आवदंस्त्वं शकुने भद्रमा वद तूष्णीमासीन: सुमति चिकिद्धि न:।
यदुत्पतन् वदसि कर्करिर्यथा बृहद्वदेम विदर्थे सुवीरा: ।।
ऋग्वेद:- 2/8/12/3
भावार्थ :-
आवदन - निरंतर उपदेश करते हुए
त्वम्- आप
शकुने- हे जगदीश्वर
भद्रम- मोक्ष सुख का
आवद- निरंतर उपदेश कीजिए
तूष्णीम् - मौन से ही
आसीन:- हमारे हदय मेंं सदा स्थिर होकर
सुमतिम् - सर्वोतम ज्ञान
चिकिद्धि - अपने रहने के लिए घर ही बनाओ
न: -हमको
यद - जो
उत्पतन् - उत्तम व्यवहार में पहुंचाए हुए
वदसि - उपदेश है
कर्करि: - कर्तव्य,कर्म,धर्म को ही पुरुषार्थ से करो
यथा- जिस प्रकार
वृहद् - सबसे बड़े परब्रह्म की वदेम - स्तुति , उपदेश , प्रार्थना , उपासना, आदि सर्वदा कहें , सुनें विदर्थ- विज्ञानादि यज्ञों में
सुवीरा:- अत्यंत शूरवीर होके।
व्याख्या:- हे जगदीश्वर । आप समस्त कल्याण का भी कल्याण कीजिए। हे अन्तर्यामिन हमारे हदय में सदा स्थिर हो मौन से ही सर्वोतम ज्ञान दो। कृपा से हमको अपने रहने के लिए घर ही बनाओ और आपकी परमविद्या को हम प्राप्त हों।
उत्तम व्यवहार में पहुंचाते हुए आप का जिस प्रकार से कर्तव्य कर्म, धर्म को ही अत्यंत पुरुषार्थ से करो, अकत्र्तव्य दुष्ट काम मत करो, ऐसा उपदेश है कि यथायोग्य उद्धम को कभी कोई मत छोड़ो। वैसे विज्ञानादि यज्ञ वा घर्मयुक्त युद्धों में अत्यंत शूरवीर हो के आप जो परब्रह्म उन आप की स्तुति, आपका उपदेश, आप की प्रार्थना और उपासना तथा आपका यह बड़ा अखंड साम्राज्य और स मनुष्यों का हित सर्वदा कहें, सुनें और आप के अनुग्रह से परमानांद को भोगे।
यदुत्पतन् वदसि कर्करिर्यथा बृहद्वदेम विदर्थे सुवीरा: ।।
ऋग्वेद:- 2/8/12/3
भावार्थ :-
आवदन - निरंतर उपदेश करते हुए
त्वम्- आप
शकुने- हे जगदीश्वर
भद्रम- मोक्ष सुख का
आवद- निरंतर उपदेश कीजिए
तूष्णीम् - मौन से ही
आसीन:- हमारे हदय मेंं सदा स्थिर होकर
सुमतिम् - सर्वोतम ज्ञान
चिकिद्धि - अपने रहने के लिए घर ही बनाओ
न: -हमको
यद - जो
उत्पतन् - उत्तम व्यवहार में पहुंचाए हुए
वदसि - उपदेश है
कर्करि: - कर्तव्य,कर्म,धर्म को ही पुरुषार्थ से करो
यथा- जिस प्रकार
वृहद् - सबसे बड़े परब्रह्म की वदेम - स्तुति , उपदेश , प्रार्थना , उपासना, आदि सर्वदा कहें , सुनें विदर्थ- विज्ञानादि यज्ञों में
सुवीरा:- अत्यंत शूरवीर होके।
व्याख्या:- हे जगदीश्वर । आप समस्त कल्याण का भी कल्याण कीजिए। हे अन्तर्यामिन हमारे हदय में सदा स्थिर हो मौन से ही सर्वोतम ज्ञान दो। कृपा से हमको अपने रहने के लिए घर ही बनाओ और आपकी परमविद्या को हम प्राप्त हों।
उत्तम व्यवहार में पहुंचाते हुए आप का जिस प्रकार से कर्तव्य कर्म, धर्म को ही अत्यंत पुरुषार्थ से करो, अकत्र्तव्य दुष्ट काम मत करो, ऐसा उपदेश है कि यथायोग्य उद्धम को कभी कोई मत छोड़ो। वैसे विज्ञानादि यज्ञ वा घर्मयुक्त युद्धों में अत्यंत शूरवीर हो के आप जो परब्रह्म उन आप की स्तुति, आपका उपदेश, आप की प्रार्थना और उपासना तथा आपका यह बड़ा अखंड साम्राज्य और स मनुष्यों का हित सर्वदा कहें, सुनें और आप के अनुग्रह से परमानांद को भोगे।
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