क्षण के लिए सही पूजा-पाठ में जरूर व्यतीत करता है। वैदिक अवलोकन से यह बात साफ है कि मनुष्य की तीन क्षुधाएं होती हैं-
1.दैहिक 2.मानसिक 3.आर्थिक
इसके लिए आवश्यक है कि हम प्रात: काल उठते ही सर्वप्रथम दोनों हथेली को रगड़ते हुए बोलें-कराग्रे वसति लक्ष्मी,कर मध्ये च सरस्वती,कर मूले स्थितो ब्रह्मा,प्रात: हस्त दर्शनम्। फिर भूमि को प्रणाम करें।
भूमि पूजन मंत्र--ऊँ पृथ्वि। त्वया धृता लोका देवि। त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि। पवित्रां कुरु चारूनम्।
वहीं जब पूजा करनी हो तो स्नान के पश्चात शांत चित्त होकर बैठ जाएं। मन को एकाग्र करने के लिए 5 बार गायत्री मन्त्र का उच्चारण करें। फिर जल से आचमन करें। उसके उपरांत जल, अक्षत (चावल) और पुष्प लेकर संकल्प लें। किसी भी पूजा में पृथ्वी, गणेश, गौरी, नवग्रह, वरुण, स्थान देव, कुलदेव और देवी तथा पितृ देव का आह्वाहन और ध्यान अवश्य करें। फिर प्रतीक स्वरूप सभी आह्वाहित देवी /देवताओं को स्नान हेतु जल, दूध, शहद, दही इत्यादि अर्पित करें। फिर वस्त्र,तिलक, उसके उपरांत फूल-माला, फिर नैवेद्य, पान-सुपारी तथा अंत में धूप और दीप दिखाएं।
सामान्य पूजा करने के बाद यथा संभव सभी देवी-देवताओं से सम्बंधित मन्त्रों तथा स्तुतियों का जप और पाठ करें। फिर प्रधान देवी /देवता के लिए ऊपर लिखे विधि से ही पूजन करें। प्रधान देवी /देवता से सम्बंधित कथा, पाठ या मन्त्र जप करें। तदोपरांत हवन करें। हवन के अंत में हवन में दी गई आहुति के कुल मंत्रों का दशांश तर्पण व उसका दशांश मार्जन करें।
अंत में आरती करके, प्रदक्षिणा, क्षमा प्रार्थना तथा उन्हें पुन: अपने स्थान पर वापस जाने और जब भी समय हो उन्हें पुन: आने का आग्रह करें।
पूजा के दौरान ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें:-
बैठने का आसन कुशा या ऊन का होना चाहिए। कभी भी भूमि पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए।
शिव की पूजा में कभी भी तुलसी ना प्रयोग करें।
कलश सदैव मुख्य देवी/देवता के सम्मुख स्थापित करें।
प्रधान दीपक को मुख्य देवी /देवता के दाहिनी ओर स्थापित करें तथा उसे पूजा के दौरान उठायें नहीं। आरती दिखाने के लिए दूसरे दीपक का प्रयोग करें और देवी /देवताओं को दीप दिखाने के लिए प्रधान दीपक पर अक्षत (चावल) छोड़ दें।
धूप या अगरबत्ती सदैव प्रधान देवी /देवता के बायीं ओर रखें।
पूजा के दौरान चित्त में कोई भी गलत धारणा लाने से बचें।
पूजा में प्रयोग होने वाली वस्तुएं शुद्ध और अच्छी हों इसका ध्यान रखें।
दान सदैव अपने सामर्थ्य के अनुसार तथा श्रद्धा पूर्वक करें। हमेशा यह ध्यान दें की जो भी वस्तु आप दान में दे रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो।
दान सदैव योग्य व्यक्तियों को तथा जरुरत मंद लोगों को ही अपने हाथों से देंं।
का बहुत महत्व है। हर इंसान जिंदगी की भाग दौड़ से पस्त होकर या फिर जिंदगी में कुछ विशेष अभिलाषा को लेकर कुछ ही क्षण के लिए सही पूजा-पाठ में जरूर व्यतीत करता है। वैदिक अवलोकन से यह बात साफ है कि मनुष्य की तीन क्षुधाएं होती हैं-
1.दैहिक 2.मानसिक 3.आर्थिक
इसके लिए आवश्यक है कि हम प्रात: काल उठते ही सर्वप्रथम दोनों हथेली को रगड़ते हुए बोलें-कराग्रे वसति लक्ष्मी,कर मध्ये च सरस्वती,कर मूले स्थितो ब्रह्मा,प्रात: हस्त दर्शनम्। फिर भूमि को प्रणाम करें।
भूमि पूजन मंत्र--ऊँ पृथ्वि। त्वया धृता लोका देवि। त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि। पवित्रां कुरु चारूनम्।
वहीं जब पूजा करनी हो तो स्नान के पश्चात शांत चित्त होकर बैठ जाएं। मन को एकाग्र करने के लिए 5 बार गायत्री मन्त्र का उच्चारण करें। फिर जल से आचमन करें। उसके उपरांत जल, अक्षत (चावल) और पुष्प लेकर संकल्प लें। किसी भी पूजा में पृथ्वी, गणेश, गौरी, नवग्रह, वरुण, स्थान देव, कुलदेव और देवी तथा पितृ देव का आह्वाहन और ध्यान अवश्य करें। फिर प्रतीक स्वरूप सभी आह्वाहित देवी /देवताओं को स्नान हेतु जल, दूध, शहद, दही इत्यादि अर्पित करें। फिर वस्त्र,तिलक, उसके उपरांत फूल-माला, फिर नैवेद्य, पान-सुपारी तथा अंत में धूप और दीप दिखाएं।
सामान्य पूजा करने के बाद यथा संभव सभी देवी-देवताओं से सम्बंधित मन्त्रों तथा स्तुतियों का जप और पाठ करें। फिर प्रधान देवी /देवता के लिए ऊपर लिखे विधि से ही पूजन करें। प्रधान देवी /देवता से सम्बंधित कथा, पाठ या मन्त्र जप करें। तदोपरांत हवन करें। हवन के अंत में हवन में दी गई आहुति के कुल मंत्रों का दशांश तर्पण व उसका दशांश मार्जन करें।
अंत में आरती करके, प्रदक्षिणा, क्षमा प्रार्थना तथा उन्हें पुन: अपने स्थान पर वापस जाने और जब भी समय हो उन्हें पुन: आने का आग्रह करें।
पूजा के दौरान ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें:-
बैठने का आसन कुशा या ऊन का होना चाहिए। कभी भी भूमि पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए।
शिव की पूजा में कभी भी तुलसी ना प्रयोग करें।
कलश सदैव मुख्य देवी/देवता के सम्मुख स्थापित करें।
प्रधान दीपक को मुख्य देवी /देवता के दाहिनी ओर स्थापित करें तथा उसे पूजा के दौरान उठायें नहीं। आरती दिखाने के लिए दूसरे दीपक का प्रयोग करें और देवी /देवताओं को दीप दिखाने के लिए प्रधान दीपक पर अक्षत (चावल) छोड़ दें।
धूप या अगरबत्ती सदैव प्रधान देवी /देवता के बायीं ओर रखें।
पूजा के दौरान चित्त में कोई भी गलत धारणा लाने से बचें।
पूजा में प्रयोग होने वाली वस्तुएं शुद्ध और अच्छी हों इसका ध्यान रखें।
दान सदैव अपने सामर्थ्य के अनुसार तथा श्रद्धा पूर्वक करें। हमेशा यह ध्यान दें की जो भी वस्तु आप दान में दे रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो।
दान सदैव योग्य व्यक्तियों को तथा जरुरत मंद लोगों को ही अपने हाथों से देंं।
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